सप्ताहांत पर व्यापार क्यों?

जन से दूर जल सप्ताह
यदि सरकार पानी के अनुशासित उपयोग को सचमुच बढ़ावा देना चाहती; उसे ‘आधार’ की तरह जनयोजनाओं से मिलने वाली लाभ से जोड़ देती। सरकार सचमुच में पानी का संतुलन बनाना चाहती है, तो एक नियम बनाए और इसका लागू होना सुनिश्चित करे - “जो जितना पानी निकाले, उतना और वैसा पानी संजोये भी।’’ यह सभी के लिए हो। यह एक अकेला नियम लागू होकर ही मांग-उपलब्धि के अंतर को इतना कम कर देने वाला है, बाकी बहुत सारे प्रश्न स्वतः गौण हो जायेंगे। जलनीति प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक सुनिश्चित कर सके, तो दूसरे कई विवाद होंगे ही नहीं। ‘भारत जल सप्ताह’ सम्पन्न हुआ। कभी कुंभ पानी की चिंता करता था; अब पानी की चुनौतियों का समाधान तलाशने का एक नया अंतरराष्ट्रीय, आधिकारिक और सालाना मंच मौजूद है। भारत सरकार ने पिछले साल ‘भारत जल सप्ताह’ की शुरुआत की थी। इस साल 8-12 अप्रैल तक चला’ द्वितीय ‘भारत जल सप्ताह’ कई मायने में खास था। इसमें करीब 200 खास पर्चे प्रस्तुत किए गए। विज्ञान भवन और इंडिया हैबिटेट जैसी खास जगह इसके लिए चुनी गई। ‘फिक्की’ जैसे खास संगठन इसके साथी बने। जाहिर है कि इसमें भाग लेने वाले करीब 2000 प्रतिभागी भी खास ही रहे होंगे। इस बार का विषय भी खास ही था- पानी का कुशल प्रबंधन: चुनौतियाँ और समाधान। कृषि, बिजली,उद्योग और घरेलु जलापूर्ति के कई तकनीकी और नीतिगत पहलुओं पर इस आयोजन में खास चर्चा भी हुई। आधिकारिक होने के कारण भी यह चर्चा खास कही जा सकती है। चर्चा के समानान्तर अन्य स्थलों पर तकनीकी व व्यापारिक प्रदर्शनी भी हुई। यूं पानी के व्यापार और तकनीकी की नुमाइश कहकर इस प्रदर्शनी की आलोचना की जा सकती है; लेकिन सच है कि प्रदर्शित तकनीक व प्रणालियां जलापूर्ति और प्रदूषण समस्या से निपटने में रुचि रखने वाले निजी संस्थानों/उद्योगों के लिए ख़ासी उपयोगी थी। जल सप्ताह आयोजित करने की इस पूरी कवायद के लिए भारत सरकार की तारीफ की जानी चाहिए; लेकिन आम आदमी को इस जल सप्ताह में सहभागी होने से वंचित रखने को लेकर इस आयोजन की तारीफ कतई नहीं की जा सकती। इसके लिए आयोजकों की आलोचना की जानी चाहिए। इसे लेकर हिमांशु ठक्कर और मनोज मिश्र ने एक सत्र में कड़ा विरोध जताया; जो कि जायज़ ही था। आयोजन में शामिल होने के लिए फ़ीस आठ हजार रुपया रखी गई थी। आठ हजार रुपया देने वालों के लिए पंजीकरण आखिर तक खुला रहा। इसे बगैर संस्था वाले मेरे जैसे पानी कार्यकर्ता तो वहन नहीं ही कर सकते। क्या यह ठीक है?
