वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति

वित्तीय प्रबंधन (Financial Management) क्या हैं। परिभाषा, विशेषताएँ, और क्षेत्र-
वित्तीय प्रबंध व्यवशाय के नियोजना , संगठन आदि का सम्मलित रूप हैं | इसमे सबसे पहले वित्त की नियोजना बनाना पड़ता हैं की वित्त की प्राप्ति कैसे होगी | फिर यह चेक करेंगे की योजना सही हैं या नही | पैसा कहा से प्राप्त हो और कहा लगाया जाए जिससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके | साधनो को कहा लगाया जाए | फ़र्म अपने वित्त की व्यवस्था कैसे करे | फ़र्म कहा लगाए जिससे सब कुछ आसानी से मिल सके |
जब हम पैसा लगाते हैं तो ऐसे जगह लगाना चाहते हैं जहा अधिक लाभ हो जब तक हम नियोजन नही करेंगे यह संभव नही हैं |
यह एक सतत प्रक्रिया हैं | यह वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति हमेशा चलती रहती हैं |
वित्त का रोज काम होता हैं एक बार प्रोजेक्ट को देखा फिर संगठन और नियंत्रण करते रहते हैं |
इसका विश्लेषण अति आवश्यक होता हैं | इसी आधार पर पैसा लगाते हैं |
यह लेखांखन से अलग अलग होता हैं | यह मैनेजमेंट प्रक्रिया हैं |
इसका छेत्र बहुत बड़ा हैं |
हर संगठन के लिए वित्त आवश्यक हैं |
फ़र्म मे किसी भी विभाग मे वित्त आवश्यक हैं |
यह निर्णय लेने मे सहायक हैं | जो प्रोजेक्ट अच्छा होगा हम वह वित्त को लगाएंगे |
वित्तीय प्रबंधन की परिभाषाएँ-
हॉवर्ड के द्वारा-
” वित्तीय प्रबन्ध से आशय , नियोजन एवं नियन्त्रण कार्यों को वित्त कार्य पर लागू करना है ।”
वित्तीय प्रबंधन की मुख्य विशेषताएं-
उच्च प्रबन्धकीय निर्णयों में सहायक ( Helpful in Top Managerial Decisions)-
दूसरे अर्थों में , वित्तीय प्रबन्ध को सर्वोच्च प्रबन्ध की सफलता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका प्राप्त होती है । टॉप मैनेजमेंट ही वित्तीय प्रबंध का निर्णय देता हैं।
समन्वय का आधार ( Basis of Co-Ordination):
किसी भी उपक्रम में वित्तीय प्रबन्धक अन्य विभागों के सहयोग तथा समन्वय के बगैर सफलता प्राप्त नहीं कर सकता ।माल के खरीदने से लेकर उसको तयार कर कस्टमर तक पाहुचाने तक वित्त्य के समन्वय की आवश्यकता हैं।
केन्द्रीय प्रकृति ( Centralized Nature):
परम्परागत वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति रूप से व्यवसाय में वित्तीय प्रबन्ध यान्त्रिक कार्य था , जबकि आधुनिक रूप में वित्तीय प्रबन्ध का कार्य एक सतत् प्रशासनिक प्रक्रिया है
व्यावसायिक प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण अंग –
आधुनिक व्यावसायिक प्रबन्ध में वित्तीय प्रबन्धक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । व्यवसाय की सभी गतिविधियों में वित्तीय प्रबन्धक व्यवसाय निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
वाणिज्यिक बैंड से नकद क्रेडिट या ओवरड्राफ्ट सुविधाएं प्राप्त करके कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। एक वित्त प्रबंधक को विभिन्न स्रोतों से संपर्क करने में बहुत सावधानी और सावधानी बरतनी पड़ती है।
वित्तीय नियोजन में सहायक-
वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन की भूमिका वित्तीय नियोजन के क्षेत्र में अग्रणी है। इसके अन्र्तगत उद्देश्यों , नीतियों , एवं कार्यविधियों का निर्धारण , वित्तीय योजनाओं एवं ढांचे का निर्माण आदि को सम्मिलित किया जाता है।
वित्तीय प्रबन्ध के अन्तर्गत सभी महत्वपूर्ण निर्णय प्रबन्धकों द्वारा उच्च स्तर पर लिये जाते है |
चूँकि वित्त व्यवसाय के विभिन्न क्रियाकलापों को एक सूत्र में आबद्ध करना है , अत: वित्तीय प्रबन्ध विभाग का क्षेत्राधिकार ( Jurisdiction) अन्य विभाग की तुलना में कुछ अधिक व्यापक होना है
