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बाजार अर्थव्यवस्था क्या है?

बाजार अर्थव्यवस्था क्या है?
“मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें सरकारी और निजी दोनों व्यक्ति आर्थिक नियंत्रण का प्रयोग करते हैं।”

मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है? अर्थ, विशेषताएँ, गुण और दोष (Mixed Economy Hindi)

मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy), एक अर्थव्यवस्था पूरी तरह से समाजवादी या पूरी तरह से पूंजीवादी नहीं हो सकती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था के मामले में, सार्वजनिक और निजी गतिविधियों का एक जानबूझकर मिश्रण है। इस लेख में, सबसे पहले मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है यह जानेंगे, उसके बाद उनके अर्थ, विशेषताएँ, अंत में उनके गुण, और दोष। सरकार और निजी दोनों व्यक्तियों द्वारा निर्णय लिए जाते हैं। यह एक ऐसी प्रणाली है जहां सार्वजनिक और निजी क्षेत्र सह-अस्तित्व में हैं लेकिन निजी क्षेत्र को पूरी तरह से मुक्त होने की अनुमति नहीं है। मूल्य तंत्र सरकार द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है और निजी क्षेत्र की निगरानी के लिए नियंत्रण का उपयोग किया जाता है।

मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है? अर्थ, विशेषताएँ, गुण और दोष (Mixed Economy Hindi)

भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है और अब, यहां तक ​​कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश मिश्रित अर्थव्यवस्था बन गए हैं।

मिश्रित अर्थव्यवस्था का अर्थ (Meaning):

अर्थ; एक अर्थव्यवस्था को विभिन्न आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बाजार अर्थव्यवस्थाओं के तत्वों को मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं के तत्वों, राज्य के हस्तक्षेप से मुक्त बाजार या सार्वजनिक उद्यम के साथ निजी उद्यम के रूप में मिश्रित करती है।

Mixed Economy की कोई एक परिभाषा नहीं है, बल्कि दो प्रमुख परिभाषाएँ हैं। यह पूंजीवाद और समाजवाद का सुनहरा मिश्रण है। इस प्रणाली के तहत, सामाजिक कल्याण के लिए आर्थिक गतिविधियों और सरकारी हस्तक्षेप की स्वतंत्रता है। इसलिए यह दोनों अर्थव्यवस्थाओं का मिश्रण है। मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवधारणा हालिया मूल की है।

Prof. Samuelson के अनुसार,

“मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र सहयोग करते हैं।”

Murad के अनुसार,

“मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें सरकारी और निजी दोनों व्यक्ति आर्थिक नियंत्रण का प्रयोग करते हैं।”

तेजी और मंदी शेयर बाजार का चरित्र है, क्या ये फिर गिरेगा

शेयर बाजार का इतिहास बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है.

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बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज | फाइल फोटो

पिछले दिनों भारतीय शेयर बाजार ने चमक बिखेर दी और सेंसेक्स 60,000 के पार तो हो गया लेकिन उसने यह सवाल भी खड़ा किया कि क्या इन बुलंदियों पर जाने के बाद यह अब धराशायी हो जाएगा? उसके इस रिकॉर्ड ऊंचाई पर जाने के बाद तरह-तरह की आशंकाएं खड़ी हो गईं हैं. हालांकि पिछले हफ्ते इसमें पांच हफ्तों के बाद गिरावट आई और यह 1282 अंक गिरकर 58,766 पर चला गया. निफ्टी में भी 321 अंकों की गिरावट आई और 17,532 अंकों पर था.

