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म्यूचुअल फंडस

म्यूचुअल फंडस
बाजार की तेजी में भी ये मिडकैप-स्मॉलकैप म्यूचुअल फंड्स दे रहे है निगेटिव रिटर्न्स, क्या करें निवेशक

म्यूचुअल फंड या स्टॉक कौन ज़्यादा बेहतर

स्टॉक ओर म्युचुअल फंड के बीच महत्वपूर्ण अंतर यह है, कि स्टॉक एक व्यक्तिगत निवेशक के स्वामित्व(ownership) वाले शेयरों का संग्रह है, जो निगम की संपत्ति और कमाई में उनके स्वामित्व के अनुपात को दर्शाता है। दूसरी ओर, म्यूचुअल फंड कई छोटे पैमाने के निवेशकों के धन को पूल करते है, जिसे आगे चलकर परिसंपत्तियों के पोर्टफोलियो में निवेश किया जाता है। इनमें इक्विटी, डेट या अन्य मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स शामिल हो सकते हैं।

स्टॉक

जब आप शेयर खरीदते हैं, तो आप निगम में एक हिस्से के मालिक होते हैं। आप दो तरीकों से पैसा बनाते हैं। डिविडेंड की पेशकश करने वाले स्टॉक्स से जो आपको हर 3 महीने या वर्ष में कुछ भुगतान करते हैं। या यह कर योग्य आय से जो एक वार्षिक धारा प्रदान करते है।

जब आप इन्हें बेचते हैं, तो आप स्टॉक से भी पैसा कमाते हैं। आपका लाभ विक्रय मूल्य और आपकी खरीद मूल्य का अंतर होता है। स्टॉक लगातार व्यापार करते हैं, और पूरे दिन कीमतें बदलती रहती हैं। यदि बाजार दुर्घटनाग्रस्त (Crash) हो जाता है, तो आप ट्रेडिंग सत्र के दौरान कभी भी बाहर निकल सकते हैं।

  • स्टॉक फंड की कई श्रेणियां होती हैं जो आपको छोटी या बड़ी हर प्रकार की कंपनी पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देती है,जैसे कि आप किसी विशिष्ट उद्योग या भौगोलिक स्थिति पर भी ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। आप एक ट्रेडिंग रणनीति भी चुन सकते हैं।

स्टॉक म्यूचुअल फंड की तुलना में जोखिम भरा होता है। स्टॉक फंड, बॉन्ड फंड, में बहुत सारे शेयरों को पूल करके, म्यूचुअल फंड निवेश के जोखिम को कम करते हैं।

आप अनुसंधान पर कितना समय बिताना चाहते हैं। शेयरों में निवेश के बारे में जानने के लिए,आपको प्रत्येक व्यक्तिगत कंपनी पर शोध करने की आवश्यकता होती है। आपको वित्तीय रिपोर्टों को पढ़ना आना चाहिए। वे आपको बताते हैं कि कंपनी कितनी कमाई कर रही है? और कमाई बढ़ाने के लिए वह किन रणनीतियों का उपयोग कर रही है। आपको यह भी जानना होगा कि अर्थव्यवस्था कैसे चल रही है, और इसका कंपनी और उसके उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ेगा। जब तक आप ऐसा नहीं करते, आप सफल कंपनियों के स्टॉक को लेने में सक्षम नहीं होते हैं।

जब आप स्टॉक खरीदते या बेचते हैं तो ब्रोकर आपसे शुल्क लेता हैं, लेकिन वे शुल्क आपके द्वारा प्राप्त सेवाओं के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। यदि आप अपने स्वयं के शेयरों का चयन करने के लिए सक्षम हैं, तो आपको कम भुगतान करना पड़ता हैं। यदि आप सलाह चाहते हैं तो आपको एक पूर्ण-सेवा दलाल की आवश्यकता पड़ती हैं। एक बार जब आप स्टॉक के मालिक हो जाते हैं, तो ब्रोकर आपसे तब तक शुल्क नहीं लेते, जब तक आप इसे नहीं बेचते हैं।

म्युचुअल फंड

म्यूचुअल फंड,स्टॉक फंड या बॉन्ड फंड में बहुत सारे संपत्ति रखते हैं, जिसमें आपके पास म्यूचुअल फंड का एक हिस्सा होता है| प्रत्येक म्यूचुअल फंड शेयर की कीमत उसका शुद्ध संपत्ति मूल्य (NAV) कहा जाता है, जो म्यूचुअल फंड के शेयरों की संख्या से विभाजित सभी प्रतिभूतियों का कुल मूल्य होता हैं। म्युचुअल फंड शेयर लगातार कारोबार करते हैं, लेकिन उनकी कीमतें प्रत्येक व्यावसायिक दिन के अंत में समायोजित होती हैं।