वित्त कार्य का प्रशासन-
इसके अन्तगर्त वित्तीयप्रबन्धन द्वारा वित्त विभाग एवं उवविभागों का संगठन , कोषाध्यक्ष ( Treasurer) तथा ( Controller) के कार्यों , दायित्वों एवं अधिकारों का निर्धारण एवं लेखा पुस्तकों के रख-रखाव की व्यवस्था की जाती वित्तीय नियंत्रण वित्तीय प्रषासन का प्रमुख अंग है।
लागत-मात्रा-लाभ विश्लेषण-
यह बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। इसके उद्देश्य के लिए , निश्चित लागत , परिवर्तनीय लागत और अर्ध-परिवर्तनीय लागत का विश्लेषण करना होगा। अलग-अलग बिक्री संस्करणों के लिए निश्चित लागतें कम वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति या ज्यादा स्थिर होती हैं। बिक्री की मात्रा के अनुसार परिवर्तनीय लागत भिन्न होती है। और इसका विश्लेषण जरूरी होता हैं।
वित्त का कार्य पैसा को संगठित करना होता हैं और एक जगह लगाना हैं यह केवल कोश को बढ़ाता ही नही बल्कि उसका प्रबंध भी करता हैं |
इसके अंतर्गत कार्य मे लगे पूंजी यानि वर्किंग कैपिटल का प्रबंध किया जाता हैं |
इसमे कैपिटल बजेटिंग का निर्णय भी लिया जाता हैं |
इसमे विलय या पुनः गठन का निर्णय लिए जाते हैं |
इसमे क्रय या विक्रय का निर्णय भी लिया जाता हैं |
जब हम किसी मशीन को खरीदते हैं या किराए पर लेते हैं दोनों मे किसमे निवेश अच्छा होगा ये भी देखते हैं , इसके अलावा पोर्टफोलियो का निर्णय भी लिया जाता हैं |
वित्तीय निर्णय मे धन कहा से प्राप्त किए जा सकते हैं जैसे शेयर ,debenture , लोन आदि यह कई चीजों से प्रभावित होते हैं |
See Also अंकेक्षण (auditing) का क्या उद्देश्य है? कंपनी अंकेक्षण (company audit) से क्या आशय है। इनके दायित्व और कर्तव्य बताए ?
इसमे लाभांश का निर्णय भी अच्छे से लिया जाता हैं की कुछ पैसा retained earning के रूप मे रख कर बाकी पैसा share holders मे बाँट दिया जाए या फिर दूसरे प्रोजेक्ट मे लगा कर और लाभ कमाया जाये |
इसके अंतर्गत प्राप्त फ़ंड का समुचित निर्णय के द्वारा स्थायी संपत्ति को स्थापित करना भी इसमे शामिल होता हैं |
आय का सही से नापन करना तथा आय हो अच्छे से फ़र्म मे लगाना भी इसका कार्य होता हैं |
इसमे रोकड़ का प्रबंध वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति करना भी बहुत आवश्यक हैं | वित्त का मूल्यांकन करना भी इसमे सम्मलित होता हैं | एक समय के बाद कंपनी को अपनी पूंजी का अनुमान लगाना आवश्यक होता हैं और उसी के अनुसार उसकी ख्याति बढ़ती हैं |
वित्तीय प्रबंधन का वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
vittiy prabandh Meaning in hindi; वित्त व्यवसाय का जीवन का रक्त होता है। वित्तीय प्रबंध व्यावसायिक प्रबंध का ही एक भाग है। वित्तीय प्रबंध किसी उपक्रम के वित्त तथा वित्त से सम्बंधित पहलुओं पर निर्णय करने और नीति निर्धारण करने से सम्बंधित क्रियाओं का समूह होता है।
इसमे पुँजी, रोकड़ प्रवाह, मूल्य एवं लाभ नीतियाँ, निष्पत्ति नियोजन एवं मूल्यांकन तथा बजटरी नियंत्रण नीतियाँ एवं प्रणालियों प्रमुख रूप से वित्तीय प्रबंध के क्षेत्र मे आती है, परन्तु ये अन्य विभागों के सहयोग एवं सहमति के बगैर प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वियन नही किये जा सकते वित्तीय प्रबंध उपक्रम के व्यापक हितों का प्रतिनिधित्व करता है तथा वह इनके लिए संस्था का रखवाला कर्ता होता है।
