मुद्रा संकट के उदाहरण

2018 के मध्य में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के एक अध्ययन में पाया गया है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME), जो विनिर्माण का 45 प्रतिशत, निर्यात का 40 प्रतिशत और सकल घरेलू उत्पाद का 30 प्रतिशत है, ने हाल में दो प्रमुख झटके झेले हैं। ये झटके नोटबंदी और जीएसटी की शुरूआत से लगे थे। इस अध्ययन में कहा गया है कि जीएसटी निज़ाम ने एमएसएमई के लिए अनुपालन और परिचालन की लागत को बढ़ा दिया था और जिसका आज भी इन पर भारी असर है।
मुद्रा संकट के उदाहरण
सवाल यह है कि, क्या भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत रिकवरी की राह पर है? सरकार ऐसा मानती है, भले ही यूक्रेन युद्ध के प्रसार और ईंधन की बढ़ती कीमतों से पैदा हुई बाधाओं के बाद पहले से विश्वास कुछ कम हो गया हो। लेकिन आधिकारिक बयानबाज़ी सरल है - अर्थव्यवस्था अच्छी है, लेकिन महामारी और संबंधित प्रतिबंधात्मक उपायों के कारण कुछ बाधाएं पैदा हुई हैं। जैसे-जैसे यह सामी बीतेगा, अर्थव्यवस्था मजबूती के साथ उच्च विकास के रूप में सामने आएगी। क्या यह कहानी सही है?
जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः श्रीलंका से सबक लेकर लोक लुभावन योजनाओं से बचिए
हाल ही में 3 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वरिष्ठ नौकरशाहों की बैठक में शामिल उच्च अधिकारियों ने देश में कई राज्यों द्वारा घोषित अति लोकलुभावन योजनाओं और ढेर सारी मुफ्त रियायतों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी योजनाएं और रियायतें आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं हैं। ये लोकलुभावन योजनाएं और रियायतें कई राज्यों को श्रीलंका की तरह आर्थिक मुश्किलों के रास्ते पर ले जा सकती हैं।
गौरतलब है कि श्रीलंका में पिछले कुछ समय से लागू की गई लोकलुभावन योजनाओं, करों में भारी कटौती और बढ़ते मुद्रा संकट के उदाहरण कर्ज ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया है। 2018 में वैट की दर 15 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी की गई और विभिन्न वर्गो को दी गई अभूतपूर्व सुविधाओं व छूटों के कारण श्रीलंका दर्दनाक मंदी के जाल में फंस गया है। श्रीलंका में इस साल महंगाई दर एक दशक में अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच चुकी है। आर्थिक तंगी के खिलाफ तेज होते विरोध मुद्रा संकट के उदाहरण प्रदर्शनों के बीच सरकार ने एक अप्रैल को श्रीलंका में आपातकाल लागू किया है। वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे को बर्खास्त कर दिया गया है। इतना ही नहीं, श्रीलंका के द्वारा मौजूदा विदेशी मुद्रा संकट से निपटने में मदद करने के लिए भारत से आर्थिक राहत पैकेज का आग्रह किया गया है।
श्रीलंका आर्थिक संकट
बीते माह अर्थात फरवरी तक देश का कुल मुद्रा भंडार केवल 2.31 बिलियन डॉलर ही बचा था, जबकि इसको 2022 में लगभग 4 बिलियन डॉलर के ऋण चुकाना बाकी है। इस ऋण में जुलाई में परिपक्व होने वाला $ 1 बिलियन का ‘अंतर्राष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड’ (international sovereign bond – ISB) भी शामिल है।
श्रीलंका को इस स्थिति की ओर ले जाने वाले कारक:
क्रमिक सरकारों द्वारा आर्थिक कुप्रबंधन: एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने एक दोहरा घाटे – बजट की कमी तथा चालू खाता घाटा – की स्थितियां उत्पन्न की और इसे जारी भी रखा।
वर्तमान सरकार की लोकलुभावन नीतियां: उदाहरण के लिए करों में कटौती।
महामारी का प्रभाव: देश की महत्वपूर्ण ‘पर्यटन अर्थव्यवस्था’ में नुकसान और साथ ही विदेशी श्रमिकों द्वारा देश में भेजे मुद्रा संकट के उदाहरण जाने वाले धन की कमी।
श्रीलंका के आर्थिक संकट के पीछे क्या है कारण ?