दो प्रकार के फंड हैं: प्रबंधित और एक्सचेंज-ट्रेडेड। सक्रिय(ACTIVE) रूप से प्रबंधित फंड में एक प्रबंधक होता है जो बाजार से बेहतर प्रदर्शन करना चाहता है। नतीजतन, उनकी फीस अधिक होती है। एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड एक इंडेक्स से मेल खाते हैं इसलिए उनकी लागत कम होती है।

  • बॉन्ड फंड एक निश्चित आय लौटाने वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। वे सुरक्षित हैं, लेकिन कम रिटर्न प्रदान करते हैं। वे बॉन्ड की अवधि के हिसाब से अलग-अलग होते हैं, जिसमें मनी मार्केट फंड सबसे कम अवधि और सबसे सुरक्षित होता है। वे बांड के प्रकार से भी भिन्न होते हैं, जैसे कॉर्पोरेट या नगरपालिका, उच्चतम दर जोखिम वाले आदि।
  • रिस्क-रिटर्न

म्यूचुअल फंड कम जोखिम के साथ स्टॉक निवेश का लाभ प्रदान करते हैं।

म्यूचुअल फंड को शोध के लिए उतने समय की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि प्रबंधक आपके लिए प्रबंध करता है। लेकिन आपको फिर भी म्यूचुअल फंड के पिछले प्रदर्शन पर शोध करने की आवश्यकता होती है।

  • म्यूचुअल फंड अनुसंधान की अपनी चुनौतियों का एक सेट है। प्रबंधक लगातार उन कंपनियों को बदलते हैं, जो वे अपने पोर्टफोलियो में रखते हैं। प्रॉस्पेक्टस पहले की अवधि से हो सकता है, इसलिए आप वास्तव में नहीं जानते कि आप आज क्या प्राप्त कर रहे हैं। आप पिछले प्रदर्शन को देख सकते हैं। लेकिन अगर कोई प्रबंधक पोर्टफोलियो बदलता है, तो प्रदर्शन समान नहीं होगा।

कुछ फंड कोई शुल्क नहीं लेते हैं, जिन्हें नो-लोड फंड कहा जाता है। कुछ फंडों को न्यूनतम निवेश की आवश्यकता होती है।

अधिकांश सक्रिय रूप से प्रबंधित फंड पूरे वर्ष स्टॉक खरीदते और बेचते हैं। यदि वे उन शेयरों पर पूंजीगत लाभ उठाते हैं, तो आपको उस पर कर देना पड़ सकता है। एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड कम शुल्क लेते हैं। और शेयरों की तरह, वे केवल तब चार्ज करते हैं जब आप फंड के शेयर खरीदते या बेचते हैं।

म्यूच्यूअल फंडस तुलना स्टॉक
एएमसी (एसेट मैनेजमेंट कंपनी) द्वारा संचालित फंड निवेशकों से फंड में पूलिंग और परिसंपत्तियों के एक पोर्टफोलियो में निवेश करता है। एक निगम में स्वामित्व का संकेत एक निवेशक द्वारा आयोजित शेयरों का संग्रह
एक फंड के शेयर ओनरशिपएक कंपनी के शेयर
फंड में जिसके माध्यम से निवेश का निर्देशन किया जाता है। निवेशसीधे शेयर बाजार में
निधि प्रबंधक मैनेजमेंट इन्वेस्टर
पेशेवर प्रबंधन के कारण अपेक्षाकृत कम रिस्क हाई
NAV (शुद्ध संपत्ति मान) के अनुसार मूल्य निर्धारणएक्सचेंज पर शेयर की कीमत के अनुसार

निष्कर्ष

चाहे स्टॉक हो या म्यूचुअल फंड निवेश करना पूरी तरह से व्यक्तिगत निर्णय है, निवेशक को अपने प्रत्येक फंड से जुड़े पेशेवरों और विपक्षों को समझना चाहिए। ये दोनों विकल्प सीमित निवेश वाले छोटे पैमाने के निवेशकों के लिए उपयुक्त हैं। हालांकि स्टॉक सीधे शेयर बाजार में निवेश करने का अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन भविष्य के कार्रवाई के निर्णय के लिए किसी को प्रदर्शन का नियमित ट्रैक रखने की आवश्यकता होती है। जोखिम और लाभ पूरी तरह से निवेशक द्वारा वहन किया जाता है।

फैसला लेने में बुद्धिमानी: विदेशी फंड मैनेजर्स की तुलना में घरेलू फंड मैनेजर्स अच्छा काम कर रहे हैं, शेयरों में निवेश करने में हैं माहिर

