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शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है?

शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है?

Share Market Update: दिवाली से पहले 18,600 का लेवल छू सकता है निफ्टी!

Indian Stock Market: फेड की अगली बैठक नवंबर में है और क्या पता महंगाई में कमी आई तो डाओ में 15 फीसदी का उछाल आ सकता है.

By: ABP Live | Updated at : 24 Sep 2022 08:10 AM (IST)

स्टॉक मार्केट ( Image Source : Getty )

Stock Market Update: फेड रिजर्व के 3.25 फीसदी तक ब्याज दरें बढ़ाने के बाद माना जा रहा है 115 बेसिस प्वाइंट फेड और ब्याज दरें बढ़ा सकता है. महंगाई पर काबू पाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. लेकिन केवल मॉनिटरी पॉलिसी के जरिए महंगाई कम नहीं किया जा सकता है. फेड 2025 तक 2 फीसदी महंगाई दर का लक्ष्य लेकर चल रहा है. ये बयान बताने के लिए काफी है कि अमेरिका में कोई मंदी नहीं है. क्योंकि मंदी होती तो महंगाई दर 2 फीसदी के लेवल पर फौरन आ जाती 2025 तक इंतजार नहीं करना पड़ता. आपको महंगाई के साथ जीना सीखना होगा और मंदी की बात मौके का फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है.

फेड ऐसा नहीं करता तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के 90,000 करोड़ रुपये के निवेश के बाद निफ्टी 21,000 पर होता. सच तो ये है कि फेड रिजर्व भी मंदी की बात नहीं कर रहा है. अर्थशास्त्री भी मानते होंगे कि महंगाई पर नकेल कसने के लिए ब्याज दरें बढ़ाना सही तरीका नहीं है. नगदी ही सबसे ज्यादा प्रभाव डालती है. कमोडिटी ही मंदी की सही पहचान है. अगर जेएसडब्ल्यू, टाटा स्टील, जिंदल और अडानी विस्तार करना या अधिग्रहण छोड़ दें तो मैं मंदी की चिंता करना शुरू कर दूंगा. मैंनै स्टील सेक्टर में विस्तार को लेकर पहले बात की है. दूसरा सेक्टर सीमेंट है. अडानी के अंबुजा सीमेंट और एसीसी के अधिग्रहण और अल्ट्राटेक को पीछे छोड़ने की ललक से साफ स्पष्ट है कि सीमेंट सबसे बेहतरीन सेक्टर है.

अमेरिका 30,000 के नीचे नहीं गया और 15 फीसदी की बढ़त देखी गई. फेड की अगली बैठक नवंबर में है और 75 बेसिस प्वाइंट ब्याज दर बढ़ाने का अनुमान है. उसके बाद 40 बेसिस प्वाइंट और बढ़ाया जा सकता है. अगर अमेरिका में महंगाई दर 8 फीसदी से कम हुआ तो डाओ 35000 तक जा सकता है.

अब हमें बात स्टॉक्स की करनी चाहिए. हमें विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के साथ जाना चाहिए. पहले वे गिराते हैं फिर उठाते हैं. जब वें गिराये तो हमें निचले स्तरों पर खरीदना चाहिए. और जब वे ना रहे तो हमें आगे रहते हुए स्टॉक्स खरीदना चाहिए.

News Reels

इंटरनेट के चलते हमें लगता है कि हम सब जानते हैं जहां सारी जानकारियां उपलब्ध है. लेकिन इसी प्रकार हम जाल में फंस जाते हैं. जब बाजार 15,200 पर था. मीडिया के जरिए ब्रोकर 14500 जाने की बात कर रहे थे. यहीं हम फंस गए. 15,200 से हम 18,100 के लेवल पर आ गए. मैंने तब जो कहा उसे लोगों ने अनसुना कर दिया. लेकिन जिन लोगों ने सीएनआई टीम को फॉलो किया उन्होंने 3 महीने में चुपचाप बहुत पैसे बनाए. कई स्टॉक दोगुना हो गया.