देखें तो, इस पूरे आयोजन की सारी जुगत आम आदमी तक पानी पहुंचाने के लिए थी। क्या आम आदमी की जरूरत से जुड़ी चर्चा उसके बगैर हो सकती है? फिर यह विरोधाभास क्यों? आखिर यह आयोजन ऐसा भी क्या खास था कि मीडिया ने भी इसमें हुई चर्चाओं को आम करने की कोशिश नहीं की? मैं भलीभांति जानता हूं कि यह आयोजन नीतिगत निर्णय की आधारभूत चर्चा के लिए आयोजित अंतरराष्ट्रीय जलसंसद जैसा है। यह भी सच है कि भीड़ में भाषण हो सकते हैं, नीतिगत निर्णय नहीं लिए जा सकते। इस सब के बावजूद मैं मानता हूं कि आम सहभागिता के बगैर ऐसे आयोजन सबको पानी सुलभ कराने जैसे खास लक्ष्य को पा ही नहीं सकते। यदि पानी की चुनौतियों से निपटना है, तो इसे बंद दीवारों की चुनौतियों से बाहर निकालना जरूरी है; और यह संभव भी है। . तभी ‘भारत जल सप्ताह’ सही मायने में जलकुंभ की जगह ले सकेगा
।ऐसे महत्वपूर्ण आयोजनों में जन सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए भारत के प्रत्येक राज्य व जिले में आधिकारिक स्तर पर सालाना जल सप्ताह आयोजित किए जाने की जरूरत है। इनमें प्रत्येक ग्रामसभा/नागरिक समितियों की सहभागिता आवश्यक कर्तव्य की तरह सुनिश्चित करनी होगी। अपने-अपने स्तर पर स्थानीय जल समस्याओं, उपलब्धियों और ज़रूरतों के अनुकूल रास्ते बनाने की दृष्टि से स्थानीय जलनीति, योजना व क्रियान्वयन कार्यक्रम प्रस्तुत करने को ऐसे स्थानीय जल सप्ताह का दायित्व बनाना होगा। भारत के हर जिले से स्थानीय जल सप्ताह द्वारा तय एक जिला जल प्रतिनिधि को ‘भारत जल सप्ताह’ का सक्रिय सहभागी बनने का अधिकार हो। उनसे प्रतिभागिता फ़ीस लेने की बजाय उसके आने-जाने के खर्च व रहने-खाने की व्यवस्था करने के ‘भारत जल सप्ताह’ के आयोजकों का ज़िम्मा हो। उनकी सहभागिता के लिए खास सत्र हो। उनकी राय भारत की राय बने। स्थानीय जल योजनाओं व कार्यानुभवों के आधार पर राष्ट्रीय जलनीति, योजना व कार्यक्रमों का निर्धारण हो। हर वर्ष जलनीति व योजना की समीक्षा तथा आवश्यकतानुसार परिमार्जन हो। विकेन्द्रित निर्णयों से एकीकृत जलप्रबंधन की ओर जाने का यही रास्ता है। भारत जैसे विविध भूगोल, विविध मौसम व जल जरूरत वाले देश में यह एक जरूरत है। क्या सरकार यह करेगी?
ऐसा न किए जाने के नतीजा है कि आयोजन पानी की तुलना में बांधों की मंजूरी और उनकी सुरक्षा की चिंता करता ज्यादा नजर आया। इसी का नतीजा है कि नई राष्ट्रीय जलनीति का दस्तावेज़ किसी को भी पानी मुफ्त देने के खिलाफ राय रखता है; उसे भी नहींं, जिसके पास देने के लिए पैसा न हो। यह दस्तावेज़ ‘भारत जल सप्ताह’ के मौके पर औपचारिक रूप से जारी किया गया। कहने को इस दस्तावेज़ में तारीफ के लिए बहुत कुछ है; लेकिन जलनीति का सारी सद्भावना एक बिंदु पर आकर चुक जाती है। सरकारें चाहती हैं कि पानी के लिए लोगों से ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूला जाए। उसकी राय में बिजली के कम मूल्य निर्धारण से पानी और बिजली.. दोनों की बर्बादी होती है। कीमतें बढ़ाई जाएं। जलनीति बहुत ही चालाकी के साथ जलउपभोक्ता संघों को जलशुल्क एकत्र करने, जल की मात्रा के प्रबंधन तथा रखरखाव का वैधानिक अधिकार देने की बात कहकर उन पर ज़िम्मेदारी तो डालती है, लेकिन पानी की दर तय करने के असल अधिकार से उन्हें दूर रखती है। जलनीति यह अधिकार राज्य के हाथ में रखती है।
इस जलनीति का सबसे खतरनाक कदम भूजल को निजी हक से निकालकर सार्वजनिक बनाना है। अभी तक ज़मीन के नीचे का पानी का मालिक होता है। यदि जलनीति का बीज यदि धरती में अंकुरित हुआ होता, तो नीति कहती कि भूजल के अतिदोहन पर लगाम लगाने का यह ठीक रास्ता नहीं है। स्थानीय परिस्थितियों व जनसहमति के जरिए जलनिकासी की अधिकतम गहराई को सीमित कर जलनिकासी को नियंत्रित तथा जलसंचयन को जरूरी बनाया जा सकता है। यदि सरकार पानी के अनुशासित उपयोग को सचमुच बढ़ावा देना चाहती; उसे ‘आधार’ की तरह जनयोजनाओं से मिलने वाली लाभ से जोड़ देती। सरकार यदि सचमुच पानी का संतुलन बनाना चाहती है, तो एक नियम बनाए और इसका लागू होना सुनिश्चित करे - “जो जितना पानी निकाले, उतना और वैसा पानी संजोये भी।’’ यह सभी के लिए हो। यह एक अकेला नियम लागू होकर ही मांग-उपलब्धि के अंतर को इतना कम कर देने वाला है, बाकी बहुत सारे प्रश्न स्वतः गौण हो जायेंगे। जलनीति प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक सुनिश्चित कर सके, तो दूसरे कई विवाद होंगे ही नहीं।
