लाभ पद्धति

लाभ पद्धति
145. (1) "कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ" या "अन्य स्रोतों से आय" शीर्ष के अधीन आय उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए या तो नगद रूप में या निर्धारिती द्वारा नियमित रूप से 95 प्रयुक्त वाणिज्यिक लेखा पद्धति के अनुसार संगणित की जाएगी।
(2) केन्द्रीय सरकार समय-समय पर 95 राजपत्र में उन लेखा मानकों को अधिसूचित कर सकेगी जिनका अनुपालन निर्धारिती के किसी वर्ग द्वारा या आय के किसी वर्ग की बाबत किया जाना है।
(3) जहां निर्धारिती के लेखाओं की शुद्धता या पूर्णता के बारे में निर्धारण अधिकारी का समाधान नहीं होता है या जहां उपधारा (1) में दी गर्इ लेखा पद्धति या उपधारा (2) के अधीन अधिसूचित लेखा मानक का निर्धारिती द्वारा नियमित रूप से अनुसरण नहीं किया गया है, लाभ पद्धति वहां निर्धारण अधिकारी धारा 144 में दी गर्इ रीति से निर्धारण कर सकेगा।]
93. वित्त अधिनियम, 1995 द्वारा 1.4.1997 से प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पूर्व प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1987 द्वारा 1.4.1988/1.4.1989 से और वित्त अधिनियम, 1990 द्वारा 1.4.1989 से भूतलक्षी प्रभाव से यथा संशोधित धारा 145 इस प्रकार थी :
'145. लेखा पद्धति–(1) "कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ" तथा "अन्य स्रोतों से आय" शीर्षों के अधीन प्रभार्य आय निर्धारिती द्वारा नियमित रूप से प्रयुक्त लेखा पद्धति के अनुसार संगणित की जाएगी :
परन्तु जहां लेखा सही और निर्धारण अधिकारी के समाधानप्रद रूप में हैं किन्तु प्रयुक्त पद्धति ऐसी है कि निर्धारण अधिकारी की राय में, इससे आय की कटौती उचित रूप से नहीं हो सकती है तो संगणना ऐसे आधार पर और ऐसी रीति से की जाएगी जो निर्धारण अधिकारी अवधारित करे :
परन्तु यह और कि जहां निर्धारिती द्वारा कोर्इ लेखा पद्धति नियमित रूप से प्रयुक्त नहीं की जाती है वहां प्रतिभूतियों पर ब्याज के रूप में कोर्इ आय उस पूर्ववर्ष की आय के रूप में कर से प्रभार्य होगी जिसमें ऐसा ब्याज निर्धारिती को देय होता हो :
परन्तु यह भी कि इस उपधारा की कोर्इ भी बात निर्धारिती को उसके द्वारा पूर्ववर्ष में प्रतिभूतियों पर प्राप्त किसी ब्याज की बाबत आय-कर से प्रभारित किए जाने से विरत नहीं करेगी यदि ऐसे ब्याज पर उससे लाभ पद्धति पूर्व किसी पूर्ववर्ष में आय-कर प्रभारित नहीं किया गया था।
(2) जहां निर्धारण अधिकारी का निर्धारिती के लेखाओं के सही होने और पूरे होने के बारे में समाधान नहीं हुआ है अथवा जहां कोर्इ लेखा पद्धति निर्धारिती द्वारा नियमित रूप से प्रयुक्त नहीं की गर्इ है वहां निर्धारण अधिकारी धारा 144 में दी गर्इ रीति से निर्धारण कर सकेगा।'
94. अनुदेश सं. 1310, तारीख 26.2.1980 और परिपत्र सं. 491, तारीख 30.6.1986 के लिए देखिए टैक्समैन्स मास्टर गाइड टु इन्कम टैक्स ऐक्ट। सुसंगत केस लॉज़ के लिए देखिए टैक्समैन्स मास्टर गाइड टु इन्कम टैक्स ऐक्ट। "नियमित रूप से" पद के अर्थ के लिए देखिए टैक्समैन्स डायरेक्ट टैक्सेज मैनुअल, खंड 3.
