पुट पर नयी प्रविष्टियां

पिछली प्रविष्टियों में हम भली-भांति देख समझ चुके हैं कि वस्तुगत जगत के संवेदनात्मक बिंबों ( sense images ) की रचना ख़ुद ही, काफ़ी हद तक, मनुष्य के व्यावहारिक क्रियाकलाप पर और सारी संस्कृति पर निर्भर होती है। इस तरह व्यवहार, संज्ञान की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है और संवेदनात्मक ( sensory ) और अनुभवात्मक ( empirical ) ज्ञान के बनने के स्तरों पर प्रभाव डालने लगता है। संकल्पनाओं ( concepts ) और निर्णयों ( judgments ) की रचना पर तो इसका प्रभाव और भी स्पष्ट हो जाता है। हर मानसिक ( mental ) या बौद्धिक ( intellectual ) क्रिया, भौतिक वस्तुओं के साथ किये जानेवाले क्रियाकलाप यानी व्यवहार के प्रभावांतर्गत ही रूपायित ( shaped ) और विकसित होती है। जब संकल्पनाएं ( अपकर्षण abstraction ) तथा उनमें निहित कथनों ( statements ) की रचना प्रक्रिया पूरी हो जाती है और हमें यह फ़ैसला करना होता है कि कौनसे कथन सत्य हैं और कौनसा असत्य, तो हम फिर व्यवहार का सहारा लेते हैं, जो इस बार हमारे ज्ञान की सत्यता को परखने के साधन, यानी सत्य की कसौटी ( criterion of truth ) के रूप में काम करता है।
यही है वह जगह
१९३६ में गुजरात साहित्य परिषद के समक्ष परिषद के पत्रकारिता प्रभाग की रपट महादेव देसाई ने प्रस्तुत की थी । उक्त रपट के प्रमुख अनुदित हिस्से इस ब्लॉग पर मैंने दिए थे । नीचे की कड़ी ऑनलाईन पीडीएफ़ पुस्तिका के रूप में पेश है । मुझे उम्मीद है कि पीडीएफ़ फाइल में ऑनलाईन पेश की गई इस पुस्तिका का ब्लॉगरवृन्द स्वागत करेंगे और उन्हें इसका लाभ मिलेगा । महादेव देसाई गांधीजी के सचिव होने के साथ-साथ उनके अंग्रेजी पत्र हरिजन के सम्पादक भी थे । कई बार गांधीजी के भाषणों से सीधे टेलिग्राम के फार्म पर रपट बना कर भाषण खतम होते ही भेजने की भी नौबत आती थी । वे शॉर्ट हैण्ड नहीं जानते थे लेकिन शॉर्ट हैण्ड जानने वाले रिपोर्टर अपने छूटे हुए अंश उनके नोट्स से हासिल करते थे ।
इस ब्लॉग पर पुस्तिका की पोस्ट-माला (लिंक सहित) नीचे दी हुई है :
पत्रकारिता (३) : खबरों की शुद्धता , लेकिरानी , पत्रकार , लेखक : ले. किशन पटनायक
( लेख का पिछला भाग ) पत्रकारों में एक निपुणता होती है । उनकी भाषा चुस्त होती है । वे तर्क और भावना का पुट देकर विषयों पर रोशनी डालते हैं । लेकिन विज्ञापन सामग्री के रचनाकारों में भी तो ये सारी योग्यतायें होती हैं । कुछ विज्ञापनों को पढ़ते वक्त पुट पर नयी प्रविष्टियां भ्रम हो जाता है कि हम साहित्य या दर्शन पढ़ रहे हैं । विज्ञापन सामग्री बनाने वाले का नाम नहीं छपता है । कुछ अरसे के बाद छप सकता है । क्यों नहीं ? राजनैतिक – सामाजिक मुद्दों पर समाचार – टिप्पणी लिखनेवालों की ज्यादा चर्चा होती है । उनकी प्रतिष्ठा बनती है । उस प्रतिष्ठा का बड़ा हिस्सा यह है