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एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है

एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है
खांसी को लेकर स्टडी

नीचे की ओर मुंह करके खांसने से कम फैलते हैं खांसी वाले ड्रॉपलेट्स, पढ़ें क्या कहती है ये स्टडी

'एआईपी एडवांसेज' की इस स्टडी में रिसर्चर्स ने इस खांसी के ड्रॉपलेट्स के फैलाव का जिक्र किया, जो लोगों से ऊपर और नीचे चलने के दौरान आए थे.

खांसी को लेकर स्टडी

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gnttv.com

  • नई दिल्ली,
  • 05 जनवरी 2022,
  • (Updated 05 जनवरी 2022, 11:56 PM IST)

ऐसे कम फैलते हैं खांसी वाले ड्रॉपलेट्स

एक स्टडी में पाया गया है कि नीचे की ओर खांसने से श्वसन की बूंदों का प्रसार कम हो जाता है. रिसर्चर्स की एक टीम ने पाया है कि अगर आप नीचे की ओर मुंह करके खांसते हैं तो खांसी पैदा करने वाले ड्रॉपलेट्स कम फैल सकते हैं. यह स्टडी 'एआईपी एडवांसेज' में प्रकाशित हुआ है.

शोधकर्ताओं ने इस शोध में खांसी के ड्रॉपलेट्स के फैलाव का जिक्र किया जो लोगों से ऊपर और नीचे चलने के दौरान आए थे. होंगपिंग वांग और उनकी टीम ने मॉडल को ड्राइविंग करते हुए दिखाया कि कैसे एक पानी की सुरंग के अंदर एक पुतले से सांस की बूंदें गिरती हैं, जो अलग-अलग कोणों से ऊपर और नीचे जाने वाले व्यक्ति की नकल करने के लिए झुकी हुई थी.

वांग ने कहा कि, अलग-अलग वेक फ्लो के कारण बूंदों के फैलाव के दो अलग-अलग पैटर्न देखे जाते हैं. इन परिणामों से पता चलता है कि हमें यह सुनिश्चित करने के लिए अपना सिर नीचे करके खांसना चाहिए कि अधिकांश बूंदें जाग्रत रीजन में प्रवेश करें.

कैसे की गई स्टडी

हर एक नमुने को पानी की सुरंग में रखने के बाद, उन्होंने सुरंग में खोखले कांच के माइक्रोस्फीयर लगाए. जब इन पर लेजर डाला गया तो, तो कांच के माइक्रोस्फीयर ने पुतलों के पीछे प्रवाह गति की कल्पना करने का एक रास्ता दिखाया. इस प्रवाह क्षेत्र, जिसे अक्सर वेक कहा जाता है, का अध्ययन कण छवि वेलोसिमेट्री नामक तकनीक का उपयोग करके किया गया था.

कंप्यूटर सिमुलेशन में, सिर से नीचे और जमीन की ओर बढ़ने वाले कण प्रत्येक पुतले के वेक में फंस गए और नीचे की ओर चले गए. ऐसा प्रतीत होता है कि सिर के ऊपर के कण हॉरिजोंटल रूप से अपेक्षाकृत दूर तक जाने में सक्षम थे जैसे कि वे सिर के ऊपर से उत्सर्जित हों.

उन पुतलों के लिए जिनके झुकाव ऊपर की ओर जाते हुए रिफलेक्ट होते हैं, कण कंधे के नीचे केंद्रित होते हैं और छोटी यात्रा दूरी के साथ नीचे की ओर चले जाते हैं. नीचे जाने के अनुकरण के लिए, व्यक्ति के सिर पर बिखरे कणों को लंबी दूरी तक ले जाया जाता था. बड़ी चुनौती ये है कि हवा में बूंदों का पता करने के लिए पानी में कणों का उपयोग कैसे किया जाए.