देश में वर्षों से चले आ रहे कॉर्पोरेट घोटालों ने देश के फंड मैनेजरों के शेयर चुनने की कला को अब बेहतर मुकाम पर पहुंचा दिया है। ये फंड मैनेजर्स अब लगातार विदेशी फंड मैनेजरों और रिटेल निवेशकों को पछाड़ देने की पोजीशन में आ गए हैं।

कई शेयरों में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मुद्दा रहा है

आंकड़े बताते हैं कि हाल के सालों में ऐसे की शेयर रहे हैं जिनमें कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मुद्दा सामने आया है। इन शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट आई। साथ ही कई शेयरों में अब कारोबार भी बंद हो गए हैं। विदेशी निवेशकों की तुलना में घरेलू फंड हाउस सतर्कता के साथ निवेश करते हैं। इसलिए वे इस तरह के शेयरों में डूबने से बच गए हैं।

घरेलू फंड मैनेजर ज्यादा रिसर्च करते हैं

स्थानीय फंड मैनेजर नुकसान से बचने के लिए कंपनियों, सरकार और आर्थिक माहौल के ज्ञान का इस्तेमाल करने में ज्यादा माहिर हो गए हैं। एक विश्लेषक ने बताया कि पिछले गवर्नेंस में सामने आए मुद्दों के अनुभव से पता चलता है कि घरेलू म्यूचुअल फंडस ने विदेशी साथियों की तुलना में बेहतर शेयरों में निवेश किया है।

मिड और स्मॉल कैप में ज्यादा निवेश

उन्होंने कहा विदेशियों की तुलना में मिड और स्मॉल कैप में लोकल फंड हाउस का ज्यादा एक्सपोजर है। एसएंडपी बीएसई स्मॉल कैप इंडेक्स 2019 के अंत से इस समय 92% ऊपर है। यह एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स की तुलना में करीबन तीन गुना ज्यादा भाव पर कारोबार कर रहा है। घरेलू फंड मैनजरों की पसंद भारत के खुदरा निवेशकों की भी तुलना में बेहतर रही है। खासकर महामारी के दौरान इनके प्रदर्शन में काफी सुधर आया है।

12 वर्षों में 16% की चक्रवृद्धि दर से बढ़े हैं शेयर

आंकड़े बताते हैं कि भारतीय म्यूचुअल फंड के ओनरशिप वाले स्टॉक्स पिछले 12 वर्षों में 16% की चक्रवृद्धि दर से बढ़े हैं। खराब माने जाने वाले शेयरों में कॉक्स एंड किंग्स में अगस्त 2019 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मामला सामने आया था। उस समय तक घरेलू फंड हाउस का इसमें कोई निवेश नहीं था। जबकि विदेशी निवेशकों की होल्डिंग इसमें 77% थी। रिटेल निवेशकों की होल्डिंग 10% थी।

इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस में भी मामला सामने आया था

इसी तरह इंडिया बुल्स हाउसिंग फाइनेंस में जुलाई 2019 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मामला सामने आया। उस समय भारतीय फंड हाउसों की होल्डिंग केवल 4% इसमें थी। जबकि विदेशी निवेशकों की 70% और रिटेल निवेशक की 6% होल्डिंग थी। दीवान हाउसिंग फाइनेंस का मामला जनवरी 2019 में सामने आया था। इसमें उस समय घरेलू फंड हाउसों के पास 5% शेयर थे जबकि विदेशी निवेशकों के पास 30 और रिटेल निवेशकों के पास 23% शेयर थे।

जी लर्न में 2019 में मामला सामने आया था

जी लर्न का मामला भी जनवरी 2019 में सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों का निवेश जीरो था, जबकि विदेशी निवेशकों का निवेश 57 और रिटेल का निवेश 26% था। यस बैंक में घरेलू फंड हाउसों का निवेश 14% था। विदेशी निवेशकों की होल्डिंग 53 और रिटेल की होल्डिंग 11% थी। यह नवंबर 2018 में सामने आया था।

मनपसंद बेवरेजेस में भी फंसे विदेशी निवेशक

मनपसंद बेवरेजेस का मामला मई 2018 में सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों का निवेश 21% था जबकि विदेशी निवेशकों का निवेश 39% और रिटेल का निवेश केवल 5% था। पीसी ज्वेलर्स में घरेलू फंड हाउसों का केवल 2% निवेश था जबकि विदेशी निवेशकों का 77% निवेश था। रिटेल निवेशकों के पास इसमें 6% शेयर था। वक्रांगी का शेयर आज 19% ऊपर म्यूचुअल फंडस है। हालांकि इसमें भी फरवरी 2018 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का मामला सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों के पास कोई शेयर नहीं था। विदेशी निवेशकों के पास 35% शेयर जबकि रिटेल के पास 15% शेयर था।