कि वे एक दैत्याकार उद्योग के बुद्धिजीवी हैं । प्रतिष्ठा का दूसरा हिस्सा यह है कि कुछ पत्रकारों में लेखकवाला अंश भी होता है । यहाँ हम ’लेखक’ शब्द का इस्तेमाल बहुत संकुचित अर्थ में कर रहे हैं । लेखक वह है जो अपनी समग्र चेतना के बल पर अभिव्यक्ति करता है । लेखक की कसौटी पर पत्रकार की कोटि लेखक और लिपिक के बीच की है । जैसे किसी जाँच आयोग का प्रतिवेदन लिखनेवाला कर्मचारी , कनूनी बहस की अरजी लिखनेवाला वकील या पर्यटन गाइड लिखनेवाला भी लेखक ही होता है। आज के दिन आप नहीं कह सकते हैं कि एक अच्छा पत्रकार एक घटिया साहित्यकार से बेहतर है । दोनोंके प्रेरणा स्रोत अलग हैं । यह हो सकता है कि कोई व्यक्ति साहित्य लिखना छोड़कर पत्रकार के रूप में अच्छा नाम कमाए । अभी सिर्फ भारतीय भाषाओं की पिछड़ी हुई पत्र – पत्रिकाओं में साहित्यिकों को पत्रकारिता के काम के लिए बुलाया जाता है।अत्याधुनिक पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी परिपाटी खत्म हो गई है , क्योंकि साहित्यिकों में ऐसे संस्कार होते हैं , जो पत्रकारिता के लिए अयोग्यता के लक्षण हैं ।
पत्रकारिता : दुधारी तलवार : महादेव देसाई
साहित्य की परिभाषा और परिधि में आने लायक पत्रकारीय लेखन को हासिल करने के लिए हमें क्या करना होगा ? चिरंजीवी साहित्य लिखने का अधिकार तो गिने-चुने लोगों को है । रस्किन जिसे कुछ कमतर आँकते हुए ‘सुवाच्य लेखन’ की कोटि के रूप में परिभाषित करते हैं उसके अन्तर्गत हमारा पत्रकारीय लेखन कैसे आ सकता है ? -मैं इसकी चर्चा करना चाहता हूँ । सुवाच्य लेखन की कोटि में आने की जरूरी शर्त है कि वह लेखन बोधप्रद हो , आनन्दप्रद हो तथा सामान्य तौर पर लोकहितकारी हो : उसके अंग तथा उपांग लोकहितकी परम दृष्टि से तैयार किए गये हों । आधुनिक समाचारपत्र औद्योगिक कारखानों की भाँति पश्चिम की पैदाइश हैं । हमारे देश के कारखाने जैसे पश्चिम के कारखानों के प्रारम्भिक काल का अनुकरण कर रहे हैं , उसी प्रकार हमारे देशी भाषाओं के अखबार देशी अंग्रेजी अखबारों के ब्लॉटिंग पेपर ( सोख़्ता ) जैसे हैं तथा हमारे अंग्रेजी अखबार ज्यादातर पश्चात्य पत्रों का अनुकरण हैं । अनुकरण अच्छे और सबल हों तब कोई अड़चन नहीं होती, क्योंकि जिस कला को सीखा ही है दूसरों से , उसमें अनुकरण तो अनिवार्य होगा । हमारे अखबारों में मौलिकता हो अथवा अनुकरण, यदि वे जनहितसाधक हो जाँएं तो भी काफ़ी है, ऐसा मुझे लगता है । जैसे यन्त्रों का सदुपयोग और दुरपयोग दोनो है , वैसे ही अखबारों के भी सदुपयोग और दुरपयोग हैं ,कारण अखबार यन्त्र की भाँति एक महाशक्ति हैं । लॉर्ड रोज़बरी ने अखबारों की उपमा नियाग्रा के प्रपात से की है तथा इस उपमा की जानकारी के बिना गांधीजीने स्वतंत्र रूप से कहा था : ” अखबार में भारी ताकत है । परन्तु जैसे निरंकुश जल-प्रपात गाँव के गाँव डुबो देता है,फसलें नष्ट कर देता है , वैसे ही निरंकुश कलम का प्रपात भी नाश करता है । यह अंकुश यदि बाहर से थोपा गया हो तब वह निरंकुशता से भी जहरीला हो जाता है ।