इससे पहले कि यह बहस तेज हो कि क्या यह गिरावट स्थायी है, सोमवार को सेंसेक्स में 625 अंकों की बढ़ोत्तरी हो गई.
लेकिन विशेषज्ञ यहां मानते हैं कि शेयर बाज़ार के इन ऊंचाइयों पर जाने की कोई ठोस वजह नहीं है. यह या तो अति उत्साह में की गई खरीदारी है या सटोरियों का खेल. अगर हम ध्यान से देखें तो इस समय निवेश के सारे रास्ते बंद हो गये हैं. रियल एस्टेट मंदी के भीषण दौर से गुजर रहा है, सोना नई ऊंचाइयों पर जाने के बाद नीचे तो आया है लेकिन इतना भी नहीं कि खरीदारी हो सके, सरकारी बांडों और ऋण बाजारों में भी खास रिटर्न नहीं है. फिक्स्ड डिपॉजिट में ब्याज दरें इतनी कम हो गईं हैं कि यह निरर्थक हो गया है. सच तो है कि महंगाई की दर इतनी ज्यादा हो गई है कि उसके कारण डिपॉजिट पर मिलने बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? वाला ब्याज निगेटिव में चला गया है. इसका मतलब हुआ कि अब फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे डालने का कोई फायदा नहीं है. तो फिर सेविंग के जरिये कमाने का क्या जरिया बचता है? शेयर बाजार और उस पर आधारित म्यूचुअल फंड. यही कारण है कि निवेशक इनमें बड़े पैमाने पर धन लगा रहे हैं. इन दोनों ने निवेशकों को निराश नहीं किया और अच्छा रिटर्न भी दिया है. सिर्फ इस साल ही सेंसेक्स 13,000 अंकों से भी ज्यादा बढ़ गया है. उधर म्यूचुअल फंडों में कई तो ऐसे हैं जिन्होंने 50 प्रतिशत से भी ज्यादा रिटर्न दे दिया है.

उभरती अर्थव्यवस्था, भारत और एफडीआई

लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या सिर्फ इस कारण से ही शेयर बाजार इतना ऊपर चला गया? इसके कई उत्तर हैं. सबसे बड़ा फैक्टर है, सारी दुनिया में ब्याज दरों का गिरना. इस समय अमेरिका और पश्चिमी देशों और जापान वगैरह में ब्याज दरें शून्य पर हैं. भारत में भी यह अपने न्यूनतम पर हैं. ऐसे में निवेशक बैंकों से पैसा लेकर या वहां जमा न कर भारतीय शेयर बाजारों में लगा रहे हैं. विदेशी वित्तीय संस्थान और एनआरआई ने भी निवेश किया. इस बात का अंदाजा इसी से मिलता है कि 2021-22 (जून) में यहां के वित्तीय बाजारों में उन्होंने 4433 करोड़ रुपए का निवेश किया है. यह राशि बाजार में आग लगाने का काम कर रही है.

दरअसल, इस समय उभरती बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश के लिए उपयुक्त स्थानों में भारत ऊंचे स्थान पर है. इस समय यहां निवेश करना विदेशी निवेशकों के लिए फायदे का सौदा है. यहां की तमाम परिस्थितियां उनके अनुकूल हैं. ऐसे में निवेशक आश्वस्त भाव से निवेश कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि लगातार तीसरे साल भी विदेशी निवेशकों ने भारत में कुल कुल 9 अरब डॉलर निवेश कर दिया है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ विदेशी निवेशकों ने ही यहां पैसा लगाया है. देसी निवेशक भी शेयर बाजार की बहती गंगा में हाथ धोने के लिए बड़ी तादात में उतर गये हैं. आज म्यूचुअल फंडों और सिप के माध्यम से निवेशक बड़े पैमाने पर इसमें पैसे लगा रहे हैं और उनमें लगभग 70 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेयर बाजार में कभी पैसा नहीं लगाया था.

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उधर, डीमैट अकाउंट खोलना आसान बनाकर सेबी ने भी लोगों को इस ओर आकर्षित किया है. इस साल ही नहीं पिछले साल भी लाखों नए डीमैट अकाउंट खुले हैं. सेबी के ही आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अप्रैल से इस साल जनवरी तक एक करोड़ से भी ज्यादा डीमैट अकाउंट खुले हैं. इस समय देश में सात करोड़ से भी ज्यादा डीमैट अकांउट खोले जा चुके हैं. नई टेक्नोलॉजी और ऐप ने पैसे लगाना एकदम आसान कर दिया है. अब नए निवेशक लगातार पैसे लगा रहे हैं सीधे भी और म्यूचुअल फंडों के जरिये भी.

