स्वैप क्या हैं?

डेली न्यूज़
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी तरलता प्रबंधन पहल के हिस्से के रूप में 5 बिलियन डॉलर-रुपए की स्वैप नीलामी आयोजित की। इस कदम से डॉलर का प्रवाह मज़बूत होगा और वित्तीय प्रणाली से रुपए की निकासी होगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग आधारित मुद्रास्फीति में निम्नलिखित में से किसके कारण/वृद्धि हो सकती है? (2021)
1. इक्स्पैन्सनरी पालिसी
2.राजकोषीय प्रोत्साहन
3. मज़दूरी का मुद्रास्फीति-सूचकांक स्वैप क्या हैं?
4. उच्च क्रय शक्ति
5. बढ़ती ब्याज दरें
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2, 3 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5
उत्तर: (a)
डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी:
- यह एक विदेशी मुद्रा उपकरण (Forex Tool) है जिससे केंद्रीय बैंक अपनी मुद्रा का उपयोग दूसरी मुद्रा या इसके विपरीत खरीद के लिये करता है।
- डॉलर-रुपया खरीद / बिक्री स्वैप: केंद्रीय बैंक भारतीय रुपए (INR) के बदले बैंकों से डॉलर (अमेरिकी डॉलर या USD) खरीदता है और तुरंत बाद की तारीख में डॉलर बेचने का वादा करने वाले बैंकों के साथ एक विपरीत (रुपए को बकना) सौदा करता है।
- जब केंद्रीय बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री की जाती है तो समान मात्रा में रुपए की निकासी होती है, इस प्रकार सिस्टम में रुपए की तरलता को कम होती है।
- इन स्वैप परिचालनों (Swap Operations) में कोई विनिमय दर या अन्य बाज़ार जोखिम नहीं होते हैं क्योंकि लेन-देन की शर्तें अग्रिम रूप से निर्धारित की जाती हैं।
RBI की योजना:
- RBI ने बैंकों को 5.135 बिलियन अमेरिकी डाॅलर बेचे और साथ ही स्वैप निपटान अवधि के अंत में डॉलर को वापस खरीदने के लिये सहमति प्रदान की है।
- यहाँ आशय यह है कि केंद्रीय बैंक विक्रेता से डॉलर प्राप्त करता है तथा दो वर्ष की अवधि के लिये संभव न्यूनतम प्रीमियम वसूल करता है।
- तद्नुसार नीलामी की निचली सीमा पर बोली लगाने वाले बैंक नीलामी में सफल होते हैं।
- डॉलर की दर 75 रुपए मानकर सिस्टम की तरलता 37,500 करोड़ रुपए कम हो जाएगी।
विगत वर्षों के प्रश्न
प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या निम्नलिखित में से किसकी अनुपलब्धता से संबंधित है? (2015)
(a) वस्तुओं और सेवाओं
(b) सोना और चांदी
(c) डॉलर और अन्य कठोर मुद्राएँ
(d) निर्यात योग्य अधिशेषआरबीआई अब इसका सहारा क्यों ले रहा है?
- सिस्टम में अधिशेष तरलता 7.5 लाख करोड़ रुपए आँकी गई है, जिसे मुद्रास्फीति को संतुलित रखने के लिये रोकने की ज़रूरत है।
- आमतौर पर केंद्रीय बैंक रेपो रेट बढ़ाने या नकद आरक्षित अनुपात (CRR) बढ़ाने जैसे पारंपरिक साधनों का सहारा लेता है लेकिन इसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- यह नकारात्मक प्रभाव मौद्रिक नीति के अधूरे रूप में देखा जा सकता है।
- इसलिये आरबीआई द्वारा पिछले वर्ष एक अलग टूलकिट- वेरिएबल रेट रिवर्स रेपो ऑक्शन ( Variable Rate Reverse Repo Auction - VRRR ) का इस्तेमाल किया गया।
स्वैप का प्रभाव:
- तरलता को कम करना: प्रमुख रूप से तरलता प्रभावित होगी जो वर्तमान में औसतन लगभग 7.6 लाख करोड़ रुपए घटेगी।
- भारतीय रुपए के मूल्यह्रास की जाँच: बाज़ार में डॉलर के प्रवाह से रुपए को मज़बूती मिलेगी जो पहले ही अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 77 के स्तर पर पहुँच चुका है।
- मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: जब मुद्रास्फीति में वृद्धि का खतरा होता है तो आरबीआई आमतौर पर सिस्टम में तरलता को कम कर देता है। निम्नलिखित कारकों के कारण मुद्रास्फीति बढ़ना तय है:
- तेल की कीमतों में वृद्धि:रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनज़र कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से आने वाले दिनों में मुद्रास्फीति बढ़ना तय है।
- संस्थागत निवेश का बहिर्वाह: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारत से धन निकाल रहे हैं। उन्होंने मार्च 2022 में अब तक भारतीय शेयरों से 34,000 करोड़ रुपए निकाल लिये हैं, जिसका रुपए पर गंभीर दबाव पड़ा है।
चलनिधि प्रबंधन पहल क्या है?