अब हमें ऐसे स्टॉक्स पर फोकस करना चाहिए जिसे बाजार ने अभी स्वीकार नहीं किया है. जिसमें जीटीवी इंजीनिरिंग, विपुल आर्गनिक्स, आरडीबी रसायन, मेटल कोटिंग, आर्टिफेक्ट, एम के एक्सिम, इंटीग्रा इंजीनियरिंग, अल्पाइन हाउसिंग, सुनील एग्रो फूड्स, त्रिवेणी ग्लास और ग्लोबल ऑफशोर शामिल है. इन स्टॉक्स का वॉल्यूम कम है और सही मायने में भविष्य में वेल्थ क्रिएटर बनने वाले हैं. सबसे में कुछ हिडेन ट्रीगर है और बाजार उन्हें तब स्वीकार करेगा जब ये पांच गुना बढ़ चुके होंगे. हम उन्हीं स्टॉक्स पर फोकस करेंगे जिन्हें शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? बाजार अभी नजरअंदाज कर रहा है.

डाओ हो या निफ्टी दोनों ही ओवरसोल्ड हो चुके हैं. हम निफ्टी की नई ऊंचाई से बहुत दूर हैं जो हम दिवाली के पहले देख सकते हैं. फेड की अगली बैठक नवंबर में है और क्या पता महंगाई में कमी आई तो डाओ में 15 फीसदी का उछाल आ सकता है. निफ्टी के 18,600 तक जाने की उम्मीद करना कोई गलत नहीं है.

समझदारी दिखाने की जरुरत है. अंडरवैल्यू डायनमिक स्टॉक्स में निवेश करने की जरुरत है. बाजार में चढ़ना और उतरना दोनों लगा रहता है. जब भी बाजार में भारी गिरावट आए अच्छी जगह निवेश करना चाहिए.

(लेखक के निजी विचार हैं.)

किशोर पी ओस्तवाल
सीएमडी
सीएनआई रिसर्च लिमिटेड

Published at : 24 Sep 2022 06:52 AM (IST) Tags: sensex nifty indian stock market Share Market Update Federal Reserve हिंदी समाचार, ब्रेकिंग शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

Share Market Update: दिवाली से पहले 18,600 का लेवल छू सकता है निफ्टी!

Indian Stock Market: फेड की अगली बैठक नवंबर में है और क्या पता महंगाई में कमी आई तो डाओ में 15 फीसदी का उछाल आ सकता है.

By: ABP Live | Updated at : 24 Sep 2022 08:10 AM (IST)

स्टॉक मार्केट ( Image Source : Getty )

Stock Market Update: फेड रिजर्व के 3.25 फीसदी तक ब्याज दरें बढ़ाने के बाद माना जा रहा है 115 बेसिस प्वाइंट फेड और ब्याज दरें बढ़ा सकता है. महंगाई पर काबू पाने के लिए ऐसा किया जा रहा है. लेकिन केवल मॉनिटरी पॉलिसी के जरिए महंगाई कम नहीं किया जा सकता है. फेड 2025 तक 2 फीसदी महंगाई दर का लक्ष्य लेकर चल रहा है. ये बयान बताने के लिए काफी है कि अमेरिका में कोई मंदी नहीं है. क्योंकि मंदी होती तो महंगाई दर 2 फीसदी के लेवल पर फौरन आ जाती 2025 तक इंतजार नहीं करना पड़ता. आपको महंगाई के साथ जीना सीखना होगा और मंदी की बात मौके का फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है.