छोटी व्यावसायिक इकाईयों के लिए वित्त की व्यवस्था करना कोई कठिन समस्या नही होती है परन्तु बड़ी व्यावसायिक इकाईयों के लिए वित्त व्यवस्था काफी कठिनाईपूर्ण है। यहॉं पर वित्त का स्वरूप अवैयक्तिगत होता है तथा इसकी मात्रा भी अधिक होती है जिसके फलस्वरूप इसकी व्यवस्था में अनेक कठिनाइयॉं आती है। अत: वर्तमान समय में वित्त उत्पादन का एक महत्वपूर्ण अंग है, इसलिए इसकी उचित व्यवस्था हेतु विभिन्न उपक्रमों मे एक अलग से विभाग खोला जाता है जिसे वित्त विभाग कहते है।
सार्वजनिक वित्त से आशय सरकारी वित्त से है, इसके अन्तर्गत विभिन्न सार्वजनिक संस्थाओं की वित्तीय आवश्यकताओं का अध्ययन किया जाता है। सार्वजनिक वित्त के अन्तर्गत आय, व्यय एवं ऋण सम्बन्धी विभिन्न सिद्धान्तों एंव व्यवहारेां का अध्ययन किया जाता है।
निजी वित्त के अन्तर्गत विभिन्न व्यक्तियों एंव निजी संस्थाओं की आय का व्यय का अध्ययन किया जाता है । निजी वित्त को मुख्य रूप से तीन भागों में बॉंटा जा सकता है--
वित्तीय प्रबंधन की परिभाषा (vittiy prabandh ki paribhasha)
वैस्टन एवं ब्राइघम " वित्तीय प्रबंध एक व्यवसाय की वह संचालनात्मक प्रक्रिया है जो व्यक्तिगत उद्देश्यों और उपक्रम के उद्देश्यो के समन्वय स्थापित करती है।
हाॅवर्ड एवं उपटन " वित्तीय प्रबंध नियोजन तथा नियंत्रण को वित्त कार्य पर लागू करना है।
जे. एफ. ब्रेडले " वित्तीय प्रबंध व्यावसाय का वह क्षेत्र है जिसका सम्बन्ध पूँजी के विवेकपूर्ण उपयोग एवं पूँजी साधनों के सतर्क चयन से है, ताकि व्यय करने वाली इकाई (फर्म) अपने उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर बढ़ सके।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि " वित्तीय प्रबंधन व्यावसायिक प्रबंधन का एक वह क्षेत्र है जिसके अन्तर्गत व्यवसाय की वित्तीय क्रियाओं एवं वित्त कार्य का कुशल संचालन किया जाता है। इसके लिए नियोजन, आंवटन एवं नियंत्रण के कार्य किये जाते है।
वित्तीय प्रबंधन की विशेषताएं या लक्षण (vittiy prabandh ki visheshta)
1. आवश्यकता का अनुमान
वित्तीय प्रबंधन के द्वारा व्यवसाय की वित्त सम्बन्धी आवश्यकताओं का अनुमान लगाना आसान हो जाता है।
2. वित्तीय स्त्रोतों का निर्धारिण
वित्तीय प्रबंध ऐसा प्रबंध है जिसके अन्तर्गत व्यवसायी आसानी से पूँजी प्राप्ति के श्रेष्ठ स्त्रोतों को ज्ञात कर सकता है।
3. वित्तीय कार्यों का केन्द्रीयकरण
वित्तीय प्रबंध मे वित्त सम्बन्धी समस्त कार्तों का एक समूह बन गया है, जिसमे वित्त सम्बन्धी समस्याओं, विचारो, नियोजन, नियंत्रण, निर्णय व्यवस्थाएँ, उत्पादन, विपणन एवं कर्मचारी प्रबंध वित्तीय कार्य एक ही प्रबंध मे किया जाता है अर्थात् वित्तीय प्रबंध, वित्तीय कार्यों को केन्द्रीकृत कर चुका है।
4. पूँजी संरचना का निर्माण
व्यवसाय की पूंजी संरचना, अल्पकालीन, दीर्घकालीन, स्थायी एवं कार्यशील पूँजी आदि से निर्मित होती है और इसे सगंठित करने का कार्य वित्तीय प्रबंध का होता है, इसीलिए हम कहते है कि वित्तीय प्रबंध पूंजी संरचना का निर्माण करता है।
5. व्यावसायिक समन्वय
व्यवसाय के विभिन्न विभागों के साथ सहयोग एवं समन्वय करके व्यवसाय के सभी वित्तीय मामलों को निपटाने वाला ऐसा एक ही विभाग है जो वित्तीय प्रबंध है।
वित्तीय वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति प्रबन्ध की परम्परागत विचारधारा के अनुसार वित्तीय प्रबन्ध की प्रक्रिया सत्त रूप से नही चलती थी, बल्कि कुछ विशेष घटनाओं के समय ही कार्यशील थी। परन्तु आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्तीय प्रबन्ध की प्रक्रिया निरन्तर चलने वाली होती है।
आधुनिक व्यवसाय प्रबन्ध में वित्तीय प्रबन्धक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यावसाय के सभी क्रिया-कलापों के साथ वित्त का प्रश्न जुडा रहता है , अत: सभी व्यवसायिक निर्णयों में वित्तीय प्रबन्धक की भूमिका अहम् होती है।
