निवेश के तरीके

क्यों अधिकांश व्यापारी पैसे खो देते हैं

क्यों अधिकांश व्यापारी पैसे खो देते हैं

क्यों अधिकांश व्यापारी पैसे खो देते हैं

घाटे के सभी प्रकार के कारण दिए गए हैं, जिनमें खराब धन प्रबंधन, खराब समय या खराब रणनीति शामिल है। ये कारक व्यक्तिगत व्यापारिक सफलता में एक भूमिका निभाते हैं … लेकिन एक गहरा कारण है कि ज्यादातर लोग हार जाते हैं। अधिकांश व्यापारी इस बात की परवाह किए बिना हारेंगे कि वे कौन से तरीके अपनाते हैं।

क्या आप अपना सारा पैसा शेयरों में खो सकते हैं?

यहां तक कि अगर कोई स्टॉक एक निश्चित चीज़ की तरह दिखता है, तो हमेशा एक मौका होता है कि आप पैसे खो सकते हैं – कहते हैं, अगर कंपनी मुश्किल में पड़ जाती है, अगर अर्थव्यवस्था कठिन समय पर आती है, या अगर बाजार में बड़ी गिरावट आती है।

स्टॉक गिरने पर क्या आप पैसे खो देते हैं?

यदि स्टॉक की कीमत गिरती है, तो लघु विक्रेता कम कीमत पर स्टॉक खरीदकर लाभ कमाता है-व्यापार को बंद कर देता है। बिक्री और खरीद की कीमतों के बीच का शुद्ध अंतर ब्रोकर के साथ तय किया जाता है। हालांकि शॉर्ट-सेलर्स घटती कीमत से मुनाफा कमा रहे हैं, लेकिन जब आप स्टॉक की बिक्री में हार जाते हैं तो वे आपका पैसा नहीं ले रहे हैं।

मैं अपना सारा पैसा शेयर बाजार में क्यों खो रहा हूँ?

शेयर बाजार ऊपर जाने की प्रवृत्ति रखते हैं। यह आर्थिक विकास और निगमों द्वारा निरंतर लाभ के कारण है। कभी-कभी, हालांकि, अर्थव्यवस्था बदल जाती है या संपत्ति का बुलबुला फूट जाता है – इस स्थिति में, बाजार दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। जो निवेशक दुर्घटना का अनुभव करते हैं, यदि वे अपनी पोजीशन बेचते हैं, तो वे पैसे खो सकते हैं, बजाय इसके कि वे वृद्धि की प्रतीक्षा करें।

क्या अच्छे व्यापारी पैसे खो देते हैं?

जो कोई भी व्यापारी बनने की राह पर चलना शुरू करता है, उसे अंततः आंकड़े मिलते हैं कि 90 प्रतिशत व्यापारी शेयर बाजार में व्यापार करते समय पैसा बनाने में विफल होते हैं। यह आँकड़ा मानता है कि समय के साथ 80 प्रतिशत का नुकसान होता है, 10 प्रतिशत का ब्रेक ईवन होता है और 10 प्रतिशत लगातार पैसा कमाते हैं।

क्या होता है अगर आप शेयर बाजार में नुकसान पर बैठते हैं?

दूसरी ओर, आपका पेपर लॉस एक खोया हुआ अवसर बन जाता है यदि आपको लगता है कि स्टॉक यहीं रहने वाला है और आप उस पेपर लॉस पर बैठते हैं। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप अपने पैसे को किसी ऐसी चीज़ में निवेश करने का मौका खो देते हैं जिससे आपको लाभ होता है। कोई भी किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं उठाना चाहता।

ज्यादातर व्यापारी इतना पैसा क्यों खो देते हैं?

[ताइवान में] व्यक्तिगत निवेशकों का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2% है। जिस उद्योग में वे कार्यरत हैं, उसमें निवेशक अधिक वजन वाले स्टॉक हैं। उच्च IQ वाले व्यापारी अधिक म्यूचुअल फंड और बड़ी संख्या में स्टॉक रखते हैं। इसलिए, विविधीकरण प्रभावों से अधिक लाभ उठाएं।

क्या आप बहुत सारे पैसे के व्यापार विकल्प खो सकते हैं?