बैंकों के पैसे लेकर विदेश भागे म्यूचुअल फंडस म्यूचुअल फंडस गीतांजलि जेम्स के मेहुल चौकसी का मामला फरवरी 2018 में सामने आया था। इसमें घरेलू फंड हाउसों के पास एक भी शेयर नहीं था जबकि विदेशी निवेशकों के पास 8 और रिटेल निवेशकों के पास 43% हिस्सेदारी थी। ट्री हाउस एजुकेशन में भी घरेलू फंड हाउसों ने कोई पैसा नहीं लगाया। पर विदेशी निवेशकों ने 15% और रिटेल निवेशकों ने 35% का निवेश इसमें किया था।

VIDEO: रिस्क को कम कर ऐसे पाएं म्यूचुअल फंड से बेस्ट रिटर्न!

बाजार के रिस्क को कम कर म्यूचुअल फंड में ऐसे पाएं बेस्ट रिटर्न!

बाजार के रिस्क को कम कर म्यूचुअल फंड में ऐसे पाएं बेस्ट रिटर्न!

बाजार के रिस्क को कम कर म्यूचुअल फंड में ऐसे पाएं बेस्ट रिटर्न!

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 11, 2017, 07:42 IST

शेयर बाजार में तेजी का सिलसिला जारी है. इस साल अभी तक सेंसेक्स और निफ्टी ने 21 फीसदी तक का रिटर्न दिया. इन जबरदस्त रिटर्न को देखकर आम निवेशक भी शेयर बाजार की ओर आकर्षित होने लगते हैं, लेकिन बाजार के जोखिम से उनकी घबराहट बढ़ जाती है. ऐसे में निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना म्यूचुअल फंडस म्यूचुअल फंडस अच्छा विकल्प हो सकता है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि म्यूचुअल फंड का पैसा भी बाजार में ही लगता है, लेकिन इसमें ये काम आपके लिए एक जानकार करता है जिससे बाजार का जोखिम कम हो जाता है.

सबसे पहले तो आपको ये तय करना है कि आपके निवेश का मकसद क्या है, आप कितना निवेश कर सकते हैं और कितने समय के लिए इसमें बने रह सकते हैं. अगर आपको साल-दो साल के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए अलग म्यूचुअल फंड होंगे. अगर आपको 5, 7, 10 साल या इससे भी ज्यादा समय के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए दूसरे म्यूचुअल फंड होंगे.

मतलब साफ है कि सही म्यूचुअल फंड का चुनाव इसी बात पर निर्भर करता है कि आपकी निवेश अवधि क्या है. मिसाल के लिए, अगर आप छोटी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो आप डेट फंड या लिक्विड फंड चुन सकते हैं. वहीं अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो फिर आपके लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड सही रहेंगे.

बाजार में हजारों म्‍यूचुअल फंड स्‍कीम्‍स चल रही हैं. सभी दावा करती हैं कि वे सबसे अलग हैं. यही कारण है कि निवेशक बिना सोचे-समझे म्‍यूचुअल फंड का चयन कर लेता है, जो कि आगे चलकर समस्‍या बन जाता है. हम आपकी इस म्यूचुअल फंडस समस्‍या का हल यहां पर करेंगे. आप सिर्फ कुछ नियमों का पालन कर अच्‍छे म्‍यूचुअल फंड का चुनाव कर निवेश कर सकते हैं. म्‍यूचुअल फंड के चयन में चार बातों को ध्‍यान में रखना होता है- परफॉर्मेंस, रिस्‍क, मैनेजमेंट और कॉस्‍ट.

जानकारों का कहना है कि आप सेब और संतरे की तुलना नहीं कर सकते, भले ही दोनों फल हैं. ठीक इसी प्रकार दो म्‍यूचुअल फंड की तुलना करना आसान नहीं होता. आप इक्विटी फंड की तुलना डेट फंड से या इनकम फंड की ग्रोथ फंड से नहीं कर सकते. लिहाजा किसी भी म्‍यूचुअल फंड की तुलना करने से पहले उनके प्रारूप को ध्‍यान से देख लें. समान प्रारूप वाले फंड की ही तुलना की जा सकती है. अलग-अलग कंपनियों के समान प्रारूप के म्‍यूचुअल फंड की तुलना करते म्यूचुअल फंडस वक्‍त बाजार में उनकी परफॉर्मेंस देखें. जो बाजार में अच्‍छा चल रहा हो, उसी को चुने. लेकिन हां यहां भी आंख मूंद कर फैसला न करें। इसके रिस्‍क फैक्‍टर को ध्‍यान से पढ़ें.