वित्तीय प्रबन्ध का कार्य व्यवसाय की अल्पकालीन एंव दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं के लिए साधनों की प्राप्ति उनका आंवटन तथा अनुकूलतम उपयोग करना है। अत: वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र विस्तृत है ।
9. कार्य निष्पादन का मापक
वित्तीय प्रबंध के अन्तर्गत वित्तीय निर्णय भी शामिल होते है, यही वित्तीय निर्णय व्यावसाय की सफलता/असफलता, व्यावसाय की लाभदायकता/जोखिम स्थिति आदि को प्रभावित करता है। वित्तीय निर्णयों को व्यवसाय मे लागू करने के पश्चात व्यवसाय के परिणाम ही यह सिद्ध करते है कि व्यवसाय का वित्तीय प्रबंध किस तरह से कार्य कर रहा है। वित्तीय प्रबंध द्वारा ही व्यवसाय के कार्य निष्पादन को मापा जा सकता है।
10. अर्जित आय का प्रबंध
वित्तीय प्रबंध यह भी दिशा निर्देश देता है कि व्यवसाय के कार्यों द्वारा कैसे लाभ प्राप्त किया जा सकता है, साथ ही प्राप्त (अर्जित) आय/लाभ को व्यवसाय मे किस प्रकार प्रयोग तथा प्रबंध किया जाए तथा कैसे अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।
11. उच्च प्रबंधकों हेतु सहायक
वित्तीय प्रबंध ही एक ऐसा प्रबंध है, जो व्यवसाय की सफलता का कारक होता है, यही व्यवसाय को स्थायित्व एवं सर्वोत्तम निर्णय लेने मे सहायक होता है।
प्रबन्ध के सभी क्षेत्रों में वित्तीय प्रबन्ध का स्वभाव केन्द्रीयकृत है। आधुनिक व्यवसायिक उपक्रमों में उत्पादन, विपणन एंव कार्मिक प्रबन्ध में कार्यो का जहॉं अत्यधिक विकेन्द्रीयकरण सम्भव होता है, वहीं वित्त कार्य का विकेन्द्रीकरण के द्वारा ही अधिक प्रभावशाली ढंग से प्राप्त किया जा सकता है।
वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति
फाइनेंस फंक्शन के क्षेत्र में वित्त प्रबंधक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में से एक है. उन्हें लेखा, वित्त, अर्थशास्त्र और प्रबंधन के क्षेत्र में संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए. उनकी स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है और वित्त से जुड़े विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए विश्लेषणात्मक है. वित्त संबंधी गतिविधियों से संबंधित व्यक्ति वित्त प्रबंधक कहला सकता है.
1. वित्तीय आवश्यकताओं का पूर्वानुमान: यह वित्त प्रबंधक का प्राथमिक कार्य है. वह व्यापार विषयों की वित्तीय आवश्यकता का अनुमान लगाने के लिए उत्तरदायी है. वह अनुमान लगाते है कि, अचल संपत्तियों को हासिल करने के लिए कितना वित्त आवश्यक है और भविष्य में कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक राशि का पूर्वानुमान लगाते है.
2. आवश्यक पूंजी प्राप्त करना: वित्तीय आवश्यकता का निर्णय लेने के बाद, वित्त प्रबंधक को ध्यान देना चाहिए कि वित्त कैसे जुटाया जाता है और यह कहां उपलब्ध होगा. यह इसकी प्रकृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है.
3. निवेश निर्णय: वित्त प्रबंधक को सबसे अच्छा निवेश विकल्प चुनना चाहिए और निवेश से उचित और स्थिर वापसी पर विचार करना चाहिए. निवेश के प्रभावी उपयोग का निर्धारण करने के लिए उन्हें पूंजी बजट तकनीक के क्षेत्र में अच्छी तरह से निपूर्ण होना चाहिए. पूंजी निवेश करते समय वित्त प्रबंधक को सुरक्षा, तरलता और लाभप्रदता के सिद्धांतों पर ध्यान देना चाहिए.
4. नकद प्रबंधन: वर्तमान समय में नकद प्रबंधन वित्त क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाता है क्योंकि उचित नकद प्रबंधन नकदी के प्रभावी उपयोग के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि यह कम-अवधि की स्थिति में तरलता को पूरा करने में भी मदद करता है.