म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री अपने स्लोगन ‘म्यूचुअल फंड सही है’ से लोगों को इस ओर आकर्षित करने में सफल हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि शेयर बाजारों में बड़े पैमाने पर निवेश इनके जरिये ही हो रहा है. नए लोग जो बाजार के उतार-चढाव से घबराते हैं, शेयर बाजारों में ही निवेश कर रहे हैं. एक तरह से तो यह अच्छी बात है क्योंकि बाजार के धराशायी होने पर उन्हें जोर का झटका धीरे से लगेगा. इसके अलवा सेबी और सरकार ने म्यूचुअल फंडों पर भी लगाम कस दी है और वे अब उतनी मनमानी नहीं कर सकते हैं.

बाजार की इस जबर्दस्त तेजी ने बहुत सी धारणाओं को झुठलाया है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था का आइना होता है. आज स्थिति दूसरी है. जीडीपी में जितनी तेजी आई है उससे कहीं ज्यादा शेयर बाजारों में तेजी आई है. दरअसल, इन दोनों के बीच एक स्वस्थ संतुलन होना चाहिए. कंपनियों के तिमाही या सालाना परिणाम कहीं से देश की अर्थव्यवस्था की हालत को बयान नहीं कर रहे हैं, अतिशयोक्ति से काम ले रहे हैं.

दूसरी बात है जो और भी खतरनाक है, वह है कि चूंकि शेयर बाजार का सीधा संबंध कंपनियों से हैं, उनके परिणाम चाहे वे सालाना हों या तिमाही इस मानदंड पर खरे नहीं उतर रहे हैं. इन दिनों कंपनियों के परिणाम बेशक अब अच्छे आ रहे हैं लेकिन उनके शेयर बहुत गर्म हो गए हैं. इनमें से कई तो अपने पीई रेशियो से कई गुना ज्यादा हो गए हैं. इस समय मार्केट कैप बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? और जीडीपी का अनुपात 130 प्रतिशत को पार कर गया है. बाजार इकोनॉमी से कहीं आगे निकल गया है और यह चिंता का विषय है क्योंकि यह बता रहा है कि सेंसेक्स और निफ्टी अब ठोस जमीन पर नहीं खड़े हैं. ये कंपनियों के तीन साल आगे होने वाली कमाई को मानकर अभी से चल रहे हैं. ऊंचे वैल्यूएशन के अपने खतरे हैं और ऐसे में बाजार के धारशायी होने की संभावना बढ़ जाती है. अब हमारा शेयर बाजार उस ओर इशारा कर रहा है.

राजनीतिक अर्थव्यवस्था और अर्थव्यवस्था

मतलब साफ है कि तेजी से भागते बाजार को कभी भी बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? ब्रेक लग सकता है और यह कभी भी औंधे मुंह गिर सकता है. कुछ एनालिस्ट मानते हैं कि अब बाजार के 10 से 25 प्रतिशत तक गिरने की संभावना बनती जा रही है क्योंकि यह ठोस जमीन पर खड़ा नहीं है.

एक बात और जो याद रखनी चाहिए कि शेयर बाजार अवधारणाओं या सेंटिमेंट पर चलते हैं. ये काफी आगे तक के फैक्टर को डिस्काउंट कर लेते हैं. इस बार भी ऐसा हो रहा है. देश में राजनीतिक स्थिरता है और अर्थव्यवस्था ‘वी’ शेप में ऊपर की ओर जा रही है. इसलिये भी निवेशक यहां पैसे लगा रहे हैं.

एक बात जो देखने की है और वह यह कि इस समय बीएसई या निफ्टी में बड़े पैमाने पर शेयर ऐसे हैं जो बढ़े ही नहीं, बढ़े तो नाम भर के ही जबकि उनकी कंपनियां काम अच्छा ही कर रही हैं. दूसरी ओर कुछ शेयर ऐसे हैं जो अपने अधिकतम पर हैं या फिर दोगुनी कीमत के हो गये हैं. यानी यह एक बड़ा विरोधाभास है.