- केंद्रीय बैंक की ‘तरलता प्रबंधन’ पहल को कुछ विशिष्ट फ्रेमवर्क, उपकरणों के समूह और विशेष रूप से उन नियमों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसे केंद्रीय बैंक द्वारा बैंक रिज़र्व की मात्रा को नियंत्रित कर कीमतों (यानी अल्पकालिक ब्याज दरों) को नियंत्रित करने हेतु किया जाता है, जिसका अल्पकालिक उद्देश्य मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करना होता है।
- बैंक रिज़र्व का आशय उस न्यूनतम राशि से हैं, जो वित्तीय संस्थानों के पास होनी अनिवार्य है।
- इस फ्रेमवर्क के तहत विभिन्न उपकरण हैं:
विगत वर्षों के प्रश्न
प्रश्न: यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
2. सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौतीनीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3क्या है सिम स्वैप फ्रॉड, न करें इन कॉल्स पर भरोसा
यूजर जैसे ही 1 प्रेस करता है नेटवर्क खत्म हो जाता है और सेकंड भर में अकाउंट से पैसे निकाल लिए जाते हैं और खबर भी नहीं होती कि उनका फोन हैक हो गया है.
Munzir Ahmad
- नई दिल्ली,
- 11 जुलाई 2018,
- (अपडेटेड 11 जुलाई 2018, 1:37 PM IST)
मोबाइल और इंटरनेट फ्रॉड का दौर है और ऑनलाइन ठगी तेजी से हो रही है. अनजान नंबर से कॉल आने पर आपको सावधान रहने की जरूरत है. खास कर तब जब आपसे आपकी जानकारी मांगी जाए. हैकर्स आज कल सिम स्वैप का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे आप बुरी तरह फंस सकते हैं.
अमेरिका में ऐसे फ्रॉड ज्यादा होते हैं, लेकिन अब यह भारत भी आ रहे हैं. अमेरिकी ट्रेड फेयर कमीशन के मुताबिक 2013 में सिम स्वैप के जरिए 1,038 चोरी रिपोर्ट की गई. हालांकि इसमे बढ़ोतरी हुई है जनवरी 2016 तक यह 2,658 हो गई.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई में हैदराबाद पुलिस को एक शिकायत मिली जिसमें एक शख्स ने कहा कि उसे मोबाइल प्रोवाइडर की तरफ से एक मैसेज मिल है और अच्छे मोबाइल नेटवर्क के लिए सेटिंग्स चेंज करने के लिए कहा गया. शिकायतकर्ता ने मोबाइल में 1 दबाया सेकंड भर में उसके फोन का महत्वपूर्ण डेटा जिनमें उसका बैंक अकाउंट नंबर और नंबर शामिल थे हैक हो गए. इसके बाद ही झटके से उसके अकाउंट के सारे पैसे निकाल लिए गए.
साइबर क्राइम पुलिस ने अंग्रेजी अखबार को बताया कि ऐसे कॉल करके कस्टमर को बताया जाता है कि कस्टमर केयर की तरफ से है और यूजर को कहा जाता है कि नेटवर्क में प्रॉब्लम है और थोड़ी ही देर में स्वैप क्या हैं? दूसरी कॉल आती है जहां यूजर से 1 दबाने को कहा जाता है.