वैसे तो इस बात की गारंटी नहीं होती कि अगर किसी फंड ने अब तक अच्छा परफॉर्म किया है तो आगे भी उसका परफॉर्मेंस वैसा ही रहेगा. लेकिन अलग-अलग फंड्स के पिछले प्रदर्शन से आप एक तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं कि किस फंड के परफॉर्मेंस में एक कंसिस्टेंसी है, और उसके प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव बाजार और इकोनॉमी से बहुत अलग तो नहीं हैं.

इससे आपको अपनी मनपसंद फंड स्कीम चुनने में मदद मिलेगी, साथ ही आपको अलग-अलग फंड से अब तक मिले औसत रिटर्न का अंदाजा भी लग जाएगा. आप अलग-अलग रेटिंग एजेंसियों की इन फंड्स को दी गई रेटिंग भी देख सकते हैं हालांकि इन रेटिंग में एकरूपता नहीं होती, फिर भी आपको एक आइडिया जरूर मिल जाता है कि किन पैरामीटर्स पर किसी फंड को आंका गया है.

लोगों के बीच यह धारणा है कि म्‍यूचुअल फंड एक ऐसा निवेश होता है, जिसमें जितना रिस्‍क लेंगे, उतना ज्‍यादा रिटर्न (धन) आपको मिलेगा. यह धारणा बिलकुल गलत है. कोई भी म्‍यूचुअल फंड इस स्ट्रैटजी पर काम नहीं करता है. बेहतर होगा यदि आप कम रिस्‍क वाले ही म्‍यूचुअल फंड लें, ताकि धीरे-धीरे अच्‍छी मात्रा में रिटर्न मिल सके. इसका आंकलन करने के लिए समान श्रेणी के दो म्‍यूचुअल फंड की तुलना करें वो भी उस समय में जब बाजार में तेजी से उछाल आया हो या गिरावट आयी हो. उससे आप आसानी से दोनों में बेहतर चुन सकते हैं। दोनों के रिटर्न की तुलना करके आप म्‍यूचुअल फंड को चुन सकते हैं.

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VIDEO: रिस्क को कम कर ऐसे पाएं म्यूचुअल फंड से बेस्ट रिटर्न!

बाजार के रिस्क को कम कर म्यूचुअल फंड में ऐसे पाएं बेस्ट रिटर्न!

बाजार के रिस्क को कम कर म्यूचुअल फंड में ऐसे पाएं बेस्ट रिटर्न!

बाजार के रिस्क को कम कर म्यूचुअल फंड में ऐसे पाएं बेस्ट रिटर्न!

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 11, 2017, 07:42 IST

शेयर बाजार में तेजी का सिलसिला जारी है. इस साल अभी तक सेंसेक्स और निफ्टी ने 21 फीसदी तक का रिटर्न दिया. इन जबरदस्त रिटर्न को देखकर आम निवेशक भी शेयर बाजार की ओर आकर्षित होने लगते हैं, लेकिन बाजार के जोखिम से उनकी घबराहट बढ़ जाती है. ऐसे में निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना अच्छा विकल्प हो सकता है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि म्यूचुअल फंड का पैसा भी बाजार में ही लगता है, लेकिन इसमें म्यूचुअल फंडस ये काम आपके लिए एक जानकार करता है जिससे बाजार का जोखिम कम हो जाता है.

सबसे पहले तो आपको ये तय करना है कि आपके निवेश का मकसद क्या है, आप कितना निवेश कर सकते हैं और कितने समय के लिए इसमें बने रह सकते हैं. अगर आपको साल-दो साल के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए अलग म्यूचुअल फंड होंगे. अगर आपको 5, 7, 10 साल या इससे भी ज्यादा समय के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए दूसरे म्यूचुअल फंड होंगे.

मतलब साफ है कि सही म्यूचुअल फंड का चुनाव इसी बात पर निर्भर करता है कि आपकी निवेश अवधि क्या है. मिसाल के लिए, अगर आप छोटी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो आप डेट फंड या लिक्विड फंड चुन सकते हैं. वहीं अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो फिर आपके लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड सही रहेंगे.