यदि ‘भारत जल सप्ताह’ का यह आयोजन आगे चलकर भारत के पानी के समक्ष चुनौतियों को कार्यरूप में उतारने का जनोन्मुखी रास्ता न बना सका, तो इसे भारतीय जलक्षेत्र में कारपोरेट निवेश कर मुनाफ़ा कमाने वाले व उनके सहयोगियों के क्लब के रूप में याद किया जायेगा। यह अच्छा नहीं होगा।
हाईकोर्ट में याचिका- अगर 8 लाख रुपये सालाना आय ईडब्ल्यूएस है तो ढाई लाख की आय पर टैक्स क्यों
मद्रास हाईकोर्ट में द्रमुक पार्टी के सदस्य कुन्नूर सीनिवासन द्वारा द्वारा दाखिल याचिका में वित्त अधिनियम, 2022 की पहली अनुसूची, भाग I, पैराग्राफ ए को रद्द करने की मांग की है. अधिनियम का यह हिस्सा आयकर की दर तय करता है. कोर्ट ने इसे लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. The post हाईकोर्ट में याचिका- अगर 8 लाख रुपये सालाना आय ईडब्ल्यूएस है तो ढाई लाख की आय पर टैक्स क्यों appeared first on The Wire - Hindi.
मद्रास हाईकोर्ट में द्रमुक पार्टी के सदस्य कुन्नूर सीनिवासन द्वारा द्वारा दाखिल याचिका में वित्त अधिनियम, 2022 की पहली अनुसूची, भाग I, पैराग्राफ ए को रद्द करने की मांग की है. अधिनियम का यह हिस्सा आयकर की दर तय करता है. कोर्ट ने इसे लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.
मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)
नई दिल्ली: मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै खंडपीठ में एक याचिका में सवाल किया गया है कि यह कैसे संभव है कि आयकर के लिए 2.5 लाख रुपये की वार्षिक आय आधार है जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने 8 लाख रुपये से कम की वार्षिक आय को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में शामिल करने के फैसले को बरकरार रखा है.
लाइव लॉ के मुताबिक, इस याचिका को लेकर जस्टिस आर. महादेवन और जस्टिस सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सोमवार को केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय, वित्त कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय को नोटिस भेजा है.
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को 3:2 के बहुमत के फैसले से बरकरार रखा और कहा कि यह कोटा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इस संविधान संशोधन को बरकरार रखा था, जबकि जस्टिस एस. रवींद्र भट और तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने अल्पमत ने इससे असहमति जताई थी.
जस्टिस भट का कहना था कि संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त पिछड़े वर्गों को इसके दायरे से पूरी तरह से बाहर रखना और एससी-एसटी समुदायों को बाहर रखना कुछ और नहीं, बल्कि भेदभाव है जो समता के सिद्धांत को कमजोर और नष्ट करता है.
गौरतलब है कि ईडब्ल्यूएस कोटे में ‘आर्थिक रूप से कमजोर’ वर्ग में शामिल करने के लिए आय को एक निर्धारक कारक माना गया है. हालांकि, जैसा कि याचिका में कहा गया है, कोटे में आने वाला एक बड़ा वर्ग उस स्लैब में है जिसे आयकर का भुगतान करना होता है.
यह याचिका एक किसान और द्रमुक के सदस्य कुन्नूर सीनिवासन द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें उन्होंने वित्त अधिनियम, 2022 की पहली अनुसूची, भाग I, पैराग्राफ ए को रद्द करने की मांग की है. अधिनियम का यह हिस्सा आयकर की दर तय करता है, जो कहता है कि जिस किसी की भी सालाना आय ढाई लाख रुपये से अधिक नहीं है, उसे कर देने की जरूरत नहीं है.