पुलिस का कहना है, ‘यूजर जैसे ही 1 प्रेस करता है नेटवर्क खत्म हो जाता है और सेकंड भर में अकाउंट से पैसे निकाल लिए जाते हैं और खबर भी नहीं होती कि उनका फोन हैक हो गया है. दूसरा तरीका सिम स्वैप का है जो आधार वेरिफिकेशन के नाम पर आता है. ओटीपी की मांग की जाए तो आप कभी भी न दें’
अंग्रेजी अखबरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने कहा कि एक यूजर 10 डिजिट के नंबर से कॉल आता है कॉलर कहता है कि वो एयरटेल की तरफ से है. उधर से कहा गया कि 3G नेटवर्क के बदले उन्हें Airtel 4G सिम लगाना है और इसके लिए सिम स्वैप यानी बदलना होगा. लेकिन वो शख्स वोडाफोन का सिम यूज कर रहा था.
क्या है ये सिम कार्ड स्वैप
सिम कार्ड में यूजर डेटा स्टोर्ड होता है और ये यूजर को ऑथेन्टिकेट करते हैं इसलिए बना सिम के आप किसी नेटवर्क से कनेक्ट नहीं हो सकते. सिम स्वैप फ्रॉड में सिम का इस्तेमाल होता है और इसके लिए इसकी सबसे बड़ी कमजोरी प्लेटफॉर्म एग्नोस्टिसिज्म को निशाना बनाया जाता है.
सिक्योरिटी रिसर्चर एंड्र्यू के मुताबिक ये एक तरीका है जिसके तहत अटैकर टार्गेट फोन के कम्यूनिकेशन में सेंध लगाता है.
स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap Derivatives in hindi)
कोई भी ऐसा उपकरण (Instrument) जिसकी अपनी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है बल्कि उसकी वैल्यू किसी और ही चीज़ से प्राप्त होती है। उसे डेरिवेटिव्स (Derivatives) कहा जाता है। जिस चीज़ पर उसकी वैल्यू निर्भर करता है उसे अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) कहा जाता है। जैसे कि पनीर की वैल्यू दूध पर निर्भर करता है स्वैप क्या हैं? इसीलिए यहाँ दूध पनीर का अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) है।
डेरिवेटिव्स (Derivatives) चार प्रकार के होते हैं – फॉरवर्ड (Forward), फ्युचर (future), ऑप्शन (Option) और स्वैप (Swap)। इस लेख में हम स्वैप डेरिवेटिव्स को समझेंगे:
| स्वैप डेरिवेटिव्स क्या है?
स्वैप (Swap) का सीधा सा मतलब होता है अदला-बदली। दूसरे शब्दों में कहें तो ये एक डेरिवेटिव्स कांट्रैक्ट है जहां दो पार्टियां पैसों, देनदारियों या फिर वस्तु आदि की अदला-बदली करते हैं, आइये स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap derivatives) एक उदाहरण से समझते हैं।
| स्वैप डेरिवेटिव्स उदाहरण
मान लीजिये आपके घर में केरोसिन से जलने वाली एक लैंप है, संयोग से उस रात बिजली चली गई और आप उस लैंप को जलाने जाते हैं पर आपको पता चलता है कि आपके पास केरोसिन ही नहीं है बल्कि आपके पास पेट्रोल है।
वहीं दूसरी तरफ आपका एक परोसी है जिसे अभी एक एमर्जेंसी आन पड़ी है उसे तुरंत अभी शहर जाना पड़ेगा। पर जब वो अपनी गाड़ी को स्टार्ट करता है तो उसे पता चलता है कि पेट्रोल खत्म होने को है। उसके पास केरोसिन तो स्वैप क्या हैं? है लेकिन पेट्रोल नहीं है।
ऐसे में क्या अच्छा ये नहीं होगा कि आप दोनों अपने-अपने सामान की अदला-बदली कर लें। क्योंकि इससे दोनों को अपनी जरूरत की चीज़ें मिल जाएंगी। इसी प्रकार के अदला-बदली को तो स्वैप (Swap) कहते हैं।