बाजार अगर धराशायी होता है तो निवेशकों को भारी चोट पहुंचेगी और खलबली मच जाएगी, लेकिन समझदार निवेशकों के लिए एक सलाह है कि उस समय बाजार का दामन छोड़कर आप घाटा ही उठाएंगे. शेयर बाजार का इतिहास गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है. तब शायद थोड़ा यानी एकाध साल तक प्रतीक्षा करनी हो सकती हो सकती है. तेजी और उसके बाद मंदी, यह शेयर बाजार की नियति है.

One of the features of a free market economy is / एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की विशेषताओं में से एक है

(1) active state intervention / सक्रिय राज्य हस्तक्षेप
(2) public ownership of factors of production / उत्पादन के कारकों का सार्वजनिक स्वामित्व
(3) rationing and price control / राशनिंग और मूल्य नियंत्रण
(4) consumer’s sovereignty / उपभोक्ता की संप्रभुता

(SSC CGL Tier-I Exam, 09.08.2015)

Answer / उत्तर : –

(4) consumer’s sovereignty / उपभोक्ता की संप्रभुता

Explanation / व्याख्यात्मक विवरण :-

Consumer Sovereignty is one of the features of a free market economy. It refers to the assertion consumer preferences determine the production of goods and services. In a free market system, market performance is in fact responsive to the specific wants of the consumers within the system. / उपभोक्ता संप्रभुता एक मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की विशेषताओं में से एक है। यह अभिकथन को संदर्भित करता है उपभोक्ता वरीयताएँ वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को निर्धारित करती हैं। एक मुक्त बाजार प्रणाली में, बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? बाजार का प्रदर्शन वास्तव में प्रणाली के भीतर उपभोक्ताओं की विशिष्ट आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होता है।

Pakistan Economy: पाकिस्तान डिफॉल्टर होने के करीब, लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था, अब क्या है सरकार के सामने रास्ता?

Economic Crisis In Pakistan: पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार के बार-बार आश्वासन के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय बाजार इन आश्वासनों पर भरोसा करने को तैयार नहीं है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए संघर्ष कर रही है.

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Pakistan Economy: पाकिस्तान डिफॉल्टर होने के करीब, लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था, अब क्या है सरकार के सामने रास्ता?

Pakistan Economic Crisis: राजनीतिक उथल-पुथल और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत को लेकर अनिश्चितता के बीच पाकिस्तान का डिफ़ॉल्ट जोखिम तेजी से बढ़ गया है. डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, देश के डिफॉल्ट रिस्क को पांच साल के क्रेडिट-डिफॉल्ट स्वैप (सीडीएस) द्वारा मापा गया. सीडीएस एक तरह का बीमा अनुबंध होता है जो एक निवेशक को डिफॉल्ट से बचाता है.

डॉन ने अनुसंधान फर्म आरिफ हबीब लिमिटेड द्वारा परिचालित आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि क्रेडिट-डिफॉल्ट स्वैप बुधवार को 56.2 प्रतिशत से 75.5 प्रतिशत तक पहुंच गया. सीडीएस में वृद्धि एक 'गंभीर स्थिति' को दर्शाती है, जिससे सरकार के लिए बॉन्ड या वाणिज्यिक उधारी के माध्यम से बाजारों से विदेशी मुद्रा जुटाना बेहद मुश्किल हो जाता है.

पाकिस्तान को अपने विदेशी कर्ज दायित्वों (Foreign Obligations) को पूरा करने के लिए इस वित्तीय वर्ष में 32 बिलियन USD से 34 बिलियन USD तक की आवश्यकता है. वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? पाकिस्तान को अभी भी शेष वित्तीय वर्ष में लगभग 23 बिलियन USD की आवश्यकता है. डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान आईएमएफ प्रोग्राम में बना हुआ है, जो इसे विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर बैंक से प्रवाह प्राप्त करने की अनुमति देता है.