याचिकाकर्ता का कहना है कि यह हिस्सा अब संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21 और 265 के खिलाफ है. मद्रास हाईकोर्ट मामले को चार सप्ताह बाद सुनेगा.
द हिंदू ने बताया कि 82 वर्षीय सीनिवासन तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक की एसेट प्रोटेक्शन काउंसिल के सदस्य है और उनका कहना है कि कि सरकार द्वारा ढाई लाख लाख रुपये की सालाना आय पाने वाले व्यक्ति से टैक्स वसूलना मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है.
सीनिवासन ने अपनी याचिका में कहा है कि क्योंकि सरकार ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण श्रेणी में आने के लिए सकल वार्षिक आय के 8 लाख रुपये से कम तय की है, इसलिए इनकम टैक्स के लिए आय स्लैब भी बढ़ाया जाना चाहिए.
सीनिवासन की याचिका में कहा गया है, ‘वही अन्य सभी वर्गों पर लागू किया जाना चाहिए.’ उन्होंने यह भी कहा है कि सरकार को सालाना 7,99,999 रुपये तक कमाने वाले व्यक्ति से टैक्स नहीं वसूलना चाहिए. और ऐसे लोगों को मिलाकर ईडब्ल्यूएस कैटेगरी होने के बावजूद टैक्स लेना ‘तर्कसंगत’ नहीं है.
लाइव लॉ के अनुसार, उन्होंने यह भी कहा, ‘जब सरकार ने एक तय आय मानदंड निर्धारित किया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आरक्षण के तहत लाभ लेने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग परिवार की आय 7,99,999 रुपये की सीमा तक होनी चाहिए, तो प्रतिवादियों को 7,99,999 रुपये की सीमा तक आय वाले व्यक्ति से टैक्स लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने में कोई तर्कसंगतता और समानता नहीं है.’
सीनिवासन की याचिका में वह बात भी दोहराई गई है जो ईडब्ल्यूएस आरक्षण के आलोचकों ने कही है- यह कि जब प्रति वर्ष 7,99,999 रुपये से सप्ताहांत पर व्यापार क्यों? सप्ताहांत पर व्यापार क्यों? कम आय वाले लोगों का एक वर्ग आरक्षण प्राप्त करने के लिए पात्र है, जबकि अन्य लोग आय मानदंड के आधार पर आरक्षण प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं हैं. याचिका के मुताबिक, ‘यह मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है.’
मालूम हो कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन ने पहले 10% ईडब्ल्यूएस कोटा प्रदान करने वाले 103वें संवैधानिक संशोधन को यह कहते हुए ‘ख़ारिज’ कर दिया था कि इससे गरीबों के बीच ‘जाति-भेदभाव’ पैदा होता है.
इंटरव्यू में पूछे जाते हैं ये 15 सवाल, सही जवाब से नौकरी पक्की
चाहे प्रतियोगी परीक्षाएं हों या प्राइवेट सेक्टर में जॉब, ज्यादातर उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया में इंटरव्यू यानी पर्सनैलिटी टेस्ट का चरण ही सबसे टफ लगता है। इसका कारण है, ज्ञान होने के बावजूद आत्मविश्वास में कमी और निर्णय क्षमता न होने के चलते इंटरव्यू पैनल को ठीक से उत्तर न दे पाना। अगर आप भी इंटरव्यू को लेकर नर्वस रहते हैं, तो कुछ कॉमन प्रश्न और उनके आदर्श उत्तर जानकर अपनी तैयारी कर सकते हैं।
किसी भी इंटरव्यू में मौजूद पैनल उम्मीदवारों की कम्युनिकेशन स्किल्स, आत्मविश्वास और इंटेलिजेंस को परखता है। इसीलिए इस स्टेज की तैयारी करते समय उम्मीदवारों को अपनी पर्सनल ट्रेट्स, एपियरेंस और स्पीकिंग स्किल्स पर ध्यान देना चाहिए। आम तौर पर इंटरव्यू में पूछे जाने वाले सवाल जॉब स्पेसिफिक होते हैं,
लेकिन कुछ कॉमन सवाल हर इंटरव्यू में पूछे जाते हैं। हम ऐसे ही कॉमन इंटरव्यू क्वेश्चन्स और उनके आन्सर्स के बारे में बता रहे हैं, जिनकी तैयारी करके आप इंटरव्यू में सफल हो सकते हैं।
1: अपने बारे में कुछ बताइए?