5. अन्य विभागों के साथ अन्तसंबंध: वित्त प्रबंधक विभिन्न कार्यात्मक विभागों जैसे कि विपणन, उत्पादन, कर्मियों, प्रणाली, अनुसंधान, विकास आदि के साथ संबंधित है. वित्त प्रबंधक को न केवल वित्त से संबंधित क्षेत्र में अच्छा ज्ञान होना चाहिए, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी अच्छी ज्ञान होना चाहिए. उसे व्यवसाय संगठन के सभी कार्यात्मक विभागों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहिए.
वित्त, व्यवसाय संगठन का जीवन है.इसका कार्य व्यापारिक मामलो की आवश्यकता को पूरा करना है.प्रत्येक व्यापारिक मामलो में व्यवसाय को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्त की आवश्यकता होती है व्यावसायिक वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति विषयों का लक्ष्य हासिल करने के लिए व्यवसाय को ठीक से चलाना भी आवश्यक है. व्यवसाय के लक्ष्य को केवल वित्त के प्रभावी प्रबंधन की मदद से हासिल किया जा सकता है. हम किसी भी समय और किसी भी स्थिति में वित्त के महत्व को अनदेखा नहीं कर सकते। वित्तीय प्रबंधन के कुछ महत्व निम्नानुसार हैं:
1. वित्तीय नियोजन वित्तीय प्रबंधन व्यापार के मामलो की वित्तीय आवश्यकता का निर्धारण करने में मदद करता है और इस विषय का वित्तीय नियोजन करता है. वित्तीय योजना व्यवसाय के विषयों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो किसी उद्यम के प्रचार को बढ़ावा देती है.
2. निधि का अधिग्रहण: वित्तीय प्रबंधन में व्यापारिक मामलो के अधिग्रहण शामिल है. आवश्यक धन प्राप्त करना वित्तीय प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसमें न्यूनतम लागत पर वित्त का संभव स्रोत शामिल है.
3. निधियों का उचित उपयोग: निधियों के उचित उपयोग और आवंटन से व्यापार के मामलो के परिचालन क्षमता में सुधार होता है.जब वित्त प्रबंधक ठीक से धन का उपयोग करता है, तो वे पूंजी की लागत को कम कर सकते हैं और फर्म के मूल्य में वृद्धि कर सकते हैं.
4. वित्तीय निर्णय: वित्तीय प्रबंधन व्यावसायिक चिंता में वित्तीय निर्णय लेने में मदद करता है. वित्तीय निर्णय से विषय का पूरा व्यवसाय संचालन प्रभावित होगा. क्योंकि विभिन्न विभाग के कार्यों जैसे मार्केटिंग, उत्पादन कर्मियों, आदि के साथ सीधा संबंध है.
5. लाभप्रदता में सुधार: चिंता की लाभप्रदता विशुद्ध रूप से व्यापारिक मामलो से प्रभावी और धन के वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति उचित उपयोग पर निर्भर करती है. वित्तीय प्रबंधन, मजबूत वित्तीय नियंत्रण उपकरणों जैसे कि बजटीय नियंत्रण, अनुपात विश्लेषण, और लागत मात्रा लाभ विश्लेषण की मदद से विषयों की लाभप्रदता स्थिति में सुधार करने में सहायता करता है.
6. फर्म के मूल्य में वृद्धि: निवेशकों की संपत्ति बढ़ाने और व्यापारिक विषयों के क्षेत्र में वित्तीय प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है. किसी भी व्यापारिक विषयों का अंतिम उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करेगा और उच्च लाभप्रदता से निवेशकों और राष्ट्रों के धन को अधिकतम करने है.
7. बचत को बढ़ावा देना: बचत केवल तभी संभव होती है जब व्यापार अधिक लाभप्रद और अधिकतम धन अर्जन करें. प्रभावी वित्तीय प्रबंधन व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट बचत को बढ़ावा देने और एकत्रित करने में सहायता करता है.
आजकल वित्तीय प्रबंधन भी व्यावसायिक वित्त या कॉर्पोरेट वित्त के रूप में लोकप्रिय है. व्यावसायिक प्रबंधन या कॉर्पोरेट क्षेत्र वित्तीय प्रबंधन के महत्व के बिना काम नहीं कर सकते.