क्या रही सबसे आश्चर्यजनक बात

वांग ने कहा कि सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि सिर से ऊंचे कण वेक फ्लो के शामिल होने के कारण सिर से नीचे के कणों की तुलना में अधिक लंबी दूरी तय कर सकते हैं. वैंग 3डी प्रभावों का अध्ययन करना चाहता हैं कि जब प्रायोगिक स्थितियों में चलते समय असली लोग खांसते हैं तो क्या होता है.

एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है

ये हिचकियां निकालना बंद करो।
— मैं नहीं कर सकती।
— क्यों नहीं कर सकती?
— क्योंकि ये हिचकियां नहीं, टूरेट सिंड्रोम है।

इन डायलॉग ने आपको हालिया रिलीज़ फिल्म हिचकी की याद दिला दी होगी। हिचकी फिल्म के आने से पहले मैं इस शब्द से वाकिफ नहीं थी। आप में से कइयों के लिए भी ये शब्द अनसुना रहा होगा। फिल्म देखी तो टूरेट सिंड्रोम के बारे में और जानने का मन हुआ। कंप्यूटर खोला और जुट गई नेट से जानकारी इकट्ठा करने में। आप भी टूरेट सिंड्रोम के बारे में जानना चाहेंगे.
टूरेट सिंड्रोम यह नाम फ्रांसीसी चिकित्सक, जॉर्ज गिलेस डे ला टूरेट के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 19वीं सदी में इस बीमारी के लक्षणों का विवरण दिया था।

टूरेट सिंड्रोम एक तंत्रिका सम्बंधी विकार है। इसमें इंसान के मस्तिष्क के तंत्रिका नेटवर्क में कुछ गड़बड़ी हो जाती है जिससे वे अनियंत्रित हरकतें करते हैं या अचानक आवाज़ें निकालते हैं। इन्हें टिक्स कहा जाता है। बांह या सिर को मोड़ना, पलकें झपकाना, मुंह बनाना, कंधे उचकाना, तेज़ आवाज़ निकालना, गला साफ करना, बातों को बार-बार कहने की ज़िद करना, चिल्लाना, सूंघना आदि टिक्स के प्रकार हैं।
टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों में टिक्स के पहले अजीब-सी उत्तेजना होती है और टिक्स हो जाने के बाद थोड़ी देर के लिए राहत मिलती है। पर कुछ देर बाद फिर वही उत्तेजना पैदा होने लगती है। इन लक्षणों पर उन लोगों का कोई नियंत्रण नहीं रहता।

टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के बौद्धिक स्तर या जीवन प्रत्याशा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन अपनी अनियंत्रित हरकतों के कारण उन्हें कई बार शर्मिंदगी और अपमान का सामना करना पड़ता है जिससे उनका रोज़मर्रा का कामकाज और सामाजिक जीवन बहुत ज़्यादा प्रभावित होता है।
टूरेट सिंड्रोम के कारणों के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। शोध के अनुसार, मानव के मस्तिष्क के बेसल गैंग्लिया वाले हिस्से में गड़बड़ी के कारण टूरेट सिंड्रोम के लक्षण विकसित होते हैं। बेसल गैंग्लिया शरीर की ऐच्छिक गतिविधियों, नियमित व्यवहार या दांत पीसने, आंखों की गति, संज्ञान और भावनाओं जैसी आदतों को नियंत्रित करने में मदद करता है।

कुछ अन्य शोध के अनुसार टूरेट सिंड्रोम के मरीज़ों में बेसल गैंग्लिया थोड़ा छोटा होता है और डोपामाइन तथा सेरोटोनिन जैसे रसायनों के असंतुलन के कारण भी यह समस्या उत्पन्न होती है। यह व्यक्ति के आसपास के वातावरण से भी प्रभावित होता है।