पहली तिमाही में घाटा बढ़ने से स्थिति और बिगड़ी
हालांकि पाकिस्तान ने आईएमएफ से कहा था कि वह चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को ₹1500 बिलियन तक कम कर देगा. लेकिन, पहली तिमाही में घाटा बढ़ने से स्थिति और बिगड़ती जा रही है. संयुक्त राज्य अमेरिका में आधिकारिक सूत्रों ने पिछले सप्ताह कहा था कि पाकिस्तान और आईएमएफ के बीच वार्ता को पुनर्निर्धारित किया गया है.

डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, आईएमएफ और पाकिस्तान सरकार के बीच नवंबर की शुरुआत में शुरू होने वाली वार्ता को नवंबर के तीसरे सप्ताह तक के लिए टाल दिया गया है. पाकिस्तान द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों पर बिक्री कर को समायोजित करने की अपनी प्रतिबद्धता पर काम करने और इस साल बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? की शुरुआत में पुनर्जीवित एक ऋण समझौते के तहत आवश्यक अन्य उपाय करने के बाद वार्ता फिर से शुरू होगी.

डॉन से बात करने वाले आधिकारिक सूत्रों ने खुलासा किया कि अक्टूबर में जारी पाकिस्तान में बाढ़ के नुकसान पर विश्व बैंक की रिपोर्ट के बाद आईएमएफ और पाकिस्तान के बीच बातचीत को पुनर्निर्धारित किया गया था. पाकिस्तान 5 दिसंबर को पांच साल के सुकुक या इस्लामिक बॉन्ड की मैच्योरिटी के खिलाफ 1 बिलियन अमरीकी डालर का भुगतान करने वाला है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार को नहीं है भरोसा
सुकुक भुगतान के लिए पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार के बार-बार आश्वासन के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय बाजार इन आश्वासनों पर भरोसा करने को तैयार नहीं है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था बाजारों, दाताओं, वाणिज्यिक बैंकों और मित्र राष्ट्रों से अधिक उधार लेकर डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए संघर्ष कर रही है.

सरकार क्या कर सकती है?
वित्तीय क्षेत्र ने कहा है कि फंड तरलता बढ़ाने और राजकोषीय घाटे के विस्तार से बचने के लिए नए करों जरूरत है. सरकार को कम से कम ₹800 बिलियन की आवश्यकता है, जो रिपोर्ट के अनुसार नए करों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. हालांकि सरकार के लिए नए कर आर्थिक और राजनीतिक उथल फुथल के बीच लगाने मुश्किल हो सकते हैं.

(ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर)

भारत बना दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, क्या होगा इसका आम लोगों को फायदा ?

टॉप 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने का सबसे बड़ा असर ये रहेगा कि विदेशी निवेशकों का भारत पर भरोसा और बढ़ जाएगा. और निवेश बढ़ने से लोगों के लिए नए मौके और रोजगार के अवसर मिलेंगे

भारत बना दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, क्या होगा इसका आम लोगों को फायदा ?

TV9 Bharatvarsh | Edited By: दया कृष्ण

Updated on: Sep 03, 2022 | 1:22 PM

शनिवार की सुबह से ही सोशल मीडिया पर बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? भारतीय अर्थव्यवस्था छाई हुई है. दरअसल भारत ने दुनिया की टॉप 5 इकोनॉमी में एक बार फिर एंट्री ले ली है. भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़कर तिमाही आधार पर ये स्थान हासिल कर लिया है. वहीं भारत की ग्रोथ को देखते हुए ये तय है कि सालाना आधार पर भी भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. अनुमान है कि इस बार भारत की टॉप 5 में एंट्री स्थाई है और आगे इसमें सुधार ही दिखेगा. इस खबर के साथ ही सोशल मीडिया पर इस रैंकिंग के आम लोगों पर असर को लेकर पक्ष विपक्ष में बात चल रही है. वैसे ये सवाल उठना भी सही है कि इस रैंकिंग में सुधार से आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा तो आइये हम समझते हैं कि रैंकिंग बढ़ने का क्या असर होता है.