वित्तीय प्रबंधन (Financial Management) क्या हैं। परिभाषा, विशेषताएँ, और क्षेत्र-
वित्तीय प्रबंध व्यवशाय के नियोजना , संगठन आदि का सम्मलित रूप हैं | इसमे सबसे पहले वित्त की नियोजना बनाना पड़ता हैं की वित्त की प्राप्ति कैसे होगी | फिर यह चेक करेंगे की योजना सही हैं या नही | पैसा कहा से प्राप्त हो और कहा लगाया जाए जिससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके | साधनो को कहा लगाया जाए | फ़र्म अपने वित्त की व्यवस्था कैसे करे | फ़र्म कहा लगाए जिससे सब कुछ आसानी से मिल सके |
जब हम पैसा लगाते हैं तो ऐसे जगह लगाना चाहते हैं जहा अधिक लाभ हो जब तक हम नियोजन नही करेंगे यह संभव नही हैं |
यह एक सतत प्रक्रिया हैं | यह हमेशा चलती रहती हैं |
वित्त का रोज काम होता हैं एक बार प्रोजेक्ट को देखा फिर संगठन और नियंत्रण करते रहते हैं |
इसका विश्लेषण अति आवश्यक होता हैं | इसी आधार पर पैसा लगाते हैं |
यह लेखांखन से अलग अलग होता हैं | यह मैनेजमेंट प्रक्रिया हैं |
इसका छेत्र बहुत बड़ा हैं |
हर संगठन के लिए वित्त आवश्यक हैं |
फ़र्म मे किसी भी विभाग मे वित्त आवश्यक हैं |
यह निर्णय लेने मे सहायक हैं | जो प्रोजेक्ट अच्छा होगा हम वह वित्त को लगाएंगे |
वित्तीय प्रबंधन की परिभाषाएँ-
हॉवर्ड के द्वारा-
” वित्तीय प्रबन्ध से आशय , नियोजन एवं नियन्त्रण कार्यों को वित्त कार्य पर लागू करना है ।”
वित्तीय प्रबंधन की मुख्य विशेषताएं-
उच्च प्रबन्धकीय निर्णयों में सहायक ( Helpful in Top Managerial Decisions)-
दूसरे अर्थों में , वित्तीय प्रबन्ध को सर्वोच्च प्रबन्ध की सफलता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका प्राप्त होती है । टॉप मैनेजमेंट ही वित्तीय प्रबंध का निर्णय देता हैं।
समन्वय का आधार ( Basis of Co-Ordination):
किसी भी उपक्रम में वित्तीय प्रबन्धक अन्य विभागों के सहयोग तथा समन्वय के बगैर सफलता प्राप्त नहीं कर सकता ।माल के खरीदने से लेकर उसको तयार कर कस्टमर तक पाहुचाने तक वित्त्य के समन्वय की आवश्यकता हैं।
केन्द्रीय प्रकृति ( Centralized Nature):
परम्परागत रूप से व्यवसाय में वित्तीय प्रबन्ध यान्त्रिक कार्य था , जबकि आधुनिक रूप में वित्तीय प्रबन्ध का कार्य एक सतत् प्रशासनिक प्रक्रिया है
व्यावसायिक प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण अंग –
आधुनिक व्यावसायिक प्रबन्ध में वित्तीय प्रबन्धक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । व्यवसाय की सभी गतिविधियों में वित्तीय प्रबन्धक व्यवसाय निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
वाणिज्यिक बैंड से नकद क्रेडिट या ओवरड्राफ्ट सुविधाएं प्राप्त करके कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। एक वित्त प्रबंधक को विभिन्न स्रोतों से संपर्क करने में बहुत सावधानी और सावधानी बरतनी पड़ती है।
वित्तीय नियोजन में सहायक-
वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन की भूमिका वित्तीय नियोजन के क्षेत्र में अग्रणी है। इसके अन्र्तगत उद्देश्यों , नीतियों , एवं कार्यविधियों का निर्धारण , वित्तीय योजनाओं एवं ढांचे का निर्माण आदि को सम्मिलित किया जाता है।
वित्तीय प्रबन्ध के अन्तर्गत सभी महत्वपूर्ण निर्णय प्रबन्धकों द्वारा उच्च स्तर पर लिये जाते है |
चूँकि वित्त व्यवसाय के विभिन्न क्रियाकलापों को एक सूत्र में आबद्ध करना है , अत: वित्तीय प्रबन्ध विभाग का क्षेत्राधिकार ( Jurisdiction) अन्य विभाग की तुलना में कुछ अधिक व्यापक होना है
वित्त कार्य का प्रशासन-
इसके अन्तगर्त वित्तीयप्रबन्धन द्वारा वित्त विभाग एवं उवविभागों का संगठन , कोषाध्यक्ष ( Treasurer) तथा ( Controller) के कार्यों , दायित्वों एवं अधिकारों का निर्धारण एवं लेखा पुस्तकों के रख-रखाव की व्यवस्था की जाती वित्तीय नियंत्रण वित्तीय प्रषासन का प्रमुख अंग है।