भीतरी अंकुश ही लाभदायी हो सकता है । यदि यह विचार-क्रम सच होता तब दुनिया के कितने अख़बार इस कसौटी पर खरे उतरते ? और जो बेकार हैं ,उन्हें बन्द कौन करेगा ? कौन किसे बेकार मानेगा ? काम के और बेकाम दोनों तरह के अखबार साथ साथ चलते रहेंगे । मनुष्य उनमें से खुद की पसन्दगी कर ले । “
जहां पेंग्युन भी उड़ सकती हैं
के बारे में उन्मुक्त
मैं हूं उन्मुक्त - हिन्दुस्तान के एक कोने से एक आम भारतीय। मैं हिन्दी मे तीन चिट्ठे लिखता हूं - उन्मुक्त, ' छुट-पुट', और ' लेख'। मैं एक पॉडकास्ट भी ' बकबक' नाम से करता हूं। मेरी पत्नी शुभा अध्यापिका है। वह भी एक चिट्ठा ' मुन्ने के बापू' के नाम से ब्लॉगर पर लिखती है। कुछ समय पहले, १९ नवम्बर २००६ में, 'द टेलीग्राफ' समाचारपत्र में 'Hitchhiking through a non-English language blog galaxy' नाम से लेख छपा था। इसमें भारतीय भाषा के चिट्ठों का इतिहास, इसकी विविधता, और परिपक्वत्ता की चर्चा थी। इसमें कुछ सूचना हमारे में बारे में भी है, जिसमें कुछ त्रुटियां हैं। इसको ठीक करते हुऐ मेरी पत्नी शुभा ने एक चिट्ठी 'भारतीय भाषाओं के चिट्ठे जगत की सैर' नाम से प्रकाशित की है। इस चिट्ठी हमारे बारे में सारी सूचना है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि हम क्यों अज्ञात रूप में चिट्टाकारी करते हैं और इन चिट्ठों का क्या उद्देश्य है। मेरा बेटा मुन्ना वा उसकी पत्नी परी, विदेश में विज्ञान पर शोद्ध करते हैं। मेरे तीनों चिट्ठों एवं पॉडकास्ट की सामग्री तथा मेरे द्वारा खींचे गये चित्र (दूसरी जगह से लिये गये चित्रों में लिंक दी है) क्रिएटिव कॉमनस् शून्य (Creative Commons-0 1.0) लाईसेन्स के अन्तर्गत है। इसमें लेखक कोई भी अधिकार अपने पास नहीं रखता है। अथार्त, मेरे तीनो चिट्ठों, पॉडकास्ट फीड एग्रेगेटर की सारी चिट्ठियां, कौपी-लेफ्टेड हैं या इसे कहने का बेहतर तरीका होगा कि वे कॉपीराइट के झंझट मुक्त हैं। आपको इनका किसी प्रकार से प्रयोग वा संशोधन करने की स्वतंत्रता है। मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप ऐसा करते समय इसका श्रेय मुझे (यानि कि उन्मुक्त को), या फिर मेरी उस चिट्ठी/ पॉडकास्ट से लिंक दे दें। मुझसे समपर्क का पता यह है।एक उत्तर दें जवाब रद्द करें
श्रेणियां
फीडबर्नर से बनी फीड चिट्ठे की प्रविष्टियां पढ़ें
Email Subscription
पुराने लेख
नयी प्रवष्टियां
- अम्मां यादों में
- ऊर्मिला की कहानी
- यदि यह आनन्द नहीं तब और क्या
- दूसरे ग्रहों पर जीवन, उन पर बसेरा – कल्पना आर्थर सी क्लार्क की
- सौ साल पहले…
Bakbak (बकबक) पर नयी प्रविष्टियां
- An error has occurred; the feed is probably down. Try again later.