टूरेट सिंड्रोम में बिजली का झटका जैसा लगता है लेकिन यह सनसनाहट ज़्यादा देर तक नहीं रहती है बल्कि आती-जाती रहती है। डॉक्टर अभी भी निश्चित तौर पर यह नहीं समझ पाए हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। टूरेट सिंड्रोम के आधे मरीजों में अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (यानी एकाग्रता का अभाव और अति सक्रियता) के लक्षण दिखाई देते हैं जिसके कारण ध्यान देने, एक जगह बैठने और काम को खत्म करने में परेशानी होती है। टूरेट सिंड्रोम के कारण चिंता, भाषा सीखने की क्षमता में कमी (डिसलेक्सिया), विचारों और व्यवहार को नियंत्रित करने की क्षमता में कमी आदि समस्याएं भी हो सकती हैं। तनाव, उत्तेजना, कमज़ोरी, थकावट या बीमार पड़ जाना इस सिंड्रोम को और गंभीर बना देते हैं।

यह आनुवंशिक है यानी यदि परिवार में किसी व्यक्ति को टूरेट सिंड्रोम हो तो उसकी संतानों को भी टूरेट सिंड्रोम होने की संभावना रहती है। लेकिन टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित एक ही परिवार के व्यक्तियों में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं।
अमूमन कई बच्चों में ये टिक्स उम्र के साथ अपने आप चले जाते हैं पर लगभग 1 प्रतिशत बच्चों में ये स्थायी रूप में रह जाते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में ये ज़्यादा होते हैं।

वैसे तो टूरेट सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन टिक्स को नियंत्रित किया जा सकता है। दवाइयों को प्राथमिक उपचार के रूप में दिया जाता है। किंतु इन दवाइयों से थकावट, वज़न बढ़ना, संज्ञान सुस्ती जैसे दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। दवाइयों के अलावा व्यवहारगत उपचार भी दिया जाता है जिससे टिक्स के प्रभाव और तीव्रता को कम किया जाता है।

व्यवहारगत उपचार में टिक्स के पैटर्न और आवृत्ति की निगरानी की जाती है और उन उद्दीपनों को पहचानने की कोशिश की जाती है जिनसे टिक्स उत्पन्न होते हैं। इसके बाद टिक्स को संभालने के विकल्प सुझाए जाते हैं (उदाहरण के लिए, गर्दन के झटके को कम करने के लिए ठुड्डी को नीचे करते हुए गर्दन को सीधा खींचना)। ऐसे उपाय टिक्स के कारण पैदा हुई उत्तेजनाओं से मुक्ति पाने में मददगार होते हैं। मरीज़ और उसके परिवार की काउंसलिंग की जाती है एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है ताकि वे समाज और घर में भागीदार बन सकें।

पर सबसे ज़्यादा ज़रूरत है संवेदनशीलता की, टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के साथ सामान्य व्यवहार करने की। हमारी संवेदनशीलता उन्हें एक सामान्य जीवन जीने में मदद कर सकती है। यह बात एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है सिर्फ टूरेट के मामले में नहीं बल्कि हर भिन्न-सक्षम व्यक्ति के मामले में लागू होती है। (स्रोत फीचर्स)

कैंसर: सचेत रहें बचे रहें

मुंह, गर्दन व सिर का कैंसर, अन्य कैंसरों की तुलना में तेजी से पांव पसार रहा है। फिलहाल भारत में इसकी जानकारी भी कम है। पर अच्छी बात यह है कि इन कैंसर से न सिर्फ पूरी तरह बचा जा सकता है, बल्कि समय पर.