फेड ऐसा नहीं करता तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के 90,000 करोड़ रुपये के निवेश के बाद निफ्टी 21,000 पर होता. सच तो ये है कि फेड रिजर्व भी मंदी की बात नहीं कर रहा है. अर्थशास्त्री भी मानते होंगे कि महंगाई पर नकेल कसने के लिए ब्याज दरें बढ़ाना सही तरीका नहीं है. नगदी ही सबसे ज्यादा प्रभाव डालती है. कमोडिटी ही मंदी की सही पहचान है. अगर जेएसडब्ल्यू, टाटा स्टील, जिंदल और अडानी विस्तार करना या अधिग्रहण छोड़ दें तो मैं मंदी की चिंता करना शुरू कर दूंगा. मैंनै स्टील सेक्टर में विस्तार को लेकर पहले बात की है. दूसरा सेक्टर सीमेंट है. अडानी के अंबुजा सीमेंट और एसीसी के अधिग्रहण और अल्ट्राटेक को पीछे छोड़ने की ललक से साफ स्पष्ट है कि सीमेंट सबसे बेहतरीन सेक्टर है.

अमेरिका 30,000 के नीचे नहीं गया और 15 फीसदी की बढ़त देखी गई. फेड की अगली बैठक नवंबर में है और 75 बेसिस प्वाइंट ब्याज दर बढ़ाने का अनुमान है. उसके बाद 40 बेसिस प्वाइंट और बढ़ाया जा सकता है. अगर अमेरिका में महंगाई दर 8 फीसदी से कम हुआ तो डाओ 35000 तक जा सकता है.

अब हमें बात स्टॉक्स की करनी चाहिए. हमें विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के साथ जाना चाहिए. पहले वे गिराते हैं फिर उठाते हैं. जब वें गिराये तो हमें निचले स्तरों पर खरीदना चाहिए. और जब वे ना रहे तो हमें आगे रहते हुए स्टॉक्स खरीदना चाहिए.

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इंटरनेट के चलते हमें लगता है कि हम सब जानते हैं जहां सारी जानकारियां उपलब्ध है. लेकिन इसी प्रकार हम जाल में फंस जाते हैं. जब बाजार 15,200 पर था. मीडिया के जरिए ब्रोकर 14500 जाने की शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? बात कर रहे थे. यहीं हम फंस गए. 15,200 से हम 18,100 के लेवल पर आ गए. मैंने तब जो कहा उसे लोगों ने अनसुना कर दिया. लेकिन जिन लोगों ने सीएनआई टीम को फॉलो किया उन्होंने 3 महीने में चुपचाप बहुत पैसे बनाए. कई स्टॉक दोगुना हो गया.

अब हमें ऐसे स्टॉक्स पर फोकस करना चाहिए जिसे बाजार ने अभी स्वीकार नहीं किया है. जिसमें जीटीवी इंजीनिरिंग, विपुल आर्गनिक्स, आरडीबी रसायन, मेटल कोटिंग, आर्टिफेक्ट, एम के एक्सिम, इंटीग्रा इंजीनियरिंग, अल्पाइन हाउसिंग, सुनील एग्रो फूड्स, त्रिवेणी ग्लास और ग्लोबल ऑफशोर शामिल है. इन स्टॉक्स का वॉल्यूम कम है और सही मायने में भविष्य में वेल्थ क्रिएटर बनने वाले हैं. सबसे में कुछ हिडेन ट्रीगर है और बाजार उन्हें तब स्वीकार करेगा जब ये पांच गुना बढ़ चुके होंगे. हम उन्हीं स्टॉक्स पर फोकस करेंगे जिन्हें बाजार अभी नजरअंदाज कर रहा है.

डाओ हो या निफ्टी दोनों ही ओवरसोल्ड हो चुके हैं. हम निफ्टी की नई ऊंचाई से बहुत दूर हैं जो हम दिवाली के पहले देख सकते हैं. फेड की अगली बैठक नवंबर में है और क्या पता महंगाई में कमी आई तो डाओ में 15 फीसदी का उछाल आ सकता है. निफ्टी के 18,600 तक जाने की उम्मीद करना कोई गलत नहीं है.

समझदारी दिखाने की जरुरत है. अंडरवैल्यू डायनमिक स्टॉक्स में निवेश करने की जरुरत है. बाजार में चढ़ना और उतरना दोनों लगा रहता है. जब भी बाजार में भारी गिरावट आए अच्छी जगह निवेश करना चाहिए.