पहले समझें क्यों भारत से पिछड़ा ब्रिटेन

आंकड़ों से अलग अगर हम वजहों पर गौर करें तो पांचवी पोजीशन पर आने की वजह यह है कि आर्थिक संकटों के बीच बाजार अर्थव्यवस्था क्या है? भारत ने चुनौतियों का ज्यादा बेहतर तरीके से सामना किया है. वहीं ब्रिटेन को उसकी सुस्ती का नुकसान हुआ है. ये आंकड़े डॉलर में दिए गये हैं, और गौर करने की बात ये है कि डॉलर के मुकाबले भारत के रुपये का प्रदर्शन यूके के पाउंड से काफी बेहतर रहा है. जिस तिमाही की गणना की गई है उस दौरान पाउंड रुपये के मुकाबले भी काफी टूटा है. यानि भारत की करंसी पाउंड के मुकाबले दमदार साबित हुई है. वहीं दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज कर रही है, जहां यूके की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ 1 प्रतिशत से भी नीचे है. इन वजहों से भारत ने तेज ग्रोथ बनाए रखी लेकिन यूके भारत की तरह प्रदर्शन नहीं कर सका और भारत से पिछड़ गया.

रैंकिग का क्या होगा आम लोगों पर असर

भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल महंगाई, रुपये में गिरावट, महंगे कच्चे तेल, कमोडिटी कीमतों से जूझ रही है. और इन चुनौतियां का सामना सिर्फ भारत ही नहीं पूरा विश्व कर रहा है. यकीनन रैकिंग बढ़ने का तुरंत ही कोई असर नहीं दिखेगा. क्योंकि महंगाई जैसी वजहें सारी अर्थव्यवस्थाओं पर हावी हैं और इसी वजह से अर्थव्यवस्थाओं का साइज घट बढ़ रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है कि भारत के लिए ये उपलब्धि सिर्फ नाम की है. मध्यम से लंबी अवधि के बीच टॉप 5 में शामिल होना अर्थव्यवस्था के लिए न केवल सकारात्मक है साथ ही इसका प्रभाव आम लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा.

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क्या होगा रैंकिंग में सुधार का असर

टॉप 5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होना पहला तो हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है और इससे भारतीयों की दुनिया भर में स्थिति और मजबूत होगी भले ही निर्यात के मौके हों या फिर पासपोर्ट की ताकत. क्योंकि मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ सभी संबंध मजबूत रखना चाहते हैं. वहीं इस का सबसे बड़ा असर ये रहेगा कि विदेशी निवेशकों का भारत पर भरोसा और बढ़ जाएगा. दरअसल निवेशकों के सामने ये संकेत गया है कि मुश्किल वक्त में भी भारत ने ग्रोथ बनाए रखी है ऐसे में विश्व भर में रिकवरी के साथ भारत की ग्रोथ और मजबूत होगी. जो कि निवेश के हिसाब से काफी आकर्षक बात है. वहीं जब सरकार मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव जैसी योजनाओं को आक्रामक तरीके से निवेशकों के सामने रख रही है, टॉप 5 में पहुंचाना भारतीय सरकार के उस दावे को और मजबूती देगा कि भारत निवेशकों के सबसे आकर्षक बाजार है जहां वो तेजी के साथ विकास कर सकते हैं. फिलहाल बड़ी संख्या में निवेशक चीन का विकल्प तलाश रहे हैं. नई रैंकिंग ऐसे निवेशकों के लिए भी एक बड़ा संकेत बनेगी. अगर विदेशी निवेशक बड़ी संख्या में भारत में निवेश बढ़ाते हैं और एफडीआई बढ़ता है तो इससे न केवल देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे साथ ही लोगों की आय और अपना काम शुरू करने वालों के लिए मौके भी बढ़ेंगे. यानि साफ है कि भारत का टॉप 5 में शामिल होना आम भारतीयों के लिए नए अवसर ला सकता है.

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