लागत-मात्रा-लाभ विश्लेषण-
यह बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। इसके उद्देश्य के लिए , निश्चित लागत , परिवर्तनीय लागत और अर्ध-परिवर्तनीय लागत का विश्लेषण करना होगा। अलग-अलग बिक्री संस्करणों के लिए निश्चित लागतें कम या ज्यादा स्थिर होती हैं। बिक्री की मात्रा के अनुसार परिवर्तनीय लागत भिन्न होती है। और इसका विश्लेषण जरूरी होता हैं।
वित्त का कार्य पैसा को संगठित करना होता हैं और एक जगह लगाना हैं यह केवल कोश को बढ़ाता ही नही बल्कि उसका प्रबंध भी करता हैं |
इसके अंतर्गत कार्य मे लगे पूंजी यानि वर्किंग कैपिटल का प्रबंध किया जाता हैं |
इसमे कैपिटल बजेटिंग का निर्णय भी लिया जाता हैं |
इसमे विलय या पुनः गठन का निर्णय लिए जाते हैं |
इसमे क्रय या विक्रय का निर्णय भी लिया जाता हैं |
जब हम किसी मशीन को खरीदते हैं या किराए पर लेते हैं दोनों मे किसमे निवेश अच्छा होगा ये भी देखते हैं , इसके अलावा पोर्टफोलियो का निर्णय भी लिया जाता हैं |
वित्तीय निर्णय मे धन कहा से प्राप्त किए जा सकते हैं जैसे शेयर ,debenture , लोन आदि यह कई चीजों से प्रभावित होते हैं |
See Also अंकेक्षण (auditing) का क्या उद्देश्य है? कंपनी अंकेक्षण (company audit) से क्या आशय है। इनके दायित्व और कर्तव्य बताए ?
इसमे लाभांश का निर्णय भी अच्छे से लिया जाता हैं की कुछ पैसा retained earning के रूप मे रख कर बाकी पैसा share holders मे बाँट दिया जाए या फिर दूसरे प्रोजेक्ट मे लगा कर और लाभ कमाया जाये |
इसके अंतर्गत प्राप्त फ़ंड का समुचित निर्णय के द्वारा स्थायी संपत्ति को स्थापित करना भी इसमे शामिल होता हैं |
आय का सही से नापन करना तथा आय हो अच्छे से फ़र्म मे लगाना भी इसका कार्य होता हैं |
इसमे रोकड़ का प्रबंध करना भी बहुत आवश्यक हैं | वित्त का मूल्यांकन करना भी इसमे सम्मलित होता हैं | एक समय के बाद कंपनी को अपनी पूंजी का अनुमान लगाना आवश्यक होता हैं और उसी के अनुसार उसकी ख्याति बढ़ती हैं |
वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति
फाइनेंस फंक्शन के क्षेत्र में वित्त प्रबंधक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में से एक है. उन्हें लेखा, वित्त, अर्थशास्त्र और प्रबंधन के क्षेत्र में संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए. उनकी स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है और वित्त से जुड़े विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए विश्लेषणात्मक है. वित्त संबंधी गतिविधियों से संबंधित व्यक्ति वित्त प्रबंधक कहला सकता है.
1. वित्तीय आवश्यकताओं का पूर्वानुमान: यह वित्त प्रबंधक का प्राथमिक कार्य है. वह व्यापार विषयों की वित्तीय आवश्यकता का अनुमान लगाने के लिए उत्तरदायी है. वह अनुमान लगाते है कि, अचल संपत्तियों को हासिल करने के लिए कितना वित्त आवश्यक है और भविष्य में कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक राशि का पूर्वानुमान लगाते है.
2. आवश्यक पूंजी प्राप्त करना: वित्तीय आवश्यकता का निर्णय लेने के बाद, वित्त प्रबंधक को ध्यान देना चाहिए कि वित्त कैसे जुटाया जाता है और यह कहां उपलब्ध होगा. यह इसकी प्रकृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है.
3. निवेश निर्णय: वित्त प्रबंधक को सबसे अच्छा निवेश विकल्प चुनना चाहिए और निवेश से उचित और स्थिर वापसी पर विचार करना चाहिए. निवेश के प्रभावी उपयोग का निर्धारण करने के लिए उन्हें पूंजी बजट तकनीक के क्षेत्र में अच्छी तरह से निपूर्ण होना चाहिए. पूंजी निवेश करते समय वित्त प्रबंधक को सुरक्षा, तरलता और लाभप्रदता के सिद्धांतों पर ध्यान देना चाहिए.