95. अधिसूचित लेखा मानकों के लिए देखिये अधिसूचना सं. का. आ. 69(र्इ), तारीख 25.1.1996. ब्यौरे के लिए देखिए टैक्समैन्स मास्टर गाइड टु इन्कम टैक्स ऐक्ट।
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प्रश्न 7. ख्याति के मूल्यांकन की विधियाँ कौन-कौनसी हैं? समझाइए।
उत्तर- ख्याति के मूल्यांकन की निम्नलिखित विधियाँ प्रचलित हैं-
1. औसत लाभ आधार विधि- इस विधि के अन्तर्गत कुछ गत वर्षों के सामान्यत: 3 या 5 वर्षों के लाभों को जोड़कर तथा योग के वर्षों की संख्या का भाग देकर औसत लाभ ज्ञात कर लिया जाता है, तत्पश्चात् किसी सम्मत संख्या या संलेख में दी गयी एक निश्चित संख्या का गुणा करके फर्म की ख्याति का मूल्य ज्ञात कर लिया जाता है।
2. भारित औसत विधि- इस विधि के अनुसार प्रत्येक वर्ष के लाभ में भार का गुणा करके गुणनफल ज्ञात कर लिए जाते हैं। गुणनफलों का योग कर उसमें भार के योग का भाग लगा दिया जाता है। भागफल भारित औसत लाभ कहलाएगा। इसमें निर्धारित वर्ष संख्या का गुणा करके ख्याति का मूल्य ज्ञात कर लिया जाता है।
3. अधिलाभ आधार विधि- अधिलाभ वह अतिरिक्त लाभ है, जो एक फर्म की अपेक्षा अधिक लाभ अर्जित करती है। इस विधि के अन्तर्गत सर्वप्रथम गत वर्षों का औसत लाभ ज्ञात किया जाता है। तत्पश्चात् इस औसत लाभ की तुलना उस ब्याज से की जाती है, जो प्रचलित ब्याज की दर से व्यापार में विनियोजित पूँजी पर निकाला जाता है। ब्याज से औसत लाभ का जितना आधिक्य आता है, वही अधिलाभ कहलाता है। इस अधिलाभ में किसी सम्मत संख्या या साझेदारी संलेख में वर्णित संख्या का गुणा करके ख्याति का मूल्य ज्ञात कर लिया जाता है।
4. पूँजीकरण विधि- इस विधि के अनुसार व्यापार के औसत लाभों को 100 से गुणा किया जाता है और इस गुणनफल को उस व्यापार पर प्राप्त होने वाले सामान्य लाभ की दर से विभाजित किया जाता है। इस प्रकार आयी हई राशि में से फर्म की शुद्ध सम्पत्तियों का मूल्य घटाने के बाद जो राशि बचती है, वह ख्याति की राशि होती है। इस विधि को निम्न सूत्र द्वारा प्रकट किया जा सकता है-
ख्याति = ( औसत लाभ × 100 / सामान्य लाभ का प्रतिशत) - शुद्ध सम्पत्तियाँ
5. वार्षिक विधि- यदि एक साझेदारी फर्म में अधिलाभ हो रहा है तो यह अनुमान लगाया जाता है कि भविष्य में यह लाभ कितने वर्षों तक होता रहेगा। जितने वर्षों तक अधिलाभ प्राप्त करने की आशा होती है, उतने वर्षों के अधिलाभ का वर्तमान मूल्य वार्षिकी विधि द्वारा निकाला जाता है। ख्याति=अधिलाभ x वार्षिक विधि द्वारा 1 रु. का वर्तमान मूल्य
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पंचकर्म आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की विशिष्टता है जो किसी चिकिंत्सा पद्धति में नहीं है अनेक जटिल एंव असाध्य व्याधियां जो केवल औषधोपचार से उपचारित नहीं हो पाती , वे पंचकर्म से सहजता से ठीक की जा सकती है।
इस चिकित्सा में प्रमुख रूप से स्नेहन , स्वेदन , वमन , विरेचन , वस्ति , नस्य व रक्त मोक्षण आदि क्रिया-कलापों के माध्यम से शरीर व मन में स्थित विकृत दोषों को बाहर निकाला जाता है। जिससे दुबारा रोगों की उत्पति न हो।
स्नेहन-स्वेदनः- ये दोनों प्रक्रियाएं पूर्व कर्म कहलाती हैं , जो कि पंचकर्म की प्रत्येक क्रिया से पहले आवश्यक रूप से की जानी चाहिए , इसके माध्यम से रोग उत्पादक दोषों को शरीर के अंगों से शिथिल कर कोष्ठ में लाया जाता हैं , कई बार अल्प दोष की स्थिति होने पर रोगी को केवल इन पूर्वकर्म से लाभ हो जाता है।
वमन-कर्मः- यह क्रिया प्रमुख रूप से कफज रोगों व वात कफज रोगों के लिये की जाती है। जिसमें उरः प्रदेश , सिर , अस्थि संधिगत व श्लेष्म स्थानों में उत्पन्न विभिन्न कफज रोगों के संशोधन हेतु आवश्यक होता हैं।