बाजार में हजारों म्‍यूचुअल फंड स्‍कीम्‍स चल रही हैं. सभी दावा करती हैं कि वे सबसे अलग हैं. यही कारण है म्यूचुअल फंडस कि निवेशक बिना सोचे-समझे म्‍यूचुअल फंड का चयन कर लेता है, जो कि आगे चलकर समस्‍या बन जाता है. हम आपकी इस समस्‍या का हल यहां पर करेंगे. आप सिर्फ कुछ नियमों का पालन कर अच्‍छे म्‍यूचुअल फंड का चुनाव कर निवेश कर सकते हैं. म्‍यूचुअल फंड के चयन में चार बातों को ध्‍यान में रखना होता है- परफॉर्मेंस, रिस्‍क, मैनेजमेंट और कॉस्‍ट.

जानकारों का कहना है कि आप सेब और संतरे की तुलना नहीं कर सकते, भले ही दोनों फल हैं. ठीक इसी प्रकार दो म्‍यूचुअल फंड की तुलना करना आसान नहीं होता. आप इक्विटी फंड की तुलना डेट फंड से या इनकम फंड की ग्रोथ फंड से नहीं कर सकते. लिहाजा किसी भी म्‍यूचुअल फंड की तुलना करने से पहले उनके प्रारूप को ध्‍यान से देख म्यूचुअल फंडस लें. समान प्रारूप वाले फंड की ही तुलना की जा सकती है. अलग-अलग कंपनियों के समान प्रारूप के म्‍यूचुअल फंड की तुलना करते वक्‍त बाजार में उनकी परफॉर्मेंस देखें. जो बाजार में अच्‍छा चल रहा हो, उसी को चुने. लेकिन हां यहां भी आंख मूंद कर फैसला न करें। इसके रिस्‍क फैक्‍टर को ध्‍यान से पढ़ें.

वैसे तो इस बात की गारंटी नहीं होती कि अगर किसी फंड ने अब तक अच्छा परफॉर्म किया है तो आगे भी उसका परफॉर्मेंस वैसा ही रहेगा. लेकिन अलग-अलग फंड्स के पिछले प्रदर्शन से आप एक तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं कि किस फंड के परफॉर्मेंस में एक कंसिस्टेंसी है, और उसके प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव बाजार और इकोनॉमी से बहुत अलग तो नहीं हैं.

इससे आपको अपनी मनपसंद फंड स्कीम चुनने में मदद मिलेगी, साथ ही आपको अलग-अलग फंड से अब तक मिले औसत रिटर्न का अंदाजा भी लग जाएगा. आप अलग-अलग रेटिंग एजेंसियों की इन फंड्स को दी गई रेटिंग भी देख सकते हैं हालांकि इन रेटिंग में एकरूपता नहीं होती, फिर भी आपको एक आइडिया जरूर मिल जाता है कि किन पैरामीटर्स पर किसी फंड को आंका गया है.

लोगों के बीच यह धारणा है कि म्‍यूचुअल फंड एक ऐसा निवेश होता है, जिसमें जितना रिस्‍क लेंगे, उतना ज्‍यादा रिटर्न (धन) आपको मिलेगा. यह धारणा बिलकुल गलत है. कोई भी म्‍यूचुअल फंड इस स्ट्रैटजी पर काम नहीं करता है. बेहतर होगा यदि आप कम रिस्‍क वाले ही म्‍यूचुअल फंड लें, ताकि धीरे-धीरे अच्‍छी मात्रा में रिटर्न मिल सके. इसका आंकलन करने के लिए समान श्रेणी के दो म्‍यूचुअल फंड की तुलना करें वो भी उस समय में जब बाजार में तेजी से उछाल आया हो या गिरावट आयी हो. उससे आप आसानी से दोनों में बेहतर चुन सकते हैं। दोनों के रिटर्न की तुलना करके आप म्‍यूचुअल फंड को चुन सकते हैं.

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बाजार की तेजी में भी ये मिडकैप-स्मॉलकैप म्यूचुअल फंड्स दे रहे है निगेटिव रिटर्न्स, क्या करें निवेशक

शेयर बाजार की तेजी में रिलायंस का मिड-स्मॉलकैप फंड, L&T मिडकैप फंड, DSP बीआर स्मॉल-मिडकैप म्यूचुअल फंड ने पिछले एक महीने में 3% का निगेटिव रिटर्न दिया है।

Ankit Tyagi
Updated on: May 27, 2017 11:05 IST

बाजार की तेजी में भी ये मिडकैप-स्मॉलकैप म्यूचुअल फंड्स दे रहे है निगेटिव रिटर्न्स, क्या करें निवेशक- India TV Hindi News

बाजार की तेजी में भी ये मिडकैप-स्मॉलकैप म्यूचुअल फंड्स दे रहे है निगेटिव रिटर्न्स, क्या करें निवेशक