इसपर आपके मन में सवाल आ सकता है कि आपको पता कैसे चलेगा कि आपके परोसी के पास केरोसिन है और आपके परोसी को कैसे पता चलेगा कि आपके पास पेट्रोल है। तो यहाँ आती है मेडिएटर (Mediator) की भूमिका। यानी कि इस अदला-बदली के बीच में एक मध्यस्थता करने वाली एक अलग एजेंसी होती है जो अपना कमीशन लेकर इस अदला-बदली को सम्पन्न कराती है।
◾ याद रखिए कि ये एजेंसी एक्स्चेंज नहीं होता है। यानी कि एक्स्चेंज में स्वैप का कारोबार नहीं होता है और आम तौर पर स्वैप में कंपनियाँ, बिज़नसमैन आदि ही सम्मिलित होते हैं, आम आदमी नहीं।
ये जो अभी आप ऊपर उदाहरण पढ़ें हैं ये एक प्रकार का कोमोडिटी स्वैप या प्रॉडक्ट स्वैप है। हालांकि कोमोडिटी स्वैप में आम-तौर पर क्रुड ऑइल और पशुधन आदि की अदला-बदली की जाती है ताकि मार्केट के प्राइस के ऊपर-चढ़ाव से बचा जा सकें। इसके अलावा कुछ अन्य स्वैप है आइये उसे भी जान लेते हैं।
| स्वैप डेरिवेटिव्स के प्रकार
| करेंसी स्वैप (Currency swap)
करेंसी स्वैप का इस्तेमाल आमतौर पर दो देशों के बिज़नसमैन या सरकार करते हैं। इसका क्या फंक्शन है आइये इसे उदाहरण से समझ लेते हैं।
मान लीजिये एक इंडिया का कंपनी है जिसे अमेरिका में अपना बिज़नस लगाना है और एक अमेरिका की कंपनी है जिसे इंडिया में बिज़नस लगाना है। लेकिन दिक्कत ये है कि इंडिया की कंपनी जब अमेरिका में लोन लेना चाहती है तो उसे ब्याज दर बहुत ज्यादा देना पड़ता है। मान लेते हैं वो 10 परसेंट है। लेकिन वहीं वो अगर इंडिया में लोन लेता है तो उसे सिर्फ 7 परसेंट ब्याज देना पड़ेगा। पर अगर वो इंडिया में लोन लेता है तो उसे उस रुपए को डॉलर में कन्वर्ट कराना पड़ेगा और इसके अलावा भी ढेरों समस्याएँ आएंगी।
अब उस अमेरिकी कंपनी की बात करें जो इंडिया में बिज़नस लगाना चाहता है। वो अगर इंडिया में लोन लेता है तो उसे 10 परसेंट का ब्याज देना पड़ेगा। लेकिन अगर वो अमेरिका में लोन लेता है तो उसे सिर्फ 7 परसेंट का ब्याज देना पड़ेगा। पर उसके सामने भी वही समस्या है जो इंडिया के कंपनी के पास है। ऐसी ही स्थिति में करेंसी स्वैप (Currency swap) का कॉन्सेप्ट आता है।
इसमें होगा ये कि अमेरिकी कंपनी अपने देश में 7 परसेंट पर लोन ले लेगा और उसे इंडिया के कंपनी को दे देगा। इससे उसका काम बन जाएगा इसी प्रकार इंडिया की कंपनी इंडिया से 7 परसेंट पर लोन लेकर अमेरिका के कंपनी को दे देगा और इस प्रकार दोनों को लोन सस्ता मिल जाएगा और दोनों का काम बन जाएगा।
यहाँ पर एक बात याद रखिए कि यहाँ भी मध्यस्थता के लिए कोई एजेंसी जरूर होती है। आमतौर पर ये बैंक होता है।
| इंटरेस्ट रेट स्वैप (Interest rate swap)
इंटरेस्ट रेट स्वैप (Interest rate swap) की बात करें तो यहाँ भी कुछ ऐसा ही होता है। मान लीजिये एक कंपनी ने बैंक से फ़िक्स्ड इंटरेस्ट रेट पर लोन ले रखा है। इसका मतलब ये है कि जब तक वो पूरा पैसा चुका नहीं नहीं देता उसे एक फ़िक्स्ड रेट पर पैसे चुकाने पड़ेंगे।