नयी टिप्पणियां
बुलबुल मारने पर दोष… पर अरे, यह तो मेरे ध्यान में था ह… उन्मुक्त पर बचपन की प्रिय पुस्तकें rkrahulkmr पर बचपन की प्रिय पुस्तकें Gulab dulichand Pars… पर तूफानी-अंधेरी रात, बस स्टॉप और… Abhay Chauhan पर तूफानी-अंधेरी रात, बस स्टॉप और… उन्मुक्त
- Blog/Podcast - Problems/Information (3)
- ipr (37)
- इतिहास (14)
- ई-पाती (18)
- कानून (88)
- खगोलशास्त्र (36)
- गणित (66)
- जीवनी (113)
- दर्शन (148)
- पर्यावरण (14)
- पसन्द-नापसन्द (14)
- पुस्तक समीक्षा (110)
- पॉडकास्ट (84)
- प्रौद्योगिकी (1)
- फिल्म समीक्षा (18)
- महिला अधिकार (32)
- यात्रा विवरण (203)
- यौन शिक्षा (9)
- विचार (20)
- विज्ञान (82)
- विज्ञान कहानी समीक्षा (19)
- शिष्टाचार (4)
- सूचना (30)
- सूचना प्रद्योगिकी (41)
- सॉफ्टवेयर (62)
- हास्य (5)
पुट पर नयी प्रविष्टियां
![]()
नयी दिल्ली, 11 मार्च (पुट पर नयी प्रविष्टियां वार्ता) सर्बियाई राजधानी के स्टार्क एरिना में 18 से 20 मार्च तक होने वाली विश्व एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप बेलग्रेड 2022 के लिए भारत शॉट पुटर तजिंदरपाल सिंह तूर, लॉन्ग जम्पर एम श्रीशंकर और स्प्रिंटर दुती चंद को मैदान में उतारेगा।
एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आदिल जे सुमारिवाला ने कहा कि एएफआई को खुशी है कि बेलग्रेड 2022 में उसका अच्छा प्रतिनिधित्व होगा, पुरुषों को उनकी रैंकिंग के आधार पर प्रविष्टियां मिल रही है जबकि दुती चंद को विश्व एथलेटिक्स द्वारा निमंत्रण दिया गया है। रोड टू बेलग्रेड 2022 सूची में श्रीशंकर पुट पर नयी प्रविष्टियां 14वें और तजिंदरपाल सिंह तूर 18वें स्थान पर हैं।
उन्होंने कहा, "हमने देखा है कि दोनों ने क्रमशः राष्ट्रीय ओपन जंप और राष्ट्रीय ओपन थ्रो प्रतियोगिताओं में अच्छा शुरुआती सीजन फॉर्म दिखाया है और उन्हें विश्व इंडोर चैंपियनशिप पुट पर नयी प्रविष्टियां में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की उम्मीद है। विश्व एथलेटिक्स द्वारा दुती चंद को 60 मीटर स्पर्धा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है.
दुती चंद पहली भारतीय एथलीट होंगी, जो अगले शुक्रवार को 60 मीटर मुकाबले में उतरेंगी। उसके बाद में श्रीशंकर लॉन्ग जंप फाइनल में प्रतियोगियों में शामिल होंगे, जबकि तजिंदरपाल सिंह तूर 19 मार्च की देर शाम शॉट पुट फाइनल में एक्शन में होंगे। तीन दिवसीय चैंपियनशिप में पुरुषों और महिलाओं के लिए 12-12 स्पर्धाएं होंगी।
गौरतलब है कि एएफआई के अध्यक्ष सुमारिवाला वर्ल्ड इंडोर चैंपियनशिप बेलग्रेड 2022 के लिए जूरी सदस्य हैं। भारतीय एथलीट 15 मार्च को नई दिल्ली से रवाना होंगे।समय के साये में
यहां पर द्वंद्ववाद पर कुछ सामग्री एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने संज्ञान के द्वंद्वात्मक सिद्धांत के अंतर्गत सत्य की द्वंद्ववादी शिक्षा पर चर्चा का समापन किया था, इस बार हम सत्य के ही संदर्भों में संज्ञान में व्यवहार की भूमिका का समाहार करेंगे ।
यह ध्यान में रहे ही कि यहां इस श्रृंखला में, उपलब्ध ज्ञान का सिर्फ़ समेकन मात्र किया जा रहा है, जिसमें समय अपनी पच्चीकारी के निमित्त मात्र उपस्थित है।
संज्ञान में व्यवहार की भूमिका
( the role of practice in knowing )यह समझने के बाद कि सत्य क्या है, अब यह पूछा जा सकता कि वस्तुगत सत्य ( objective truth ) को कैसे प्रमाणित किया जाता है, उसे कैसे परखा जाता है और उसे किससे निष्कर्षित ( drawn ) किया जाता है तथा सत्य और असत्य ज्ञान ( knowledge ) के बीच कैसे भेद किया जाता है। हालांकि हम यहां पहले ही इस पर विस्तार से चर्चा कर चुके हैं फिर भी एक बार पुनः संज्ञान में व्यवहार की भूमिका का इस उदेश्य से भी समाहार कर लेते हैं।