कैंसर: सचेत रहें बचे रहें

मुंह, गर्दन व सिर का कैंसर, अन्य कैंसरों की तुलना में तेजी एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है से पांव पसार रहा है। फिलहाल भारत में इसकी जानकारी भी कम है। पर अच्छी बात यह है कि इन कैंसर से न सिर्फ पूरी तरह बचा जा सकता है, बल्कि समय पर सचेत रह कर शुरुआती स्तर पर ही इन्हें बढ़ने से रोका जा सकता है, बता रहे हैं जयकुमार सिंह

हमारा शरीर बहुत-सी छोटी-छोटी इकाइयों से बना है, जिन्हें हम कोशिकाएं कहते हैं। इन कोशिकाओं का जीवनकाल बहुत कम होता है, इसलिए शरीर में इनके टूटने और नए बनने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जब किन्हीं कारणों से इस प्रक्रिया में बाधा आती है तो ये कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ना शुरू कर देती हैं और धीरे-धीरे गांठ का रूप धारण कर लेती हैं। यही कैंसर है। भारत में सौ से ज्यादा प्रकार के कैंसर हैं, जिसमें स्तन, फेफड़ों और सर्वाइकल कैंसर के बारे में सबसे ज्यादा सुना जाता है। पर मुंह, सिर और गले के कैंसर के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। भारत में इसकी जानकारी रखने वालों की संख्या बहुत कम है, पर इसके शिकार बने लोगों की संख्या कम नहीं है।

जर्नल ऑफ हेड एंड नेक सजर्री में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सिर और गले के कैंसर के मामले में एशिया सबसे आगे एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है है। वैश्विक स्तर पर इस बीमारी से ग्रसित लोगों में 57.5 प्रतिशत एशियाई मुल्क के रहने वाले हैं। खासकर भारत में सिर और गले का कैंसर तेजी से अपने पांव पसार रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट के अनुसार हर साल इस बीमारी से ग्रसित 2 से 2.5 लाख नए मामले सामने आते हैं। विश्व के एक तिहाई पीड़ित हमारे देश में ही हैं। कैंसर के करीब 70% मामलों में मरीज की अनुचित जीवनशैली और सामाजिक व्यवहार मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है।

गर्दन व सिर का कैंसर
गर्दन व सिर के कैंसर से आशय उन ट्यूमर्स से है, जो गर्दन और सिर के हिस्से में होता है। इस हिस्से में ओरल कैविटी, थायरॉइड और थूक ग्रंथि विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। सिगरेट व तंबाकू का सेवन, कुछ खास तरह के विटामिनों की कमी, मसूढ़ों में होने वाली बीमारी इसका खास कारण हो सकते हैं। आंकड़ों के अनुसार समूचे दक्षिण एशिया खासकर भारत व पाकिस्तान में गले का कैंसर एक भयावह स्थिति में पहुंच चुका है। चिंता की बात यह है कि गले का कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है। 20 से 25 वर्ष के युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। हालांकि 40 से 50 की आयु वाले लोग इसके लक्ष्य पर अधिक हैं। राहत देने वाली खबर यह है कि समय रहते बीमारी का पता चल जाने पर इसे ठीक करने की तकनीक चिकित्सा विज्ञान ने ईजाद कर ली है। ऐसे में बेहतर होगा कि शरीर में दिखने वाले मामूली लक्षणों के प्रकट होने पर तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श लें।

लक्षण
- आवाज बदल जाती है
- आवाज भारी हो जाती है
- मुंह से खून आ सकता है
-गले में जकड़न-सी महसूस होती है
- सांस लेने में तकलीफ होती है
- खाना खाने में तकलीफ होती है
- ठीक न होने वाली गांठ या छाला
- गले में खराश, जो इलाज के बावजूद ठीक न हो
- नियमित सिर दर्द होना
-कानों में दर्द या सीटियां बजने लगना
-खाना निगलते समय गले में या आसपास दर्द, कानों में दर्द होना।

कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जिन पर ध्यान जरूरी है:
मुंह
: मसूढ़े, जीभ या मुंह के अंदर सफेद या लाल चकत्ता होना। जबड़ों में सूजन आ जाए और मुंह में असामान्य रक्तस्नव या दर्द हो।
नाक: साइनस का गंभीर संक्रमण, जिस पर एंटीबायोटिक उपचार का कोई असर न हो, नाक से खून बहना, बार-बार सिर दर्द होना, आंखों में सूजन, ऊपर के दांतों में दर्द रहना आदि।
थूक ग्रंथी: ठोढ़ी के निचले हिस्से या जबड़े के आसपास सूजन, चेहरे की मांसपेशियों में सुन्नता और चेहरे, ठोढ़ी और गले में लगातार होने वाला दर्द। ये लक्षण मामूली हैं, इन्हें आसानी से नजरअंदाज कर दिया जाता है, क्योंकि ये कुछ ही समय में ठीक हो जाते हैं। पर यदि आराम नहीं आ रहा है तो अनुभवी चिकित्सक से परामर्श लेना जरूरी है।

मुंह का कैंसर
मुंह में होने वाला कैंसर बहुत आम है। यह भारतीय पुरुषों को ज्यादा होता है और महिलाओं में यह तीसरा सर्वाधिक होने वाला कैंसर है। लगभग 90 प्रतिशत रोगी तंबाकू चबाने वाले उत्पादों की वजह से इसके शिकार बनते हैं। शुरुआती दौर में छाला या मुंह का छोटा-मोटा अल्सर समझ कर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। यही वजह है कि भारत में इस कैंसर से ग्रसित 70 से 80 प्रतिशत रोगियों का इलाज अंतिम स्थिति में पहुंचने पर होता है। डॉक्टरों की मानें तो ऐसी स्थिति में उपचार में अधिक समय लगता है।

सिगरेट, शराब और गुटका का ज्यादा सेवन करने वाले लोगों को यह कैंसर होने का जोखिम अधिक होता है। मुंह के कैंसर की शुरुआत छाले के रूप में होती है, पर यह छाला ऐसा है, जो जल्दी ठीक नहीं होता। इस दौरान गाल व मसूढ़े में सूजन व दर्द रहता है। मुंह खोलने में कठिनाई होती है। गर्दन में गांठ जैसी बनने लगती है। हर समय खराश रहती है। जीभ हिलाने पर तकलीफ होती है। आवाज साफ नहीं निकलती। कुछ रोगियों के दांत अचानक कमजोर हो जाते हैं और हिलने लगते हैं।

मस्तिष्क का कैंसर
मस्तिष्क के कैंसर की मूल वजह अभी तक अज्ञात है, पर कुछ वजहों से इसकी आशंका बढ़ जाती है। मसलन, शरीर के किसी अन्य हिस्से में कैंसर हुआ हो तो उसके मस्तिष्क तक फैलने की आशंका बढ़ सकती है। इसमें मस्तिष्क के हिस्से में गांठ बनने लगती है। कुछ खास रसायनों के संपर्क में आने पर भी यह कैंसर हो सकता है। यह जेनेटिक भी हो सकता है। मस्तिष्क के आगे और पीछे वाले हिस्से में होने वाले कैंसर के लक्षण अलग-अलग होते हैं। मस्तिष्क के कैंसर में दिखने वाले कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं..

- गांठ बनने की शुरुआत होते ही स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगता है
- सिर में हमेशा दर्द रहता है
- शारीरिक कमजोरी लगती है, हर समय थकावट रहने लगती है।
- शरीर का कोई अंग सुन्न हो जाता है, जैसे कि उसमें चेतना ही न हो
- बहुत बेचैनी होती है
- कुछ मामलों में लिखने व सवाल हल करने में कठिनाई होती है।

आमतौर पर कैंसर का उपचार शल्य क्रिया, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी तीन तरीकों से होता है। कैंसर के आधार पर पद्धति का चुनाव होता है। मसलन यदि कैंसर किसी अंग विशेष में है तो शल्य क्रिया से उस अंग को हटाया जाता है या संक्रमित हिस्से को काट दिया जाता है। यदि ऐसा करना संभव नहीं है तो उसमें रेडिएशन थेरेपी से इलाज होता है। इस हिस्से में रेडिएशन के जरिये कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इसे विशेष परिस्थितियों में ही अपनाया जाता है। तीसरी पद्धति कीमोथेरेपी है, जिसमें दवाओं से उपचार किया जाता है। इसके अलावा हार्मोन थेरेपी भी प्रचलित है।