(लेखक के निजी विचार हैं.)

किशोर पी ओस्तवाल
सीएमडी
सीएनआई रिसर्च लिमिटेड

Published at : 24 Sep 2022 06:52 AM (IST) Tags: sensex nifty indian stock market Share Market Update Federal Reserve हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

जब शेयर मार्केट गिरता है तो कहां जाता है आपका पैसा? यहां समझिए इसका गणित

Share market: जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. आइए इसका जवाब बताते हैं.

  • शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है
  • अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो उसके शेयर के दाम बढ़ेंगे
  • राजनीतिक घटनाओं का भी शेयर मार्केट पर पड़ता है असर

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जब शेयर मार्केट गिरता है तो कहां जाता है आपका पैसा? यहां समझिए इसका गणित

नई दिल्ली: आपने शेयर मार्केट (Share Market) से जुड़ी तमाम खबरें सुनी होंगी. जिसमें शेयर मार्केट में गिरावट और बढ़त जैसी खबरें आम हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जब शेयर मार्केट डाउन होता है, तो निवेशकों का पैसा डूबकर किसके पास जाता है? क्या निवेशकों के नुकसान से किसी को मुनाफा होता है. इस सवाल का जवाब है नहीं. आपको बता दें कि शेयर मार्केट में डूबा हुआ पैसा गायब हो जाता है. आइए इसको समझाते हैं.

कंपनी के भविष्य को परख कर करते हैं निवेश

आपको पता होगा कि कंपनी शेयर मार्केट में उतरती हैं. इन कंपनियों के शेयरों पर निवेशक पैसा लगाते हैं. कंपनी के भविष्य को परख कर ही निवेशक और विश्लेषक शेयरों में निवेश करते हैं. जब कोई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? उसके शेयरों को लोग ज्यादा खरीदते हैं और उसकी डिमांड बढ़ जाती है. ऐसे ही जब किसी कंपनी के बारे में ये अनुमान लगाया जाए कि भविष्य में उसका मुनाफा कम होगा, तो कंपनी के शेयर गिर जाते हैं.

डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है शेयर

शेयर मार्केट डिमांड और सप्लाई के फॉर्मूले पर काम करता है. लिहाजा दोनों ही परिस्‍थितियों में शेयरों का मूल्‍य घटता या बढ़ता जाता है. इस बात को ऐसे लसमझिए कि किसी कंपनी का शेयर आज 100 रुपये का है, लेकिन कल ये घट कर 80 रुपये का हो गया. ऐसे में निवेशक को सीधे तौर पर घाटा हुआ. वहीं जिसने 80 रुपये में शेयर खरीदा उसको भी कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन अगर फिर से ये शेयर 100 रुपये का हो जाता है, तब दूसरे निवेशक को फायदा होगा.

कैसे काम करता है शेयर बाजार

मान लीजिए किसी के पास एक अच्छा बिजनेस आइडिया है. लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए पैसा नहीं है. वो किसी निवेशक के पास गया लेकिन बात नहीं बनी और ज्यादा पैसे की जरूरत है. ऐसे में एक कंपनी बनाई जाएगी. वो कंपनी सेबी से संपर्क कर शेयर बाजार में उतरने की बात करती है. कागजी कार्रवाई पूरा करती है और फिर शेयर बाजार का शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? खेल शुरू होता है. शेयर बाजार में आने के लिए नई कंपनी होना जरूरी नहीं है. पुरानी कंपनियां भी शेयर बाजार में आ सकती हैं.

शेयर का मतलब हिस्सा है. इसका मतलब जो कंपनियां शेयर बाजार या स्टॉक मार्केट में लिस्टेड होती हैं उनकी हिस्सेदारी बंटी रहती है. स्टॉक मार्केट में आने के लिए सेबी, बीएसई और एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) में रजिस्टर करवाना होता है. जिस कंपनी में कोई भी निवेशक शेयर खरीदता है वो उस कंपनी में हिस्सेदार हो जाता है. ये हिस्सेदारी खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करती है. शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. कंपनी और शेयरधारकों के बीच सबसे जरूरी कड़ी का काम ब्रोकर्स ही करते हैं.