आमतौर पर इसी प्रश्न से इंटरव्यू की शुरुआत होती है। अगर आप अनुभवी हैं, तो इस सवाल का जवाब अपनी पिछली जॉब के बारे में बताते हुए अपनी 2-3 उपलब्धियों को बताकर दें। अगर आप एक फ्रेशर हैं, तो अपनी क्वॉलिफिकेशन, क्वॉलिटीज और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज के बारे में बताएं।
2: आप हमारी कंपनी से क्यों जुड़ना चाहते हैं/ आप इस फील्ड में क्यों आना चाहते हैं?
इसके जरिए इंटरव्यू पैनल जॉब के लिए आपके समर्पण को जानने की कोशिश करता है। आप जॉब रिक्वायरमेंट्स के अनुसार अपना जवाब दें और उन्हें बताएं कि आप इन रिक्वायरमेंट्स को पूरा करने के लिए कितने पैशनेट हैं और आपमें इसकी क्षमता भी मौजूद है।
3: आपकी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ क्या है?
यह सवाल उम्मीदवारों के लिए अपनी क्षमता को हाइलाइट करने का एक अवसर है। आप अपने उन गुणों के बारे में बताएं, जो उस जॉब प्रोफाइल के लिए अनुकूल हों। आप कुछ कॉमन क्वॉलिटीज जैसे एक्सिलेंट कम्युनिकेटर, हार्डवर्किंग एटीट्यूड, टीम प्लेयर आदि को भी शामिल कर सकते हैं।
4: आपकी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?
यह एक ट्रिकी क्वेश्चन है। सीधे तौर पर इसका उत्तर देने का मतलब है, अपनी ही कमजोरियों को इंटरव्यू पैनल के
सामने उजागर कर देना। इसका उत्तर देने का सबसे अच्छा तरीका है ऐसे गुणों को कमजोरी के तौर पर प्रस्तुत करना, जो बहुत कम लोगों में होते हैं, जैसे मॉडेस्टी, पंक्चुएलिटी, फ्लेक्सिबिलिटी, हर सिचुएशन में पॉजिटिव रहने की एबिलिटी आदि।
5: आपकी ड्रीम जॉब क्या है?
इस प्रश्न के माध्यम से यह जानने की कोशिश की जाती है कि मौजूदा जॉब प्रोफाइल से आपकी सोची हुई जॉब
कितनी मैच करती है और आप उस माहौल में काम कर पाएंगे या नहीं। इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले जॉब प्रोफाइल के बारे में अच्छी तरह से जान लें और उसी के अनुसार जवाब दें।
6: आपके करियर में गैप क्यों है?
जाहिर है, इसका उत्तर देने के लिए आपको अपनी पृष्ठभूमि के बारे में बताना होगा। अगर एक भी निगेटिव इंप्रेशन
इंटरव्यू पैनल पर पड़ा, तो आप रिजेक्ट भी हो सकते हैं। ऐसे में अगर आपके करियर में कोई गैप है या पढ़ाई में गैप हुआ है, तो पैनल को उसका सही-सही कारण बताएं। आपके बताने का तरीका कन्विंसिंग और पॉजिटिव होना चाहिए।
7: आपने अपनी पिछली जॉब क्यों छोड़ी/ क्यों छोड़ना चाहते हैं?
याद रखिए, आपको अपने पिछले एंप्लॉयर या एक्स बॉस के बारे में इंटरव्यू में कभी कोई नकारात्मक बात नहीं कहनी चाहिए। इससे आप ही का इंप्रेशन खराब होगा। आप कुछ ठोस कारण, जैसे करियर ग्रोथ, फाइनेंशियल स्टेबिलिटी, जॉब सिक्योरिटी आदि बता सकते हैं।
8: आप प्रेशर या स्ट्रेस से कैसे डील करते हैं?
आपको ऐसा उत्तर देना चाहिए, जिससे यह पता चले कि आप तनावपूर्ण परिस्थितियों से कितने प्रोडक्टिव होकर
और सकारात्मक तरीके से डील कर सकते हैं। हो सकता है कि इंटरव्यू पैनल आपको कोई टेंस सिचुएशन बताकर पूछे कि आप ऐसे में क्या करेंगे। आप चाहें तो अपना ऐसा कोई अनुभव शेयर कर सकते हैं।
9: आपकी सैलरी रिक्वायरमेंट क्या है?