गले का उपचार
गले के कैंसर के संबंध में सबसे पहले मरीजों की पूरी जांच की जाती है। फिर ‘बॉयोप्सी’ जांच से बीमारी की अवस्था का पता लगाया जाता है। अगर कैंसर गले के ऊपरी भाग में हुआ है तो इलाज करने में आसानी होती है। नीचे होने पर स्थिति चिंताजनक हो सकती है। बीमारी अगर पहले या दूसरे चरण में है तो इसे रेडियोथेरेपी से ठीक किया जा सकता है। तीसरे चरण में रेडियोथेरेपी के साथ सर्जरी करनी पड़ती है। कैंसर अगर चौथे चरण में है तो उसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, पर रोगी जीने लायक जरूर हो जाता है।
(अपोलो हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजेश चावला से बातचीत पर आधारित)

शिशु विकासात्मक माइल्सटोन चार्ट: 1 से 6 महीने

ये शिशु विकास माइल्सटोन चार्ट आपको इस बात का अंदाजा देते हैं कि जन्म के बाद शुरुआती छह महीनों में हर चरण पर आप शिशु से क्या उम्मीद कर सकती हैं। ध्यान में रखें कि हर शिशु का विकास अलग तरीके से होता है। यदि आपको शिशु के विकास के बारे में कोई चिंता हो तो डॉक्टर से सलाह लें।

शिशु माइल्सटोन: 1 महीना

  • पेट के बल लेटने पर सिर एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है उठाता है
  • आवाज पर प्रतिक्रिया करता है
  • चेहरों को घूरकर देखना
  • रोशनी की तरफ सिर घुमाता है
  • काले व सफेद पैटर्न देख सकता है
  • चीजों का अनुकरण करता है
  • ऊह-आह की आवाज करता है
  • मुस्कुराता है
  • सिर को 45 डिग्री के कोण तक उठाता है

शिशु माइल्सटोन: 2 महीने

  • अब धीमी सी प्यारी आवाजें निकाल सकता है
  • चेहरे के पास लाने पर चीजों और चेहरों का अनुकरण करता है
  • थोड़े समय के लिए सिर को ऊपर उठाता है
  • आपकी आवाज को पहचानता है
  • मु​स्कुराकर प्रतिक्रिया देता है
  • सिर को 45 डिग्री के कोण तक उठाता है
  • हरकतें या गतिविधियां काफी सहज हो जाती हैं
  • सिर को स्थिरता से उठाता है
  • टांगों पर अपना वजन संभाल पाता है
  • सिर और कंधे भी उठा सकता है (मिनी-पुश अप)

शिशु माइल्सटोन: 3 महीने

  • स्थिरता से सिर उठा लेता है
  • आपके चेहरे को पहचानता है
  • छोटे पुश-अप करता है
  • हंसता और मुस्कुराता है
  • ऊंची आवाज की तरफ पलटकर देखता है
  • दोनों हाथों को एक साथ मिला सकता है और खिलौनों पर मार सकता है
  • पेट से पीठ के बल पलट सकता है

शिशु माइल्सटोन: 4 महीने

  • स्थिरता से सिर ऊपर उठाता है
  • टांगों पर वजन संभाल सकता है
  • आप जब बात करते हैं तो एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है प्यार भरी आवाज निकालता है
  • छोटे पुश-अप करता है
  • हाथ बढ़ाकर चीजों या खिलौनों को पकड़ सकता है
  • आवाजों की नकल करता है, बा..बा, दा..दा, डा..डा जैसी आवाजें निकाल सकता है
  • पेट से पीठ के बल पलट सकता है