निफ्टी और सेंसेक्स कैसे तय होते हैं?

इन दोनों सूचकाकों को तय करने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है कंपनी का प्रदर्शन. अगर कंपनी अच्छा परफॉर्म करेगी तो लोग उसके शेयर खरीदना चाहेंगे और शेयर की मांग बढ़ने से उसके दाम बढ़ेंगे. अगर कंपनी का प्रदर्शन खराब रहेगा तो लोग शेयर बेचना शुरू कर देंगे और शेयर की कीमतें गिरने लगती हैं.

इसके अलावा कई दूसरी चीजें हैं जिनसे निफ्टी और सेंसेक्स पर असर पड़ता है. मसलन भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बारिश अच्छी या खराब होने का असर भी शेयर मार्केट पर पड़ता है. खराब बारिश से बाजार में पैसा कम आएगा और मांग घटेगी. ऐसे में शेयर बाजार भी गिरता है. हर राजनीतिक घटना का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. चीन और अमेरिका के कारोबारी युद्ध से लेकर ईरान-अमेरिका तनाव का असर भी शेयर बाजार पर पड़ता है. इन सब चीजों से व्यापार प्रभावित होते हैं.

Amul दूध की कीमत में हुई बढ़ोतरी से क्या उत्पादकों को होगा लाभ ?

Amul दूध की कीमत में हुई बढ़ोतरी से क्या उत्पादकों को होगा लाभ ?

Amul ब्रांड के दूध और दुग्ध उत्पादों की कीमतों का संशोधन करने वाली सहकारी GCMMF ने इनपुट लागत में वृद्धि के कारण आज से दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि की है. इस कीमत वृद्धि का सबसे अधिक प्रभाव आम जनता पर ही पड़ता है.

ने एक बयान में कहा, कि उन्होंने सम्पूर्ण भारतीय बाजारों में दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि करने का फैसला किया है. इसलिए Amul, दूध की कीमतों का संशोधन कर रहा है, जो 1 मार्च से प्रभावी है. 2 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि MRP में 4% की वृद्धि में तब्दील होती है, जो औसत खाद्य मुद्रास्फीति से काफी कम है".

GCMMF का कहना है, कि कीमत में हुई बढ़ोतरी से दूध उत्पादकों को भी दूध की कीमतें उनके मुनाफे के आधार पर दी जा सकेगी और उन्हें ज्यादा दूध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने में मदद मिल सकेगी. इस बढ़ोतरी के बाद Amul गोल्ड मिल्क की कीमत 30 रुपये प्रति 500ml, Amul ताजा की कीमत 24 रुपये प्रति 500ml और Amul शक्ति की कीमत 27 रुपये प्रति 500ml हो जाएगी.

Amul कंपनी के द्वारा इस वृद्धि को लेकर यह बयान दिया गया है, कि "कीमत में वृद्धि ऊर्जा पैकेजिंग, पशु आहार लागत के साथ-साथ रसद में हुई कीमतों की बढ़ोतरी की वजह से की जा रही है. इन सब चीजों की कीमत में बढ़त हुई है, इसी वजह से दूध की कीमत में भी बढ़ोतरी हुई है. यह सब चीजें इनपुट में आती है. अब इनपुट लागत में अगर वृद्धि होगी तो हमें दूध की कीमत में कुछ इजाफा तो करना होगा".

आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि Amul कंपनी जिन दूध उत्पादकों से दूध लेती है, उन लोगों को कंपनी के द्वारा प्रत्येक एक रुपया कमाने के पीछे 80 पैसे का भुगतान किया जाता है.