आप घाटे को कम करने, लाभ की रक्षा करने और अपेक्षाकृत छोटे नकद परिव्यय के साथ स्टॉक के बड़े हिस्से को नियंत्रित करने के लिए विकल्प रणनीतियों का उपयोग कर सकते हैं। बहुत अच्छा लगता है, है ना? यहाँ पकड़ है। ट्रेडिंग विकल्प के दौरान आप अपेक्षाकृत कम समय में आपके द्वारा निवेश की गई पूरी राशि से अधिक भी खो सकते हैं। इसलिए सावधानी से आगे बढ़ना इतना महत्वपूर्ण है।

शेयर बाजार में कितने लोगों का पैसा डूबा है?

Ameriprise Financial के जनवरी 2020 के सर्वेक्षण के अनुसार, चार में से एक से अधिक निवेशकों ने शेयर बाजार में वित्तीय नुकसान का अनुभव किया है, जिससे उनकी समग्र वित्तीय स्थिति प्रभावित हुई है। आज, हाल के आर्थिक व्यवधान को देखते हुए यह अनुपात और भी अधिक होने की संभावना है।

गुजरात चुनाव: ताक़तवर दिख रही भाजपा की जीत की राह आसान नहीं होगी

विपक्ष द्वारा उठाए गए आर्थिक और सामाजिक सरोकारों ने भाजपा को इसके 'गुजराती गौरव' पर भरोसा करने के लिए मजबूर कर दिया है. यह भी महत्वपूर्ण है कि आम आदमी पार्टी ने भाजपा के चुनाव अभियान की दिशा हिंदुत्व से विकास योजनाओं की ओर मोड़ दी है. The post गुजरात चुनाव: ताक़तवर दिख रही भाजपा की जीत की राह आसान नहीं होगी appeared first on The Wire - Hindi.

विपक्ष द्वारा उठाए गए आर्थिक और सामाजिक सरोकारों ने भाजपा को इसके ‘गुजराती गौरव’ पर भरोसा करने के लिए मजबूर कर दिया है. यह भी महत्वपूर्ण है कि आम आदमी पार्टी ने भाजपा के चुनाव अभियान की दिशा हिंदुत्व से विकास योजनाओं की ओर मोड़ दी है.

गुजरात के बोटाड में हुई चुनावी जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: गुजरात भाजपा)

यह देखते हुए कि गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक 16 चुनावी रैलियां और हजारों करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन कर चुके हैं, यह स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ भाजपा 2017 में अपना सबक सीख चुकी है. तब इसने लगातार 20 साल सत्ता में बने रहते हुए चुनाव जीता था, लेकिन पाटीदार आंदोलन और राज्यव्यापी कृषि संकट सहित कई आंदोलनों से मिली कड़ी टक्कर से यह 182 सदस्यीय विधानसभा में 99 सीटों के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गई थी.

इस बार भी भाजपा कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ रही है. सालभर पहले इसने पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया और विजय रूपाणी की जगह भरोसेमंद लेकिन अनुभवहीन भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया. 2017 से 2022 तक इसने कुछ आदिवासी और पाटीदार विधायकों सहित प्रभावशाली विपक्षी नेताओं, जिन्होंने भाजपा के खिलाफ भावनाओं को हवा दी थी, को भी अपने साथ जोड़ा. पार्टी ने कई दिग्गज विधायकों का टिकट काटा और नए चेहरों को उतारा. प्रधानमंत्री, जिनकी उपस्थिति 2017 के अभियान में प्रतिबंधित थी, 2022 में पार्टी का मूल सहारा हैं.

उनकी रैलियों और भाषणों में चतुराई से आदिवासी बेल्ट और सौराष्ट्र क्षेत्रों, जहां 2017 में भाजपा को भारी नुकसान हुआ था, को केंद्र बनाया गया है. कांग्रेस और उसकी सहयोगी भारतीय ट्राइबल पार्टी ने राज्य के उत्तरी छोर से फैले, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा से लगे दक्षिणी इलाकों में आदिवासी बेल्ट में 27 में से 18 सीटें जीती थीं. इसी तरह, सौराष्ट्र और कच्छ के अपने पारंपरिक गढ़ों में 54 निर्वाचन क्षेत्रों में भी भाजपा को झटका लगा था.