4. नकद प्रबंधन: वर्तमान समय में नकद प्रबंधन वित्त क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाता है क्योंकि उचित नकद प्रबंधन नकदी के प्रभावी उपयोग के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि यह कम-अवधि की स्थिति में तरलता को पूरा करने में भी मदद करता है.
5. अन्य विभागों के साथ अन्तसंबंध: वित्त प्रबंधक विभिन्न कार्यात्मक विभागों जैसे कि विपणन, उत्पादन, कर्मियों, प्रणाली, अनुसंधान, विकास आदि के साथ संबंधित है. वित्त प्रबंधक को न केवल वित्त से संबंधित क्षेत्र में अच्छा ज्ञान होना चाहिए, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी अच्छी ज्ञान होना चाहिए. उसे व्यवसाय संगठन के सभी कार्यात्मक विभागों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहिए.
वित्त, व्यवसाय संगठन का जीवन है.इसका कार्य व्यापारिक मामलो की आवश्यकता को पूरा करना है.प्रत्येक व्यापारिक मामलो में व्यवसाय को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्त की आवश्यकता होती है व्यावसायिक विषयों का लक्ष्य हासिल करने के लिए व्यवसाय को ठीक से चलाना भी आवश्यक है. व्यवसाय के लक्ष्य को केवल वित्त के प्रभावी प्रबंधन की मदद से हासिल किया जा सकता है. हम किसी भी समय और किसी भी स्थिति में वित्त के महत्व को अनदेखा नहीं कर सकते। वित्तीय प्रबंधन के कुछ महत्व निम्नानुसार हैं:
1. वित्तीय नियोजन वित्तीय प्रबंधन व्यापार के मामलो की वित्तीय आवश्यकता का निर्धारण करने में मदद करता है और इस विषय का वित्तीय नियोजन करता है. वित्तीय योजना व्यवसाय के विषयों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो किसी उद्यम के प्रचार को बढ़ावा देती है.
2. निधि का अधिग्रहण: वित्तीय प्रबंधन में व्यापारिक मामलो के अधिग्रहण शामिल है. आवश्यक धन प्राप्त करना वित्तीय प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसमें न्यूनतम लागत पर वित्त का संभव स्रोत शामिल है.
3. निधियों का उचित उपयोग: निधियों के उचित उपयोग और आवंटन से व्यापार के मामलो के परिचालन क्षमता में सुधार होता है.जब वित्त प्रबंधक ठीक से धन का उपयोग करता है, तो वे पूंजी की लागत को कम कर सकते हैं और फर्म के मूल्य में वृद्धि कर सकते हैं.
4. वित्तीय निर्णय: वित्तीय प्रबंधन व्यावसायिक चिंता में वित्तीय निर्णय लेने में मदद करता है. वित्तीय निर्णय से विषय का पूरा व्यवसाय संचालन प्रभावित होगा. क्योंकि विभिन्न विभाग के कार्यों जैसे मार्केटिंग, उत्पादन कर्मियों, आदि के साथ सीधा संबंध है.
5. लाभप्रदता में वित्तीय प्रबंधन की प्रकृति सुधार: चिंता की लाभप्रदता विशुद्ध रूप से व्यापारिक मामलो से प्रभावी और धन के उचित उपयोग पर निर्भर करती है. वित्तीय प्रबंधन, मजबूत वित्तीय नियंत्रण उपकरणों जैसे कि बजटीय नियंत्रण, अनुपात विश्लेषण, और लागत मात्रा लाभ विश्लेषण की मदद से विषयों की लाभप्रदता स्थिति में सुधार करने में सहायता करता है.
6. फर्म के मूल्य में वृद्धि: निवेशकों की संपत्ति बढ़ाने और व्यापारिक विषयों के क्षेत्र में वित्तीय प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है. किसी भी व्यापारिक विषयों का अंतिम उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करेगा और उच्च लाभप्रदता से निवेशकों और राष्ट्रों के धन को अधिकतम करने है.
7. बचत को बढ़ावा देना: बचत केवल तभी संभव होती है जब व्यापार अधिक लाभप्रद और अधिकतम धन अर्जन करें. प्रभावी वित्तीय प्रबंधन व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट बचत को बढ़ावा देने और एकत्रित करने में सहायता करता है.
आजकल वित्तीय प्रबंधन भी व्यावसायिक वित्त या कॉर्पोरेट वित्त के रूप में लोकप्रिय है. व्यावसायिक प्रबंधन या कॉर्पोरेट क्षेत्र वित्तीय प्रबंधन के महत्व के बिना काम नहीं कर सकते.