बाजार प्रभाव

में वित्तीय बाजारों , बाजार प्रभाव है कि एक बाजार प्रतिभागी जब यह खरीदती है या एक परिसंपत्ति बेचता है प्रभाव है। यह वह सीमा है जिस तक खरीद या बिक्री खरीदार या विक्रेता के खिलाफ कीमत को आगे बढ़ाती है, अर्थात खरीदते समय ऊपर की ओर और बेचते समय नीचे की ओर। यह बाजार की तरलता से निकटता से संबंधित है ; कई मामलों में "तरलता" और "बाजार प्रभाव" पर्यायवाची हैं।

विशेष रूप से बड़े निवेशकों के लिए, जैसे, शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? वित्तीय संस्थान , वित्तीय बाजारों के भीतर या उनके बीच धन स्थानांतरित करने के किसी भी निर्णय से पहले बाजार प्रभाव एक महत्वपूर्ण विचार है। यदि स्थानांतरित की जा रही राशि बड़ी है (प्रश्नाधीन परिसंपत्ति (संपत्तियों) के कारोबार के सापेक्ष), तो बाजार प्रभाव कई प्रतिशत अंक हो सकता है और अन्य लेनदेन लागतों (खरीदने और बेचने की लागत) के साथ मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है।

बाजार प्रभाव उत्पन्न हो सकता है क्योंकि कीमत को अन्य निवेशकों को संपत्ति (प्रतिपक्षियों के रूप में) खरीदने या बेचने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता होती है, बल्कि इसलिए भी कि पेशेवर निवेशक खुद को इस ज्ञान से लाभ की स्थिति में ला सकते हैं कि एक बड़ा निवेशक (या निवेशकों का समूह) एक तरह से सक्रिय है। या अन्य। कुछ वित्तीय बिचौलियों की लेन-देन की लागत इतनी कम होती है कि वे मूल्य आंदोलनों से लाभ उठा सकते हैं जो कि अधिकांश निवेशकों के लिए प्रासंगिक होने के लिए बहुत कम हैं।

वित्तीय संस्थान जो अपने बाजार प्रभाव को प्रबंधित करने की मांग कर रहा है, उसे अपनी गतिविधि की गति को सीमित करने की आवश्यकता है (उदाहरण के लिए, अपनी गतिविधि को दैनिक कारोबार के एक तिहाई से कम रखना) ताकि कीमत में बाधा न आए।

बाजार प्रभाव लागत बाजार की तरलता का एक शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? उपाय है जो एक सूचकांक या सुरक्षा के एक व्यापारी द्वारा सामना की जाने वाली लागत को दर्शाता है । [१] बाजार प्रभाव लागत को बाजार के चुने हुए अंक में मापा जाता है , शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? और यह है कि एक व्यापारी को बाजार की गिरावट के कारण शुरुआती कीमत पर कितना अतिरिक्त भुगतान करना होगा , यानी वह लागत जो लेन-देन से ही संपत्ति की कीमत बदल जाती है। [२] बाजार प्रभाव लागत एक प्रकार की लेनदेन लागत है ।

उदाहरण

निफ्टी में संभावित समावेशन के योग्य होने के लिए स्टॉक के लिए , आधा करोड़ रुपये के निफ्टी ट्रेड करते समय इसकी बाजार प्रभाव लागत 0.75% से कम होनी चाहिए । पूरे निफ्टी के 0.3 करोड़ रुपये के कारोबार पर बाजार प्रभाव लागत करीब 0.05% है। इसका मतलब यह है कि अगर निफ्टी 2000 पर है, तो एक खरीद ऑर्डर 2001, यानी 2000 + (2000×0.0005) पर जाता है, और एक बिक्री ऑर्डर 1999, यानी 2000 - (2000×0.0005) हो जाता है। [३] प्रभाव लागत किसी दिए गए स्टॉक में एक विशिष्ट पूर्वनिर्धारित आदेश आकार के लिए, किसी भी समय पर लेनदेन को निष्पादित करने की लागत का प्रतिनिधित्व करती है। [४]