शिशु माइल्सटोन: 5 महीने

  • गहरे और स्पष्ट रंगों को पहचान सकता है
  • पेट से पीठ के बल पलट सकता है
  • अपने हाथों और पैरों के साथ खेलकर खुश होता है
  • नई आवाजों की तरफ मुड़कर देखता है
  • कुछ क्षणों के लिए बिना सहारे बैठ सकता है
  • पीठ से पेट के बल पलट सकता है
  • चीजों को मुंह में लेता है
  • अनजान व्यक्ति को देखकर व्याकुल हो सकता है

शिशु माइल्सटोन: 6 महीने

  • आवाजों और ध्वनि की ओर पलटता है
  • आवाजों की नकल करता है, फूंक मारकर बुलबुले बनाता है खाने के लिए तैयार होता है
  • चीजों तक पहुंच कर उन्हें मुंह में लेता है
  • दोनों दिशाओं में पलट सकता है
  • अपना नाम पहचानता है
  • आगे की तरफ बढ़ सकता है या घुटनों के बल चलना शुरु कर सकता है
  • बड़बड़ा सकता है या अक्षरों को जोड़कर बोल सकता है
  • चीजों को अपनी तरफ घसीट सकता है
  • बिना सहारे के बैठ सकता है

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Explained: क्या सिर हिलाकर हां-नहीं कहना सिर्फ भारतीयों की अदा है?

जोरों से मुंडी हिलाते हुए हां या न कहना हेड बॉबल कहलाता है- सांकेतिक फोटो (flickr)

जोरों से मुंडी हिलाते हुए हां या न कहना हेड बॉबल (head bobble) कहलाता है. पूरी दुनिया में केवल दक्षिण एशियाई देश (South Asian nations) ही बगैर बोले सिर हिलाते हैं.

  • News18Hindi
  • Last Updated : September 23, 2020, 06:48 IST

क्रमिक विकास (evolution) के साथ हमने सिर्फ बहुत-सी चीजें सीखीं, जिनमें से एक है संवाद (communication). दुनिया के हर हिस्से ने भाषा ईजाद की. माना जाता है कि ग्लोबली 6900 भाषाएं हैं, जिनमें से अधिकतर खत्म होने के स्तर पर हैं. अपने देश में भाषाओं की बात करें तो संविधान में 22 भाषाएं शामिल हैं, जिनके अलावा बोलियां भी हैं. इसके बाद भी हमारे पास संवाद की एक बिल्कुल अनोखी रीत है- वो है सिर हिलाना (headnod). जिस तरह से सिर हिलाकर हम हां या न कहते हैं, वो एशिया के अलावा दुनिया के किसी हिस्से में नहीं. एक्सपर्ट इसे हेड बॉबल (head bobble) कहते हैं. जानिए, क्या कहना है सिर हिलाने का विज्ञान.

क्या है ये सिर हिलाना
सिर हिलाकर हां या न कहने का ये तरीका हेड बॉबल या हेड वॉबल (head wobble) भी कहलाता है. ये कई तरीकों से होता है, जैसे ऊपर-नीचे सिर हिलाने का मतलब सामने वाला हां कह रहा है. इसी तरह से दाएं-बाएं सिर घुमाना यानी सामने वाला इनकार कर रहा है. कई बार थैंक यू भी एक बार सिर हिलाकर बिना कोई शब्द बोले कहा जाता है.

विदेशी टूरिस्टों के लिए परेशानी का सबब
कुल मिलाकर सिर हिलाने का एक ही मतलब नहीं, बल्कि इसे जानने वाले ही इसे समझते हैं. भारत आने वाले विदेशी सैलानी अगर बिना गाइड के हों तो इस संवाद में काफी परेशान होते हैं. खासकर अगर विदेशी अंग्रेजी में तंग हो और जिससे बात करने की कोशिश कर रहा हो, उसे भी भाषा की समझ न हो, तब ऐसे इशारे परेशानी बढ़ा देते हैं.