प्रधानमंत्री की इन चुनावों में विशेष रुचि केवल इसलिए नहीं है कि गुजरात उनका गृह राज्य है और यह उनकी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा है, बल्कि इसलिए भी है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) राज्य में पहुंच चुकी है. आप ने राज्य के पारंपरिक रूप से द्विध्रुवीय रहे राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया है, जहां वह न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा के लिए भी प्राथमिक चुनौती के तौर पर उभरी है.

आप भले ही इस मैदान में नई खिलाड़ी है, लेकिन वह कोई कमजोर प्रतिद्वंद्वी नहीं है. इसने राज्य में अपने सभी संसाधन लगा दिए हैं और दिल्ली के शीर्ष नेताओं सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और राजेंद्र पाल गौतम पर भाजपा के हमलों बीच भी उत्साही चुनाव अभियान चला रही है. शहरी युवाओं में इसका क्रेज बढ़ा है.

दो महीने पहले आप पर मोदी का ‘रेवड़ी बांटने’ का तंज इस बात का सबूत था कि केजरीवाल की पार्टी ने भाजपा के लिए खतरा पैदा कर दिया है. पहली बार एक आदिवासी राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने से कांग्रेस के इनकार को लेकर राहुल गांधी पर निशाना साधना, भारत जोड़ो यात्रा को नर्मदा बांध विरोधी कार्यकर्ता मेधा पाटकर का समर्थन या कांग्रेस की मुस्लिम-तुष्टिकरण करने वाले के रूप में खिल्ली उड़ाना भाजपा नेताओं के भाषणों के केंद्र में हैं.

हालांकि, आप को किनारे करना मुश्किल हो गया है, जिसने भाजपा को केजरीवाल और अन्य के खिलाफ जोर-शोर से एक फेक न्यूज़ अभियान चलाने के लिए मजबूर कर दिया है. गुजरात की सड़कों पर भाजपा कार्यकर्ताओं को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि केजरीवाल की जड़ें इस्लामिक हैं; या वे हिंदू विरोधी एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं; या भ्रष्ट हैं.

आप ने भाजपा को अपने अभियान को हिंदुत्व से विकास की ओर मोड़ने के लिए क्यों अधिकांश व्यापारी पैसे खो देते हैं मजबूर किया है, जैसा कि उसके चुनावी वादों से स्पष्ट है. हाल के एक भाषण में मोदी ने कहा कि चुनाव विधायक चुनने के बारे में नहीं बल्कि गुजरात के भविष्य का फैसला करने के बारे में है. वर्तमान गुजरात के लिए श्रेय लेने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि यह गुजरात के लिए ‘एक बड़ी छलांग’ लगाने का समय है, यह तय करने का कि यह अगले 25 वर्षों में कैसा होगा. आम आदमी पार्टी के कल्याणकारी मॉडल का मुकाबला करने कोशिश में उनके भाषणों में भाजपा सरकार की शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में उपलब्धियों पर जोर रहता है.

अधिकांश सर्वेक्षणों ने भाजपा की एक और जीत की भविष्यवाणी की है, लेकिन यह आसान नहीं होगा. हालांकि, इसने 2017 में इसके खिलाफ गोलबंद हुए प्रभावशाली पाटीदार समुदाय को 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण और मुख्यमंत्री के तौर पर एक पटेल नेता देकर शांत किया है, फिर भी इसे राज्य भर में विभिन्न जातियों और समुदायों के कम से कम 32 हालिया आंदोलनों के प्रभाव से निपटना होगा.

सीएसडीएस-लोकनीति का एक हालिया चुनाव पूर्व सर्वेक्षण बताता है कि कांग्रेस और आप के बीच विपक्ष के वोटों के लगभग बराबर विभाजन के जरिये आम आदमी पार्टी भाजपा को 2017 की तुलना में अधिक सीटें जीतने में मदद कर सकती है, लेकिन इसका वोट शेयर गिर सकता है.

हालांकि, आप के कई नेताओं को यह विश्लेषण बहुत सरल लगता है क्योंकि उनका मानना है कि उनकी पार्टी 48 शहरी सीटों, जिसे कांग्रेस ने कभी नहीं जीता है, पर भाजपा की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाएगी. आप भले ही जीतने की स्थिति में न हो, लेकिन यह भाजपा के पारंपरिक मतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा छीन सकती है, वहीं कांग्रेस की शहरी उपस्थिति बढ़ने की संभावना है.

सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे के अनुसार, आप को 20% से अधिक वोट मिलने, खुद को मजबूत करने और भविष्य में भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करने की संभावना है.

कांग्रेस ने राहुल गांधी की एक विशाल रैली के साथ अच्छी शुरुआत की थी, जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण वादे किए, लेकिन यह फीका पड़ गया. इसके नेताओं का कहना है कि पार्टी ने पिछले एक साल में डोर-टू-डोर प्रचार पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है और यह जितनी दिखती है उससे कहीं अधिक मजबूत स्थिति में हो सकती है. कांग्रेस ने अपने आधार, जिसमें ओबीसी, दलित, मुस्लिम और आदिवासियों का एक वर्ग शामिल है, को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है.

विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए आर्थिक और सामाजिक सरोकारों ने भाजपा को अपने ‘गुजराती गौरव’ अभियान पर भरोसा करने के लिए मजबूर कर दिया है. यह जोर देकर कह रही है कि भारत के शीर्ष दो नेता गुजरात से हैं और उन्होंने गुजरातियों (और भारतीयों) को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना सिर उठाकर चलने में मदद की है. राज्य के 46% शहरी मध्यवर्ग के लिए यही सबसे महत्वपूर्ण पहलू प्रतीत होता है.

गुजरात: चुनावी रैली में अमित शाह बोले- 2002 में उन्हें सबक सिखाकर ‘स्थायी शांति’क़ायम की

विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खेड़ा ज़िले के महुधा शहर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में राज्य में अक्सर सांप्रदायिक दंगे होते थे. राज्य में आख़िरी बार पूरी तरह कांग्रेस की सरकार मार्च 1995 में थी. साल 1998 से राज्य की सत्ता में भाजपा है. The post गुजरात: चुनावी रैली में अमित शाह बोले- 2002 में उन्हें सबक सिखाकर ‘स्थायी शांति’ क़ायम की appeared first on The Wire - Hindi.

विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खेड़ा ज़िले के महुधा शहर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में राज्य में अक्सर सांप्रदायिक दंगे होते थे. राज्य में आख़िरी बार पूरी तरह कांग्रेस की सरकार मार्च 1995 में थी. साल 1998 से राज्य की सत्ता में भाजपा है.

नई दिल्ली: गुजरात में विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रचार करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि 2002 में हिंसा के अपराधियों को ‘सबक सिखाया गया. उस साल राज्य में हुए दंगों में एक हजार से अधिक मौतें हुई थीं, जिनमें से ज्यादातर मुसलमान थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, अमित शाह खेड़ा जिले के महुधा शहर में एक रैली में थे. शाह ने यह आरोप लगाते हुए भाषण की शुरुआत की कि कांग्रेस ने गुजरात में सांप्रदायिक और जातिगत दंगे भड़काए.

उल्लेखनीय है कि आखिरी बार राज्य में कांग्रेस की सरकार मार्च 1995 में थी. हालांकि, भाजपा से अलग हुए समूह राष्ट्रीय जनता पार्टी की शंकरसिंह वाघेला सरकार को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था, लेकिन साल 1998 से भाजपा सत्ता में रही है.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘गुजरात में कांग्रेस के शासनकाल में अक्सर सांप्रदायिक दंगे होते थे. कांग्रेस विभिन्न समुदायों और जातियों के सदस्यों को एक-दूसरे के खिलाफ उकसाती थी. कांग्रेस ने ऐसे दंगों के जरिये अपने वोट बैंक को मजबूत किया और समाज के एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय किया.’

गुजराती में भाषण देते हुए शाह ने दावा किया कि गुजरात में 2002 में दंगे इसलिए हुए क्योंकि अपराधियों को लंबे समय तक कांग्रेस से समर्थन मिलने के कारण हिंसा में शामिल होने की आदत हो गई थी.

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘लेकिन 2002 में सबक सिखाए जाने के बाद ऐसे तत्वों ने वह रास्ता छोड़ दिया. वे लोग 2002 से 2022 तक हिंसा से दूर रहे. भाजपा ने सांप्रदायिक हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर गुजरात में स्थायी शांति कायम की है.’