बहुत ही कम समय के लिए, यह घटकर सरल हो जाता है

वॉल्यूम को आमतौर पर टर्नओवर या ट्रेड किए गए शेयरों की मात्रा के रूप में मापा जाता है। इस उपाय के तहत, एक अत्यधिक तरल स्टॉक वह है जो किसी दिए गए स्तर के व्यापारिक मात्रा के लिए एक छोटे से मूल्य परिवर्तन का अनुभव करता है।

काइल के लैम्ब्डा का नाम बाजार माइक्रोस्ट्रक्चर पर पीट काइल के प्रसिद्ध पेपर से लिया गया है । [५]

माइक्रोकैप और नैनोकैप शेयरों में बहुत कम शेयर की कीमतें और अपेक्षाकृत सीमित फ्लोट और पतली दैनिक मात्रा होती है। चूंकि इस प्रकार के शेयरों में इतना सीमित फ्लोट होता है और बहुत कम कारोबार होता है, इसलिए ये स्टॉक बेहद अस्थिर होते हैं और बड़ी शेयर के प्राइस पर वॉल्यूम का क्या प्रभाव पड़ता है? कीमतों में उतार - चढ़ाव के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। [ उद्धरण वांछित ]

सट्टा घटनाओं पर त्वरित पैसा बनाने के लिए माइक्रोकैप और नैनोकैप व्यापारी अक्सर शेयरों के विशाल ब्लॉक के साथ पदों के अंदर और बाहर व्यापार करते हैं। और इसमें एक समस्या है जिसका कई माइक्रोकैप और नैनोकैप व्यापारियों का सामना करना पड़ता है-इतनी कम फ्लोट उपलब्ध, पतली मात्रा और बड़े ब्लॉक ऑर्डर के साथ, शेयरों की कमी है। कई मामलों में ऑर्डर आंशिक रूप से ही भरे जाते हैं। [ उद्धरण वांछित ]

मान लीजिए कि एक संस्थागत निवेशक स्टॉक एक्सवाईजेड के 1 मिलियन शेयरों को $ 10.00 प्रति शेयर पर बेचने के लिए एक सीमा आदेश देता है। एक पेशेवर निवेशक इस सीमा आदेश को देख सकता है, और XYZ के 1 मिलियन शेयरों को $9.99 प्रति शेयर पर बेचने के लिए अपना खुद का ऑर्डर दे सकता है।

  • स्टॉक XYZ की कीमत बढ़कर $9.99 हो गई और यह $10.00 से ऊपर जा रही है। पेशेवर निवेशक $9.99 में बेचता है और संस्थागत निवेशक से खरीद कर अपनी शॉर्ट पोजीशन को कवर करता है। उनका नुकसान $0.01 प्रति शेयर तक सीमित है।
  • स्टॉक XYZ की कीमत बढ़कर $9.99 हो जाती है और फिर वापस नीचे आ जाती है। पेशेवर निवेशक $9.99 पर बेचता है और स्टॉक में गिरावट आने पर अपनी शॉर्ट पोजीशन को कवर करता है। पेशेवर निवेशक बहुत कम जोखिम के साथ प्रति शेयर $.10 या अधिक प्राप्त कर सकता है। संस्थागत निवेशक नाखुश है, क्योंकि उसने देखा कि बाजार मूल्य 9.99 डॉलर तक बढ़ गया और उसके आदेश को पूरा किए बिना वापस आ गया।

प्रभावी रूप से संस्थागत निवेशक के बड़े ऑर्डर ने पेशेवर निवेशक को एक विकल्प दिया है। संस्थागत निवेशकों को यह पसंद नहीं है, क्योंकि या तो शेयर की कीमत 9.99 डॉलर तक बढ़ जाती है और वापस नीचे आ जाती है, उनके पास बेचने का अवसर नहीं होता है, या स्टॉक की कीमत $ 10.00 तक बढ़ जाती है और ऊपर जाती रहती है, जिसका अर्थ है कि संस्थागत निवेशक एक पर बेच सकता था। उच्चतम मूल्य।

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