इसी तरह एक दूसरा कंपनी है जिसने फ्लोटिंग रेट (Floating rate) पर लोन ले रखा है। इसका मतलब ये है कि इसका इंटरेस्ट रेट घट-बढ़ सकता है बैंक के पॉलिसी के अनुसार। जैसे कि अगर रिजर्व बैंक ने रेपो रेट (Repo rate) घटा दी तो उसका बैंक इंटरेस्ट रेट भी घट जाएगा और अगर बढ़ा दी तो बढ़ जाएगा।
अब मान लीजिये कि फ़िक्स्ड रेट वाले कंपनी को लगता है कि वो जो फ़िक्स्ड इंटरेस्ट रेट चुका रहा है वो बहुत ज्यादा है जबकि अभी का जो फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट है स्वैप क्या हैं? वो बहुत कम है और आगे तो और भी कम होने की उम्मीद है।
इसी तरह से फ्लोटिंग रेट वाली जो कंपनी है उसे लगता है कि आने वाले समय में फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट काफी बढ़ जाएगी इसीलिए अगर फ़िक्स्ड इंटरेस्ट रेट मिल जाये तो कम से इस बात कि गारंटी तो रहेगी कि इंटरेस्ट बढ़े या घटे हमें बस एक ही रेट में पे करना है। इसे कहते हैं Speculation यानी कि दोनों अपने-अपने तरीके से अनुमान लगा रहा है कि ऐसा होगा।
अब क्या होगा ये तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन अभी के लिए दोनों कंपनी चाहे तो इंटरेस्ट रेट स्वैप (Interest rate swap) यानी कि इंटरेस्ट रेट की अदला-बदली कर सकता है। जिस कंपनी के पास फ़िक्स्ड इंटरेस्ट रेट है वो उसे फ्लोटिंग इन्टरेस्ट रेट वाली कंपनी को ट्रान्सफर कर देगा। इसी प्रकार फ्लोटिंग इन्टरेस्ट रेट वाली कंपनी अपना इंटरेस्ट रेट फ़िक्स्ड वाले को ट्रान्सफर कर देगा। यही है इंटरेस्ट रेट स्वैप (Interest rate swap)।
| Debt swap या ऋण अदला-बदली
ये भी कमोबेश उसी प्रकार होता है। मान लीजिये कि आपने किसी कंपनी का बॉन्ड लिया है और अब उस कंपनी की हालत ऐसी हो गई है कि वो इंटरेस्ट रेट नहीं चुका पा रहा है ऐसे में वो ये कर सकता है कि डेट होल्डर (Debt holder) को अपनी कंपनी में इक्विटि दे देगा। यानी कि बॉन्ड का इक्विटि से अदला-बदली हो गया। यही है डेट स्वैप (Debt swap) का बेसिक कॉन्सेप्ट।
| टोटल रिटर्न स्वैप (Total return swap)
इसका मतलब बेसिकली ये होता है कि मान लीजिये कि किसी कंपनी में आपका मालिकाना हक है। उससे आपको आमदनी तो हो रही है लेकिन उसमें उतार चढ़ाव बना रहता है। तो मान लीजिये कि कोई आपको कहता है कि मैं आपको एक फ़िक्स्ड इंटरेस्ट रेट दूंगा बदले में आप मुझे वो एसेट (Asset) यानी कि वो संपत्ति दे दीजिये जिससे आपको फ्लोटिंग आमदनी (Floating income) हो रहा है। तो वो एसेट और आपको जितना भी फ्लोटिंग आमदनी (Floating income) हो रहा है आप उसे देंगे और वो बदले में आपको फ़िक्स्ड इंटरेस्ट रेट (Fixed interest rate) देगा। यही है टोटल रिटर्न स्वैप (Total return swap)।
स्वैप क्या हैं? | Credit Default Swap या CDS