News18 Hindi

ये आदत नॉनवर्बल कम्युनिकेशन (NVC) के तहत आती है- सांकेतिक फोटो (Pixabay)

क्या कहती हैं स्टडी
वैसे भारतीय में हेड-नॉड यानी सिर हिलाने की आदत पर काफी स्टडी की जा चुकी है. इससे पता चला कि ये आदत सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि उसके आसपास के कई एशियाई देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल तक में है. नॉनवर्बल कम्युनिकेशन (NVC) के तहत आने वाली ये आदत ठीक वैसी ही है, जैसे विदेशियों में कंधे उचकाना या आंखों में आंखें डालकर देखना.

सबसे पहले साल 1872 में इसका जिक्र हुआ था. तब The Expression of the Emotions in Man and Animals के नाम से इंसानों के साथ-साथ जानवरों में भी नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन को समझने की कोशिश हुई.

किस श्रेणी में आता है यूं बिना बोले कहना
इसके कई प्रकार देखे गए. हालांकि इसके तहत 5 प्रकार मुख्य हैं, जिनमें बिना बोले कोई शख्स अपनी बात अगले तक पहुंचाता है. इसमें चेहरे के हावभाव, एक सिर और कंधे पैटर्न क्या है जेस्चर्स (भंगिमाएं), पैरालिंग्विस्टिक्स (आवाज का उतार-चढ़ाव), प्रोक्सेमिक्स यानी स्पेस की जरूरत और आंखों का इशारा शामिल हैं. हेड नॉड यानी सिर हिलाने की आदत दो श्रेणियों के तहत आती है- बॉडी लैंग्वेज और जेस्चर्स.

News18 Hindi

श्रीलंका में भी हेड नॉड की आदत ठीक भारतीयों जैसी ही है- सांकेतिक फोटो (needpix)

श्रीलंका में भी समान आदत
भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में भी हेड नॉड की आदत ठीक भारतीयों जैसी ही है. फर्क बस इतना है कि वहां के लोग ज्यादा तेजी से सिर हिलाते हैं. शायद ये इस बात का इशारा है कि वे बात समझ चुके हैं और ज्यादा बात बढ़ाने की जरूरत नहीं. बात रोकने के अलावा वे ना कहने के लिए भी दाएं-बाएं पूरे जोरों से सिर घुमाते हैं.

जोर से हिलाते हैं सिर
कल्चर ट्रिप वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोलंबो में चूंकि श्रीलंका के हर हिस्से के लोग बसे हैं, लिहाजा वहां ढेरों तरह से सिर हिलाना दिखेगा. ऐसे में अगर कोई सैलानी एक पैटर्न को समझकर उसे ही दूसरी जगह लागू करना चाहे तो भारी मुसीबत में पड़ सकता है. इनमें समानता ये ही है कि लगभग सभी जोर से सिर हिलाते हैं.

संस्कृति भी एक वजह
भारतीयों का सिर हिलाना पूरी दुनिया में चर्चित है. साल 2010 में एक अमेरिकन सिटकॉम आया था. आउटसोर्स्ड (Outsourced) नाम के इस सीरियल में भारतीयों के सिर हिलाकर बिना बोले कुछ कहने पर बाकायदा बात हुई थी. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय कुछ तो अपनी संस्कृति के दबाव में ये नॉनवर्बल तरीका अपना चुके हैं. जैसे यहां बड़ों से असहमति होने पर सीधे उनकी बात काटना ठीक नहीं माना जाता. ऐसे में सिर हिलाकर हम चुप्पी साधे रहते हैं. ये एक तरह से अपनी बात रखने के लिए समय लेने की तरह है. साथ ही सीधी असहमति से निजात मिल जाती है.

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