ह अगर आपसे इंटरव्यू पैनल ने यह सवाल पूछा है, तो समझ लीजिए कि अब तक का आपका इंटरव्यू बिल्कुल सही दिशा में गया है। ऐसे समय आपको कोई भी ऐसी डिमांड नहीं करनी चाहिए, जो अब तक की आपकी मेहनत पर पानी फेर दे। कंपनी आपको कितनी सैलरी देगी, इसका थोड़ा-बहुत आइडिया आपको पहले से ही होगा। आप उससे थोड़ी ज्यादा राशि की मांग करें ताकि आसानी से नेगोसिएशन कर सकें।
10: आप खुद को 5 साल बाद कहां देखते हैं?
ह अगर आपसे यह सवाल पूछा जाए, तो आप अपने भविष्य के लक्ष्यों को लेकर ईमानदार और स्पष्ट रहें। मगर साथ ही दो बातों का ध्यान रखें: एक, पैनल आपके करियर की यथार्थवादी अपेक्षाओं के बारे में जानना चाहता है। दो, आपकी महत्वाकांक्षा में यह जॉब क्या मायने रखती है।
11: अब तक आपके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
जाहिर है, सप्ताहांत पर व्यापार क्यों? इस सवाल के जवाब में आपको उन सभी उपलब्धियों के बारे में बताना है जो आपने अपनी पिछली सभी जॉब्स में हासिल कीं। इसमें आपको मिले प्रमोशन, अवॉर्ड्स आदि सभी का जिक्र होना चाहिए।
12: आपको इस वेकेंसी के बारे में कहां से पता चला?
वैसे तो किसी ओपनिंग के बारे में जानने के बहुत से स्रोत होते हैं, लेकिन आपको अपने जवाब के जरिए यह बताना है कि आप कंपनी में काम करने के लिए कितने उत्सुक हैं और उसमें निकलने वाली वेकेंसीज को चेक करते रहते सप्ताहांत पर व्यापार क्यों? हैं। आप ऐसा भी कुछ कह सकते हैं कि आप टेक्नोलॉजी को लेकर पैशनेट हैं और यह कंपनी इस सेक्टर में सबसे बेहतरीन है।
13: हम आपको ही क्यों हायर करें?
ह इस सवाल का जवाब ऐसा होना चाहिए, जो वेकेंसी की जरूरत से मैच करता हो यानी आपको अपने उन गुणों के बारे में बताना होगा, जिनसे इंटरव्यू पैनल को लगे कि आप उस पद के लिए फिट हैं। हर वेकेंसी की रिक्वायरमेंट में उम्मीदवार के कुछ गुण दिए गए होते हैं। आप उसी के कुछ पॉइंट्स अपने जवाब में शामिल कर सकते हैं।
14: अपनी पिछली जॉब की चुनौतियों के बारे में बताइए?
ह इंटरव्यू पैनल यह जानना चाहता है कि आप संघर्ष से कैसे डील करते हैं। भले ही सवाल आपको कन्फ्यूज करने के लिए हो, लेकिन आपको सभी चुनौतियों को पॉजिटिव तरीके से बताना होगा।
15: क्या आप कुछ जानना चाहते हैं?