नई दिल्ली। शेयर बाजार लगातार नई ऊंचाइयों को छू रहा है, लेकिन बाजार की इस तेजी में कई मिडकैप और स्मॉलकैप म्यूचुअल फंड्स ऐसे है जो निगेटिव रिटर्न दे रहे है। खासकर रिलायंस का मिड-स्मॉलकैप फंड, L&T मिडकैप फंड, DSP बीआर स्मॉल-मिडकैप और सुंदरम सिलेक्ट मिडकैप ने पिछले एक महीने में 3 फीसदी का निगेटिव रिटर्न दिया है। ऐसे में सवाल उठता है, कि अब घरेलू निवेशकों को क्या करना चाहिए। इस पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि हाल में आई गिरावट से घबराना चाहिए। GST लागू होने के बाद और अच्छे मानसून के चलते मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में फिर से तेजी लौटेगी। यह भी पढ़े: देश के अमीर भी अब लगा रहे म्युचूअल फंड में पैसा, आप भी छोटी रकम पर ऐसे पाएं मोटा मुनाफा

अब क्या करें निवेशक

वाइजइन्वेस्ट एडवाइजर के हेमंत रुस्तगी का कहना है कि मार्केट में उतार-चढ़ाव के दौरान निवेशको को घबराने की जरुरत नहीं है। इक्विटी में लंबी अवधि के लिए निवेश करें। क्योंकि लंबी अवधि के निवेश पर उतार-चढ़ाव का असर कम होता है। छोटी-मध्यम अवधि निवेश पर उतार-चढ़ाव का असर ज्यादा है जिसके चलते बाजार को नहीं बल्कि लक्ष्य को ध्यान में रखकर निवेश करने की सलाह होगी। बाजार की इस तेजी में मौजूदा निवेशकों को निवेश पोर्टफोलियो को बैलेंस रखना जरूरी है। मिड और स्मॉलकैप में ज्यादा निवेश है तो पोर्टफोलियो को बैलेंस करें। मिड और स्मॉलकैप की जगह कुछ लार्जकैप और मल्टीकैप फंड्स को जोड़ सकते है। जिन निवेशकों का छोटी अवधि का नजरिया है उन्हें फंड के प्रदर्शन के आधार पर फंड ना चुनें। निवेश से पहले फंड के साथ जुड़े जोखिम को समझना बेहद जरुरी है।

ऐसे में आप भी अपना सकते है ये स्ट्रैटजी

1.एक फंड से दूसरे फंड में शिफ्ट होना जरूरी

2.अंडरपरफॉर्मर को पहचाने का तरीका

इन्वेस्टर्स की सबसे बड़ी मुश्किल होती है, पोर्टफोलियों में अंडरपरफॉर्मर को पहचाना। इसकी पहचान के लिए एक्सपर्ट कहते हैंं कि हर क्वार्टर में इन्वेस्टर्स को रिटर्न चेक करने चाहिए। अगर किसी फंड का रिटर्न बेंचमार्क इंडेक्स के मुकाबले अच्छा रिटर्न दे रहा है और अगले दो क्वार्टर में भी इसकी परफॉर्मेंस इंडेक्स के बराबर ही रहने पर इन्वेस्टर्स को निवेशित रहना चाहिए। वहीं, अगर फंड्स अंडरपरफॉर्म करता है, तब फंड्स से बाहर निकलना सही होगा।#ModiGoverment3Saal: मोदी के कार्यकाल में निवेशक हुए मालामाल, ऐसे 5 हजार रुपए लगाकर कमाए 3 लाख

3.समय-समय पर फंड्स निकालना सही रणनीति

मान लीजिए इन निगेटिव फंड्स में आपने एक लाख रुपया लगाया होता तो पांच साल में आपकी रकम करीब 1.20 लाख रुपए हो जाती, जो कि एक औसत रिटर्न है। इस पर बजाज कैपिटल के म्यूचुअल फंडस सीईओ अनिल चोपड़ा कहते हैंं कि समय-समय पर फंड्स से रकम निकालनी चाहिए।

ऐसे चुने अच्छे फंडस

बाजार में हजारों म्‍यूचुअल फंड की स्‍कीम चल रही हैं। सभी दावा करती हैं कि वेे सबसे अलग हैं। यही कारण होता है कि निवेशक बिना सोचे समझे म्‍यूचुअल फंड का चयन कर लेता है, जोकि आगे चलकर समस्‍या बन जाता है। हम आपकी इस समस्‍या का हल यहां पर करेंगे। आप सिर्फ कुछ नियमों का पालन कर अच्‍छे म्‍यूचुअल फंड का चुनाव कर निवेश कर सकते हैं। म्‍यूचुअल फंड के चयन में चार बातों को ध्‍यान में रखना होता है- परफॉर्मेंस, रिस्‍क, मैनेजमेंट और कॉस्‍ट।#ModiGoverment3Saal: सोने से रूठी ‘लक्ष्मी’, जुलाई तक हो सकता है 1100 रुपए सस्ता