विरेचन कर्मः- यह क्रिया विकृत पित्तज दोषों के लिये की जाती हैं , जिसमें मुख्य रूप से गुदा मार्ग से दोषों को निर्धारित मापदण्डों के तहत क्रमशः प्रवर , मध्यम , अवर के 30, 20 व 10 वेग लाकर रोगी को दोष मुक्त करवाया जाता है।
वस्तिः- इस कर्म को आयुर्वेदीय वैज्ञानिकों ने आधी चिकित्सा कहा है। यह प्रमुख रूप से 80 प्रकार के वातज रोगों को ठीक करने के लिये प्रयोग में लायी जाती है। साथ ही इसके प्रमुख प्रकार आस्थापन , अनुवासन , कालवस्ति , क्रमवस्ति , योगवस्ति तथा मात्रावस्ति आदि का रोग व रोगीनुसार प्रयोग कर लाभ पहुंचाया जाता है।
नस्यः- पंचकर्म की इस क्रिया के माध्यम से सिर में स्थित दोषों को नासा मार्ग से बाहर निकाल कर रोगी को लाभ पहुंचाया जाता है। इसके प्रमुख प्रकारों में नस्य , प्रतिमर्शनस्य , नावन , अवपीडन नस्य प्रमुख हैं। जिनका रोग व रोगी अनुसार चयन कर उपयोग में लाया जाता है।
लाभ पद्धति रक्त मोक्षणः- पंचकर्म की इस विधा द्वारा शरीर में स्थित दूषित रक्त को बाहर निकाला जाता हैं जिसमें दोष व रोगी की प्रकृति के अनुसार जलौकावचरण , श्रृंग , अलावू आदि के माध्यम से दोष अनुसार चयन कर रोग को ठीक किया जाता है।
अतः राजस्थान में आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा पद्धति को अधिकाधिक उपयोगी बनाने के लिए वर्ष 2013-14 से चरणबद्ध तरीके से कुल 36 पंचकर्म केन्द्र संचालित किये जा रहे लाभ पद्धति है। जिला जयपुर में तीन केन्द्र संचालित किये जा रहे है। वर्तमान में प्रतिवर्ष 1.00 लाख रूपये औषधियों हेतु उपलब्ध कराये जाते है , तथा मशीनरी एवं उपकरणों पर 2.00 लाख रूपये केन्द्र खुलने पर उपलब्ध कराये जाते है।
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पाँच- किंगडम वर्गीकरण पद्धति क .
Updated On: 27-06-2022
Video Solution: पाँच- किंगडम वर्गीकरण पद्धति का एक रेखाचित्र बनाएँ। इस वर्गीकरण से लाभ एवं हानियों का उल्लेख करें।
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Aap ko kya acha लाभ पद्धति nahi laga
Question Details till 16/11/2022
हेलो फ्रेंड प्रश्न है पांच किंग नंबर की किरण पद्धति का एक रेखाचित्र बनाइए इस वर्गीकरण से लाभ एवं हानियों का उल्लेख करें तो आइए इस प्रश्न का उत्तर देखते हैं सबसे पहले हम क्या करेंगे सबसे पहले हम बनाएंगे रेखाचित्र सबसे पहले हम लोग बनाएंगे रेखाचित्र किसका पांच जगत वर्गीकरण होता है उसका तो यह है जो जीवो का जो वर्गीकरण है उसका ठीके पांच जगह ले कर आएगा फिर प्रोटीस्टा प्रोटिस्टा के बाद आएगा फंकी फंकी के बाद आएगा प्लांटी प्लांटी के बाद आएगा एनीमिया यह प्रस्तुत किया था जो पांच जगत का वर्गीकरण था वह दिया गया था वेट करने किसने दिया था वेट करने यह वर्गीकरण दिया था ठीक है यानी कि निम्नलिखित जो पार जगत का जो वर्गीकरण है उसको दिया था उन्होंने ठीक है तो जो पहला यानी कि जो मैंने आपको प्रोक्रिट बताया था वह किस में आता है वह आता है मोनेरा जगत में किस में लाभ पद्धति आता है मोनेरा जगत में यानी कि यह क्या है जो प्रो