शाह ने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया कि किसे ‘सबक सिखाया गया’ या कैसे. जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि दंगों में मरने वालों में अधिकांश मुसलमान थे. मृतकों की कुल संख्या का अनौपचारिक अनुमान 2,000 से अधिक है.

गुजरात दंगों के समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. कई भाजपा और हिंदुत्व नेताओं के साथ दंगों के दौरान मोदी की भूमिका को कई बार जांच के दायरे में लाया गया है. नरसंहार में उनकी कथित भूमिका को लेकर अमेरिका सहित कई देशों ने पहले मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था.

इस साल जून में एक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल द्वारा मोदी को दंगों के लिए मुख्यमंत्री के बतौर उनकी जिम्मेदारी से मुक्त करने के खिलाफ गुजरात दंगों में जान गंवाने वाले कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री की अपील खारिज कर दी थी. इस निर्णय पर शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीशों और विश्लेषकों ने सवाल उठाए थे.

इसके बाद अक्टूबर में गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके 14 परिजनों की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों को अमित शाह की अगुवाई वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुमति के बाद सजामाफी देते हुए समय से पहले रिहा कर क्यों अधिकांश व्यापारी पैसे खो देते हैं दिया गया था.

ज्ञात हो कि गुजरात में दो दशकों से अधिक समय से भाजपा की सरकार होने के बावजूद चुनावी भाषणों में भाजपा के अग्रणी नेता कांग्रेस को राज्य के मुद्दों का जिम्मेदार ठहराते नजर आ रहे हैं.

पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को ‘राज्य बर्बाद करने’ का जिम्मेदार बताया था. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि उन्हें कांग्रेस को कोसने के बजाय बीते 27 वर्षों का हिसाब देना चाहिए.

एक रुपये में टी-शर्ट और 5 रुपये में पैंट, दिल्ली के इस इलाके में रात में ही लग जाती है यह मार्केट

टी-शर्ट


नई दिल्ली: दिल्ली में कपड़ों का एक ऐसा मार्केट जब लोग सोकर उठे भी नहीं होते हैं तब से शुरू हो जाता है। इस बाजार में एक रुपये में टी शर्ट, दस रुपये में पैंट और 20 रुपये में साड़ी मिल जाएगी। दिल्ली के रघुवीर नगर का यह बाजार जिसे घोड़ा मंडी के नाम से भी जाना जाता है। जैसे ही सुबह होती है यहां कपड़ों का ढेर लग जाता है। इस मार्केट में रोजाना 800-1500 लोग कपड़े बेचने आते हैं। इस बाजार में कपड़े कहां से आते हैं और उन्हें कौन खरीदता है इसको लेकर लोगों क्यों अधिकांश व्यापारी पैसे खो देते हैं की उत्सुकता बढ़ जाती है।

सुबह होने से पहले मार्केट में कारोबार हो जाता है शुरू
सुबह होने से पहले 40 वर्षीय विजय पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर नगर की घोड़ा मंडी में कपड़ों के ढेर को छांटने में व्यस्त हैं। वह अपने साधारण मोबाइल फोन की मंद रोशनी में कपड़ों को फोल्ड करते हुए शर्ट, पैंट, बच्चों के कपड़े, स्वेटर, साड़ी, कुर्तियों के अलग-अलग बंडल बनाते हैं। विजय का कहना है कि हम पुराने कपड़े व्यापारियों को बेचते हैं, जो उन्हें देश भर के पिस्सू बाजारों और कारखानों में फेरीवालों को सप्लाई करते हैं। यहां एक बच्चे की टी-शर्ट 1 रुपये में, एक बड़े आदमी की शर्ट 5 रुपये में, पैंट 10 रुपये में, साड़ियां 20 रुपये से लेकर 60 रुपये में मिल जाएंगी।