ह आपको हमेशा कम से कम एक प्रश्न एडवांस में तैयार करके रखना चाहिए, जो आप पैनल से पूछ सकें। आप जॉब प्रोफाइल से ही जुड़ा कोई सवाल पूछ सकते हैं। इससे पैनल पर यह इंप्रेशन पड़ेगा कि आपकी इस जाॅब में कितनी दिलचस्पी है।
यदि आठ लाख तक कमाने वाले ईडब्लूएस तो क्यों दें वे आयकर
मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका में सवाल किया गया है कि यह कैसे संभव है कि आयकर के लिए 2.5 लाख रुपए की वार्षिक आय आधार है जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने आठ लाख रुपए से कम की वार्षिक आय को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में शामिल करने के फैसले को बरकरार रखा है।
सांकेतिक फोटो।
हाई कोर्ट ने दायर याचिका को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि जब आठ लाख रुपए से कम (799,999) आय वाले लोग ईडब्लूएस में हैं तो ढाई लाख रुपए से ज्यादा आय वाले लोगों को आयकर क्यों देना चाहिए।मद्रास हाई कोर्ट ने इसी पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति आर महादेवन और न्यायमूर्ति सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सोमवार को केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय, वित्त कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय को नोटिस देने बाकी पेज 8 पर का आदेश दिया और मामले सप्ताहांत पर व्यापार क्यों? को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।
हाई कोर्ट में यह याचिका डीएमके पार्टी की एसेट प्रोटेक्शन काउंसिल के कुन्नूर सीनीवासन ने की है। याचिका करने वाले ने हाल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाया है। जनहित अभियान बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्लूएस श्रेणी के लोगों के लिए 10 फीसद आरक्षण की व्यवस्था को सही ठहराया है। सीनिवासन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साबित हो गया है कि 8 लाख से कम सालाना आय वाले गरीब हैं।
ऐसे लोगों से इनकम टैक्स वसूलना ठीक नहीं हैं। ये ऐसे लोग हैं जो पहले से ही शिक्षा और अन्य क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। वर्तमान आयकर अधिनियम अनुसूची सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ है क्योंकि इससे आर्थिक रूप से गरीब नागरिक से कर एकत्र होगा और वे उच्च समुदाय के लोगों के साथ स्थिति या शिक्षा या आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के ईडब्लूएस आरक्षण के फैसले को सही बताया है। जिसके तहत अनारक्षित जातियों के लोगों में से जिन की वार्षिक कमाई 7,99,999 रुपए तक है, उनको आर्थिक रूप से पिछड़ा मान कर आरक्षण का फायदा मिलेगा।
साल के आखिरी 25 दिनों में इन 4 राशियों के लोगों की बदल सकती है किस्मत, जानिये कहीं आपकी राशि तो नहीं शामिल
Fenugreek Seed: मेथी दाना का सेवन इस बीमारी में करता है ज़हर जैसा काम, फायदे की जगह हो सकता है नुकसान
Horoscope 2022: नवंबर माह के बचे हुए 13 दिनों में कुछ खास हो सकता है घटित, जानिए क्या कहता है आपका राशिफल
''कानून के शासन के लिए कोई सम्मान नहीं'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'दुर्भावनापूर्ण' गुंडा एक्ट कार्यवाही शुरू करने के लिए गोरखपुर के डीएम पर 5 लाख का जुर्माना लगाया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय पर एक व्यक्ति के खिलाफ यूपी गुंडा अधिनियम के तहत 'दुर्भावनापूर्ण' कार्यवाही शुरू करने के लिए पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। इस व्यक्ति को उसके स्वामित्व वाली संपत्ति को खाली करने और इसे जिला प्रशासन के पक्ष में करने के लिए मजबूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सैयद वैज मियां की खंडपीठ ने राज्य सरकार को मामले की जांच कराने और गोरखपुर के तत्कालीन दोषी जिला मजिस्ट्रेट के. विजयेंद्र पांडियन के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया है।
संक्षेप में मामला
यह मामला गोरखपुर में 5 पार्क रोड पर स्थित 30,000 वर्ग फुट के बंगले से संबंधित है, जिसका मालिकाना हक याचिकाकर्ता के पास है। वर्ष 1999 में, तत्कालीन डीएम ने एक फ्रीहोल्ड डीड के माध्यम से याचिकाकर्ता को संपत्ति हस्तांतरित कर दी थी।
फ्रीहोल्ड डीड के निष्पादन के समय, इस परिसर पर व्यापार कर विभाग का कब्जा था,जिसने इस परिसर को किराए पर ले रखा था और जब उसने किराए के भुगतान में चूक की, तो याचिकाकर्ता ने बेदखली की मांग के साथ-साथ किराए के बकाया की वसूली के लिए एक दीवानी मुकदमा दायर किया।