क्रिटिक जो जीव रहते हैं अर्थात जो जीवाणु और जो साइना बेतिया लाभ पद्धति लाभ पद्धति रहते हैं कहते हैं जो जीवाणु और साइनोबैक्टीरिया रहने की आदी जो व्यक्ति रहते हैं रहते हैं फिर क्या बताया मैंने आपको दूसरा जगह मैंने प्रोटिस्टा ठीक है तुझे प्रोटिस्टा जगत रहता है उस प्रोटिस्टा जगत में कौन आते हैं उसमें एक खुशी की न्यू कटिंग जाते हैं उसमें उसमें आते हैं एक कोशिकीय यूकैरियोटिक जो जीव रहते हैं केरियो टिक जो जीव रहते हैं यह इसमें आते हैं फिर जो तीसरा जगत मैंने आपको बताया जो फंगी आने की क्या होता है जो कवक जगत इसमें क्या आते हैं इसमें आते हैं परजीवी कहते हैं परजीवी तथा जो मृत पदार्थों को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं वह ठीक है जी ने जो कोशिका भित्ति रहती है बताएं टंकी बनी रहती है ठीक इसमें आप फिर क्या आता है जो पादप जगत यानी कि जो किंगडम जो प्लांटी आता है ठीक है जो बादल जो जिसमें क्या होते हैं
मैं शेवाल और जो बहुकोशिकीय होते हैं वह शामिल होते हैं क्या होते हैं शेवाल और बहू कोशिकीय और बहू की जो होते हैं वह शामिल होते हैं ठीक है और आखिरी में क्या है जो एनिमलिया ठीक है यानी कि क्या होता है कि जो जंतु का जो जगत आता है क्या आता है जो जंतु का जगत आता है इसमें क्या होते हैं सभी जो बहुकोशिकीय जीव रहते हैं तभी बहू कोशिकीय जीव जीव रहते हैं भाई क्या होते हैं शामिल होते हैं ठीक है और यह जगत का वर्गीकरण था यह ट्वीट करने भी दिया था और किसने दिया था इसको जो मान्यता सबसे ज्यादा प्राप्त होती है अर्थात यह जो वर्गीकरण था यह दिया था मार्गी हूं मार्गी हूं लिया व
देश को क्या मिली थी मान्यता भी मिलती है ठीक है तो यह था इनका जो वर्गीकरण था वह अब हमसे पूछा गया है कि इसके बारे करण से लाभ हानि है क्या लाभ हमें यह है कि हमें जो जागत है उसके बारे में पता चल जाता है हम जो जीव रहते हैं उनके बारे में अध्ययन करते हैं क्या करते हैं जीवो के बारे में अध्ययन करते हैं ठीक है तथा समानता और समानता का पता चलता है समानता एवं समानता का पता चलता है हम इजीली अध्ययन कर पाते हैं ठीक है जो लुप्त हो जाते हैं उनका भी क्या कर सकते हैं अध्ययन कर सकते हैं तथा जो विलुप्त हो गए हैं उनका भी अध्ययन कर सकते हैं साथ ही साथ हम क्या कर सकते हैं साथ ही साथ हम उनके विशेष समूह को पहचानने में सहायता मिलती है ठीक है उनकी जो विशिष्ट पहचान होती है क्या होती है उनकी विशिष्ट पहचान होती है ठीक है कौन से भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं यह भी पता चल जाता है जो विभिन्नता होती है वह कैसे होती है यह भी पता चल जाता
होता है उसी प्रकार की हानिया भी होती है ठीक है यानी कि जो जीव होते हैं एक उसी की बुक हो चुकी उसको क्या किया जाता है अलग अलग रखा जाता है सबकी जो जीव रहते हैं उनका जो अध्ययन रहते हैं जो अध्ययन होता है उनका उनमें क्या होता है कि सारे जो जगत होते हैं उनको क्या करते हैं साथ में रखा जाता है जिसके कारण क्या होता है कि जो अध्ययन रहता है वह डिफिकल्ट हो जाता है थोड़ा ठीक है उनको क्या करते सब को अलग अलग रखा जाता है तो जो पूरा रहता है उसको क्या करना पड़ता है समझना पड़ता है ठीक है अच्छा उनकी जो समानता तथा जो और समानता है वह क्या होती है बहुत सारे जो जीव रहते हैं उन्हीं की होती है समान होती है ठीक है तथा इस वर्गीकरण के कारण बहुत सारे जो जीव है जैसे कि शैवाल और कवक उनको किस में नहीं रखा जाता है पादप जगत में नहीं रखा जाता है तो ठीक है यह क्या होते लाभ पद्धति हैं इसकी जो हानियां होती है वह होती है ना दोस्त आशा करती हूं कि आपको इस प्रश्न का तो समझ आया होगा इस वीडियो को देखने के लिए धन्यवाद
गुणता प्रबंध पद्धति के लाभ IS/ISO 9001
इस वेबसाइट की सामग्री भारतीय मानक ब्यूरो, उपभोक्ता मामले मंत्रालय, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, भारत सरकार, मानक भवन, 9, बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-११०००२, के द्वारा प्रकाशित और प्रबंधित की जाती है।