वाघिरी समुदाय के एक सदस्य, जो दिल्ली भर में पुराने कपड़ों के लिए घरेलू बर्तनों की अदला-बदली के लिए जाने जाते हैं। विजय ने कहा कि वाघिरी के रूप में घोड़ा मंडी में कपड़े बेचना उनका पुश्तैनी पारिवारिक काम रहा है। घोड़ा मंडी, जिसे घोड़े वाला मंदिर के पास स्थित होने के कारण कहा जाता है, सुबह 4 बजे से 9.30 बजे तक यहां हलचल रहती है। अधिकांश विक्रेता वाघिरी समुदाय के क्यों अधिकांश व्यापारी पैसे खो देते हैं सदस्य हैं, जो दिल्ली और पड़ोसी जिलों की कॉलोनियों से एकत्र किए गए पुराने कपड़ों को यहां लाते हैं।

दूसरे मार्केट में यहां से जाता है कपड़ा
इनमें से कुछ कपड़ों को बाजार में लाने से पहले धोते, रंगते या इस्त्री करते हैं। मार्केट में मौजूद हीरा लाल ने बताया कि कोई भी यह नहीं कह सकता कि ये उनकी गुणवत्ता के कारण पुराने परिधान हैं। पैसे वाले लोग नए फैशन के चलते कपड़े जल्द छोड़ देते हैं। इस मंडी से भी लोग कपड़े ले जाकर तिलक नगर के मंगल बाजार सहित दूसरे बाजारों में बेचते हैं। दो दशकों से अधिक समय से घोड़ा मंडी से पुराने कपड़े खरीद रहे लाल ने बताया कि उनके ग्राहक ज्यादातर गरीब मजदूर थे, जो नए स्टाइल के सस्ते कपड़े चाहते थे।

कपड़ों के रीसायकल हब के तौर पर भी इस मार्केट को जाना जाता है। गरीबों को सस्ते कपड़े देने के साथ ही टनों पुराने कपड़ों को लैंडफिल में खत्म होने से भी यह मार्केट रोकता है। स्टॉक कभी लंबे समय तक नहीं चलते हैं। 20 रुपये में स्वेटर, 60 रुपये में लहंगा और 150 रुपये में एक कोट बेचने वाली शोभा ने बताया कि कम कीमत की वजह से हर तरह के कपड़े आसानी से बिक जाते हैं। अंकुर कुमार, जिन्होंने 15 जींस की खरीदारी की और कहा कि हम यहां 50 रुपये की जींस खरीदते हैं और उन्हें हरिद्वार के व्यापारियों को 120 रुपये में बेचते हैं।

बड़ी कॉलोनियों में जाना हुआ मुश्किल
व्यापार के बाद, 50 वर्षीय लक्ष्मी सुबह 11 बजे के आसपास कपड़े के लिए बर्तनों की अदला-बदली करने के लिए निकल जाती हैं। लक्ष्मी ने कहा, दिल्ली की गेट वाली कॉलोनियों में, सुरक्षा गार्ड हमें प्रवेश नहीं करने देते। हालांकि हम कई सालों से इस व्यवसाय में हैं, हम धीरे-धीरे बड़ी कॉलोनियों तक पहुंच खो रहे हैं। पांच बच्चों की मां रेखा ने कहा महामारी के दौरान, हम दान पर जीवित रहे। रेखा ने बताया कि व्यापारियों के साथ कड़ी सौदेबाजी करनी पड़ती है, खासकर अगर वे परिधान में दोष देखते हैं। बेशक, सभी व्यापारी सबसे सस्ती कीमत पर कपड़े चाहते हैं। इसलिए, अगर थोड़ा भी फटा या छेद दिखा तो कीमतें आधी हो जाती हैं।

यहां दूसरे खरीदार भी पहुंचते हैं जिन्हें कपड़े पहनने के लिए नहीं चाहिए। प्लंबर को अपने काम में कपड़े की पट्टियों की आवश्यकता होती है। मशीनों की सफाई के लिए चिथड़े की आवश्यकता होती है। फर्नीचर पॉलिश करने के लिए। इस मार्केट में पहुंचे एक शख्स ने बताया कि मैं हर दिन 1-2 रुपये प्रति पीस के हिसाब से 300-400 टुकड़े खरीदता हूं और उन्हें देश भर के कारखानों में आपूर्ति करता हूं। प्रत्येक टुकड़े पर लगभग 25 पैसे कमाते हैं। कपड़े के अलावा, दूरबीन, मोबाइल चार्जर, इंडक्शन कुकटॉप, केटल, जूते, वाईफाई राउटर और अन्य सामान भी घोड़ा मंडी में मिल जाते हैं।

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