1.परफॉर्मेंस

जानकारों का कहना है कि आप सेब और संतरे की तुलना नहीं कर सकते, भले ही दोनों फल हैं। ठीक इसी प्रकार दो म्‍यूचुअल फंड की तुलना करना आसान नहीं होता। आप इक्विटी फंड की तुलना डेब्‍ट फंड से या इनकम फंड की ग्रोथ फंड से नहीं कर सकते। लिहाजा किसी भी म्‍यूचुअल फंड की तुलना करने से पहले उनके प्रारूप को ध्‍यान से देख लें। समान प्रारूप वाले फंड की ही तुलना की जा सकती है। अलग-अलग कंपनियों के समान प्रारूप के म्‍यूचुअल फंड की तुलना करते वक्‍त बाजार में उनकी परफॉर्मेंस देखें। जो बाजार में अच्‍छा चल रहा हो, उसी को चुने। लेकिन हां यहां भी आंख मूंद कर फैसला न करें। इसके रिस्‍क फैक्‍टर को ध्‍यान से पढ़ें।

2.रिस्‍क

लोगों के बीच यह धारणा है कि म्‍यूचुअल फंड एक ऐसा निवेश होता है, जिसमें जितना रिस्‍क लेंगे, उतना ज्‍यादा रिटर्न (म्यूचुअल फंडस धन) आपको मिलेगा। यह धारणा बिलकुल गलत है। कोई भी म्‍यूचुअल फंड इस स्ट्रैटजी पर काम नहीं करता है। बेहतर होगा यदि आप कम रिस्‍क वाले ही म्‍यूचुअल फंड लें, ताकि धीरे-धीरे अच्‍छी मात्रा में रिटर्न मिल सके। इसका आंकलन करने के लिए समान श्रेणी के दो म्‍यूचुअल फंड की तुलना करें वो भी उस समय में जब बाजार में तेजी से उछाल आया हो या गिरावट आयी हो। उससे आप आसानी से दोनों में बेहतर चुन सकते हैं। दोनों के रिटर्न की तुलना करके आप म्‍यूचुअल फंड को चुन सकते हैं।एक साल में बैंकिंग म्यूचुअल फंड्स में मिले 60% के बड़े रिटर्न, आपके पास भी है मौका

3.मैनेजमेंट

म्‍यूचुअल फंड बाजार जैसे- शॉर्ट टर्म, इनकम फंड, इंडेक्‍स फंड, आदि। इनमें कई ऐसे होते हैं जो मैनेजर पर निर्भर नहीं करते। सभी के परिणाम लगभग समान होते हैं। हां इक्विटी फंड में फंड मैनेजमेंट काफी महत्‍वपूर्ण होता है। आपकी जरा सी चूक आपको घाटा पहुंचा सकती है। इस फंड में तभी पैसा लगाये, जब आप इसके अच्‍छे जानकार हों। रिस्‍क लेने से पैसा डूब सकता है।ऑप्टिमा मनी मैनेजर के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज मठपाल का कहना है कि फंड मैनेजर निवेश की रणनीति तय करता है जो सेक्टर और शेयर का चुनाव करते है। निवेश से पहले फंड मैनेजर का प्रदर्शन देखना चाहिए। हर एक फंड मैनेजर का निवेश का तरीका अलग होता है। मैनेजर बदलने के बाद जल्दबाजी में फंड से निकलना ठीक नहीं है। म्यूचुअल फंड्स के इन फेवरेट शेयरों ने दिया 900% तक का रिटर्न, आपके पास भी है मौका

4.कॉस्‍ट

अंतिम तथ्‍य होता है कॉस्‍ट यानी कीमत। इस बात को हमेशा ध्‍यान रखें कि म्‍यूचुअल फंड कोई नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन या चैरिटी नहीं है। हर कंपनी अपना नफा-नुकसान सोच कर आगे बढ़ती है। म्‍यूचुअल फंड में निवेश करते वक्‍त आपको तमाम तरह के हिडेन चार्ज होते हैं। उनके बारे में पता लगाने के लिए फंड की टर्म एंड कंडीशन जरूर पढ़ें। म्‍यूचुअल फंड में निवेश करने वाला मूल धन ब्‍याज के साथ एक निश्चित समय-अंतराल पर बढ़ता या घटता है। उस समय अंतराल का और दरों का हमेशा हिसाब अपनी डायरी में रखें।

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