मान लीजिये एसबीआई ने एक कंपनी को लोन दिया है। अब अगर कंपनी का हालत खस्ता हो जाये तब तो एसबीआई का पूरा पैसा ही डूब जाएगा। इससे बचने के लिए एसबीआई एक बीमा (Insurance) करवा लेता है कि अगर वो कंपनी बैंक का पैसा देने में असमर्थ रहता है तो बीमा कंपनी (Insurance company) बैंक का पैसा पे करेगा। लेकिन इसके बदले एसबीआई को एक निश्चित बीमा प्रीमियम (insurance premium) का भुगतान करना पड़ेगा। जैसा कि किसी अन्य बीमा में होता है। यही है Credit Default Swap का बेसिक।
तो कुल मिलाकर यही था स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap derivatives), उम्मीद है आपको समझ में आया होगा। अगर आपने बेसिक्स ऑफ शेयर मार्केट सिरीज़ के सारे लेखों को और डेरिवेटिव्स के सारे लेखों को धैर्य से पढ़ा है तो वाकई आप धन्यवाद के पात्र है।
Sim Card Swapping: कैसे होता है लोगों को लूटने का खेल, आपका सिम कोई दूसरा कैसे करता है इस्तेमाल
साइबर फ्रॉड के रोज नए-नए केस और नए तरीके सामने आ रहे है। साइबर फ्रॉड का एक तरीका सिम स्वैपिंग हुआ है। सिम स्वैपिंग करके जालसाज लोगों के बैंक खाते से पैसे उड़ा लेते हैं और लोगों को भनक तक नहीं लगती। सिम कार्ड स्वैपिंग के मामले दिल्ली और मुंबई समेत कई राज्यों से सामने आए हैं जिनमें सिम स्वैपिंग करके लोगों के बैंक अकाउंट से लाखों रुपये उड़ाए गए हैं। आइए जानते हैं आखिर क्या है सिम स्वैपिंग और क्या हैं इससे बचने के तरीके.
क्या है सिम स्वैपिंग?
सिम स्वैप का सीधा मतलब सिम कार्ड को बदल देना या उसी नंबर से दूसरा सिम निकलवा लेना है। सिम स्वैपिंग में आपके मोबाइल नंबर से एक नए सिम का रजिस्ट्रेशन किया जाता है। इसके बाद आपका सिम कार्ड बंद हो जाता है और आपके मोबाइल से नेटवर्क गायब हो जाता है। ऐसे में ठग के पास आपके मोबाइल नंबर से सिम चालू हो जाता है और इसी का फायदा उठाकर वह आपके नंबर पर ओटीपी मंगाता है और फिर आपके खाते से पैसे उड़ा लेता है।साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट एडवोकेट प्रशांत माली के मुताबिक 2011 के बाद से इस तरह के अपराध बढ़े हैं। सिम स्वैपिंग सिर्फ एक शख्स नहीं करता बल्कि इस तरह के काम में कई लोग शामिल रहते हैं। संगठित गिरोह इसे अंजाम देते हैं। साइबर एंड लॉ फाउंडेशन की आंतरिक रिसर्च से पता चला है कि 2018 में इस तरीके से भारत में 200 करोड़ रुपये उड़ा लिए गए। अलग-अलग तरह के मीडिया, सोशल मीडिया के जरिये पहले तो आप पर नजर रखी जाती है और आपकी जानकारियां जुटाई जाती हैं। कई बार आपको किसी अनजान नंबर से कॉल आती है और जानकारी ली जाती हैं।
सिम कार्ड स्वैपिंग के लिए लोगों के पास ये ठग फोन करते हैं और दावा करते हैं कि वे आपके सिम कार्ड की कंपनी जैसे एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया या जियो के ऑफिस से बोल रहे हैं। ये ठग लोगों से इंटरनेट की स्पीड बढ़ाने और कॉल ड्रॉप को ठीक करने का दावा करते हैं। इसी बातचीत के दौरान ये आपसे 20 अंकों का सिम नंबर मांगते हैं जो कि सिम कार्ड के पीछे लिखा होता है। जैसे ही आप नंबर बताते हैं तो वे आपसे 1 दबाने के लिए कहते हैं। 1 दबाने के साथ ही नया सिम कार्ड जारी करने का ऑथेंटिकेशन पूरा हो जाता है और फिर आपके फोन से नेटवर्क गायब हो जाता है।
एसेट स्वैप क्या है?