नई दिल्ली : भारत का पडोसी मुल्क श्रीलंका इस वक़्त आर्थिक संकट के चलते डूबने की कगार पर है। वर्षों के संचित उधार, रिकॉर्ड मुद्रास्फीति, विदेशी मुद्रा की कमी, महामारी के कारण मांग में भारी गिरावट और कथित सरकारी कुप्रबंधन के कारण अरबों का कर्ज ने श्रीलंका मुद्रा संकट के उदाहरण को न केवल एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट में घसीटा है, साथ मुद्रा संकट के उदाहरण ही एक बड़े राजनीतिक उथल-पुथल की तरफ धकेला है। राष्ट्रीय आय से अधिक राष्ट्रीय व्यय और निर्यात से अधिक आयात के साथ, श्रीलंका जुड़वां घाटे वाली अर्थव्यवस्था का एक उत्कृष्ट उदाहरण बन गया है। श्रीलंका ने संकट से बचने के लिए एशियाई विकास बैंक, भारत और चीन से ऋण की मांग की है।
ईंधन, आवश्यक वस्तुओं और बिजली की भारी कमी के बीच लोग अपनी सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरे हैं। इस बीच, समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ गठबंधन ने संसद में बहुमत खो दिया। विपक्ष ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के एक प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिन्होंने हिंसक विरोध के बीच प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के मंत्रिमंडल के 26 मंत्रियों के इस्तीफे के बाद सोमवार को ‘एकता सरकार’ बनाने का आह्वान किया था। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने सोमवार को पद छोड़ने से इनकार कर दिया था, लेकिन कहा था कि वह उस पार्टी को सरकार सौंपने के लिए तैयार हैं, जिसके पास संसद में 113 सीटें हैं।देश का आर्थिक-राजनीतिक संकट लगातार बढ़ रहा है, और पाकिस्तान की तरह यहां भी राजनितिक गहमागहमी बढ़ने की संभावना है।
वित्तीय अनुशासनहीनता का अंत अच्छा नहीं होता
लंका में आर्थिक संकट की स्थिति कई वर्षों से बन रही थी, इसलिए महामारी या यूक्रेन युद्ध पर सारा दोष नहीं मढ़ा जा सकता है। ये दो बाहरी कारक हैं और निश्चित रूप से इनका असर भी रहा है, लेकिन ये सुविधाजनक राजनीतिक बहाने भी हैं। यह सही है कि महामारी के कारण पर्यटन से होने वाली कमाई लगभग शून्य हो गयी। अन्य देशों में कार्यरत श्रीलंकाई कामगारों का रोजगार छूटने से बाहर से भी पैसा आना बहुत कम हो गया है। ये कामगार अमूमन आठ अरब डॉलर सालाना भेजते थे। इन दो वजहों से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ। रही सही कसर तेल की बढ़ती कीमतों ने पूरी कर दी, क्योंकि श्रीलंका पूरी तरह आयातित तेल पर निर्भर है, किंतु जो तबाही और अस्थिरता हम अभी देख रहे हैं, वह कई वर्षों से तैयार हो रही थी। बाहरी आर्थिक झटके इस कारण भारी साबित हुए, क्योंकि अर्थव्यवस्था के घरेलू आधार पहले से लगातार कमजोर होते जा रहे थे। यदि किसी अर्थव्यवस्था में कम और संभालने लायक वित्तीय घाटे की स्थिति नहीं है या समुचित मुद्रा भंडार नहीं है या मुद्रा संकट के उदाहरण मुद्रास्फीति नियंत्रण में नहीं है या कराधान ठीक नहीं है, तो थोड़ा सा आंतरिक या बाहरी झटका भी आर्थिक संकट की स्थिति पैदा कर सकता है। अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में गिरावट मुख्य रूप से पॉपुलिस्ट आर्थिक नीतियों तथा खराब आर्थिक संकेतों के प्रति सबकी लापरवाही के कारण आयी है। उदाहरण के लिए, आम तौर पर वृद्धि के समय बड़े वित्तीय घाटे को यह कह कर नजरअंदाज कर दिया जाता है कि यह आर्थिक बढ़ोतरी के लिए जरूरी है। वित्तीय घाटे की ऐसी स्थिति खर्च बढ़ने या करों में कटौती से आती है। श्रीलंका पहला देश नहीं है, जो विदेशी बॉन्ड निवेशकों द्वारा मंझधार में छोड़ दिया मुद्रा संकट के उदाहरण गया हो। श्रीलंका के हालात अर्जेंटीना के विदेशी विनिमय संकट की तरह खराब हो सकते हैं। संप्रभु डॉलर बॉन्ड जारी करने की योजना मुद्रा संकट के उदाहरण बना रहे भारत के लिए यह स्थिति एक चेतावनी हो सकती है। जब आप किसी अन्य मुद्रा में उधार लेते हैं, तो आपके पास कर्ज से बाहर निकलने के लिए उससे मुकरने या उस मुद्रा को छापने की स्वतंत्रता नहीं होती। लोक-लुभावन नीतियों और वित्तीय अनुशासनहीनता का अंत अच्छा नहीं होता। वर्ष 1991 में भारत का संकट भी ऐसे मुद्रा संकट के उदाहरण ही कारकों का परिणाम था, जिनका असर 1990 के खाड़ी युद्ध और महंगे तेल से बेहद चिंताजनक हो गया तथा मुद्रा संकट पैदा हो गया।