व्यापार कर विभाग को बेदखल करने का निर्देश देते हुए मुकदमा आंशिक रूप से तय किया गया था, हालांकि, व्यापार कर विभाग ने परिसर खाली नहीं किया था। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से निष्पादन अदालत को एक महीने की अवधि के भीतर निष्पादन का काम पूरा करने का निर्देश प्राप्त किया। हालांकि व्यापार कर विभाग इस विवाद को सुप्रीम कोर्ट तक ले गया, लेकिन उसे इस मामले में कोई राहत नहीं मिली।
अंततः 30 नवंबर 2010 को परिसर का कब्जा याचिकाकर्ता को सौंप दिया गया और उसने संपत्ति पर निर्माण शुरू कर दिया। इसका जिला प्रशासन ने विरोध किया था। उसने फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां कोर्ट ने सिटी मजिस्ट्रेट को संपत्ति के शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोक दिया था।
वाद के लंबित रहने के दौरान, उपायुक्त (प्रशासन) व्यापार कर विभाग,गोरखपुर द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 189, 332, 504, 506 के तहत एक एफआईआर दर्ज करवा दी गई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने डीसी को धमकी दी थी। हालांकि, इस एफआईआर में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से 'कोई जबरदस्ती कार्रवाई नहीं' करने का आदेश प्राप्त किया।
इसके अलावा, 10 अप्रैल, 2019 को रात लगभग 10.00 बजे, वर्दी में 10-12 पुलिस अधिकारी, सादी पोशाक में 6-7 अधिकारियों के साथ कथित तौर पर याचिकाकर्ता के घर गए और फर्जी मुठभेड़ में जान से मारने की धमकी दी और यह पूरा प्रकरण सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गया।
अगले ही सुबह जिला मजिस्ट्रेट गोरखपुर ने याचिकाकर्ता के खिलाफ उत्तर प्रदेश गुंडा एक्ट की धारा 3/4 के तहत नोटिस जारी कर दिया। उसी को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने वर्तमान रिट याचिका हाईकोर्ट में दायर की है।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
शुरुआत में, कोर्ट ने नोट किया कि जिला प्रशासन इस तथ्य से असंतुष्ट था (शुरुआत से) कि याचिकाकर्ता ने विवादित संपत्ति को प्राप्त/खरीदा है जो एक प्रमुख स्थान पर है और इस प्रकार, जिला प्रशासन ने वर्ष 2002 में 1999 के फ्रीहोल्ड डीड (याचिकाकर्ता के पक्ष में) को रद्द करने की मांग करते हुए एक मुकदमा भी दायर किया था।
कोर्ट ने आगे कहा कि यूपी सरकार ने (मई 2009 में) डीएम गोरखपुर को फ्रीहोल्ड डीड को रद्द करने की मांग वाला मुकदमा वापस लेने के लिए एक पत्र लिखा था। 2006 में भी यूपी सरकार ने वाद वापस लेने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
इस पृष्ठभूमि को देखते हुए अदालत ने कहा कि मामले के तथ्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की गई ज्यादती और शक्ति के घोर दुरुपयोग को दर्शाते हैं क्योंकि उन्होंने याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर मुकदमा वापस लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा बार-बार जारी किए गए आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया था।
''. प्रथम दृष्टया, हम आश्वस्त हैं कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही न केवल दुर्भावनापूर्ण है, बल्कि विवादित संपत्ति के संबंध में याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए है, जो कानूनी रूप से याचिकाकर्ता के साथ निहित है। इसके अलावा, प्रतिवादी का आचरण (विशेष रूप से दूसरे प्रतिवादी, जिला मजिस्ट्रेट, गोरखपुर) स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है कि उसके मन में नियम और कानून के लिए कोई सम्मान नहीं है और वह खुद के लिए एक कानून बन गया है . कानूनी कार्यवाही में विवादित संपत्ति प्राप्त करने में विफल रहने पर, दूसरे प्रतिवादी ने आपराधिक प्रशासन के मंच का दुरुपयोग करने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ यूपी गुंडा अधिनियम लागू करने का सहारा लिया। यहां ऊपर उल्लिखित तथ्य, बिना किसी अनिश्चित शब्दों के, दूसरे प्रतिवादी के आचरण को दर्शा रहे हैं। दूसरे प्रतिवादी ने खुद को दीवानी और आपराधिक परिणामों के लिए उजागर किया है।''
इन परिस्थितियों में न्यायालय ने गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी गुंडा एक्ट नोटिस को निरस्त करते हुए डीएम गोरखपुर के कार्यालय पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है। जो आदेश की तारीख से 10 सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के पास जमा कराना होगा। कोर्ट ने गोरखपुर के तत्कालीन डीएम विजयेंद्र पांडियन के खिलाफ भी जांच शुरू करने का आदेश दिया है।
केस टाइटल - कैलाश जायसवाल बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. व 3 अन्य,आपराधिक मिश्रित रिट याचिका संख्या - 10241/2019