जैसा कि नाम से पता चलता है, परिसंपत्ति स्वैप में नकदी प्रवाह के बजाय वास्तविक संपत्ति का आदान-प्रदान होता है। एक तरह से, जहां तक संरचना का संबंध है, एक परिसंपत्ति स्वैप को एक सादे वैनिला स्वैप के समान समझा जा सकता है। हालांकि, इन दोनों के बीच एकमात्र बड़ा अंतर यह है कि एसेट स्वैप में, नियमित फिक्स्ड या फ्लोटिंग लोन ब्याज दरों की अदला-बदली के बजाय फ्लोटिंग और फिक्स्ड एसेट्स का आदान-प्रदान स्वैप क्या हैं? होता है।
सभी स्वैप डेरिवेटिव अनुबंध हैं जो दो पक्षों को वित्तीय साधनों का आदान-प्रदान करने की अनुमति देते हैं। ये यंत्र कुछ भी हो सकते हैं; हालांकि, अधिकांश स्वैप में केवल नकदी प्रवाह शामिल होता हैआधार काल्पनिक मूलधन की राशि जिस पर दोनों पक्ष सहमत हैं।
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि एक्सचेंजों पर स्वैप का कारोबार नहीं किया जा सकता है। और, आम तौर पर, खुदरा निवेशक इस प्रकार के स्वैप में भाग नहीं लेते हैं। एक तरह से, स्वैप वित्तीय संस्थानों या व्यवसायों के बीच ओवर-द-काउंटर अनुबंध हैं।
एसेट स्वैप को समझना
एसेट स्वैप, एक तरह से की फ्लोटिंग दरों के साथ निश्चित ब्याज दरों को ओवरलैप करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता हैगहरा संबंध कूपन इस अर्थ में, उन्हें बदलने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता हैआधारभूत संपत्तियांनकदी प्रवाह परिसंपत्ति के जोखिमों को हेज करने के लिए विशेषताएँ, चाहे वह ब्याज दरों, क्रेडिट और/या मुद्रा के लिए प्रासंगिक हों।
आम तौर पर, एक परिसंपत्ति स्वैप में लेनदेन शामिल होते हैं जिसमेंइन्वेस्टर बांड की स्थिति लेता है और उसी के साथ ब्याज दर स्वैप में कदम रखता हैबैंक जिसने उसे बांड बेच दिया। और फिर, निवेशक निश्चित भुगतान करता है लेकिन फ्लोटिंग प्राप्त करता है।
इस दृष्टिकोण का व्यापक रूप से बैंकों द्वारा लंबी अवधि की अचल दरों की संपत्ति को में बदलने के लिए उपयोग किया जाता हैअस्थाई दर अपने अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने के लिए। एसेट स्वैप का एक अन्य प्रचलित उपयोग क्रेडिट जोखिम के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के खिलाफ बीमा प्राप्त करना है, जैसे जारीकर्ता दिवालिया हो जाना याचूक जाना.
एसेट स्वैप का उदाहरण
आइए यहां एक एसेट स्वैप उदाहरण लें। मान लीजिए आपनिवेश एक बांड में 120% की गंदी कीमत पर। अब, आप बांड जारीकर्ता द्वारा डिफ़ॉल्ट होने के जोखिम से बचाव करना चाहते हैं। फिर, आप संपत्ति की अदला-बदली करवाने के लिए बैंक से संपर्क कर सकते हैं।
बांड के निश्चित कूपन के 6% हैंमूल्य से. और स्वैप दर 5% है। अब मान लीजिए कि आपको 0.5% कीमत चुकानी होगीअधिमूल्य स्वैप के जीवनकाल के दौरान। इस तरह, एसेट स्वैप स्प्रेड होगा
इस प्रकार, बैंक आपको स्वैप के जीवनकाल के दौरान 0.5% दरों का भुगतान करेगा।