मुख्य प्रकार के सिक्के

मुख्य प्रकार के सिक्के
यूनियन बैंक गोल्ड काइन : -
- यूनियन बैंक 999.9 शुद्धता के 24 कैरट के सिक्के प्रस्तुत करता है. सिक्के निवेश करने के लिये या उपहार देने के लिये खरीदे जा सकते हैं.
- प्रामणिकता और शुद्धता के लिये ये सिक्के टैंपर प्रूफ पैकिंग में पैक हैं.
- इन सिक्कों का प्रतियोगी मूल्य स्वर्ण के दैनिक मूल्य के आधार पर तय किया जाता है. बैंक का रेट कार्ड वेबसाइट पर दर्शित है.
- बैंक न्यूनतम 10 सिक्कों की खरीद पर छूट देता है. इसकी जानकारी के लिये स्वर्ण सिक्के की बिक्री के लिये नामित शाखाओं से संपर्क करें.
स्वर्ण में निवेश
- स्वर्ण का मूल्य बना रहता है औ यह मुद्रा स्फीति और आर्थरक मंदी में कवच का काम करता है.
आवेदन पत्र एवं दस्तावेज
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्र 1. क्या यूनियन बैंक सोने के सिक्के का काम कता है ?
उ. जी हां, यूनियन बैं के पास सोने के सिक्के बेचने के लिये भारतीय रिजर्व बैंक की अनुमति है.
प्र 2. मैं सोने का सिक्का क्यों खरीदूं ?
उ..सोने में निवेश करना मुदा स्फीति से बचाव का के उपाय है. अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव में सोने की क्रय शक्ति बनी रहती है..सोने से आपके पोर्ट फोलियो की विविधता और समग्र स्थरता बनी रहती है.
प्र 3. मुझे यूनियन बैंक से सोने के सिक्के क्यों खरीदने चाहिये ?
उ. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 24 कैरट के सोने के सिक्कों का विकय करता है. किसी प्रकार की क्षति से बचाव के लिये यह टैंपर प्रूफ पैकिंग में होते हैं. इसके अलावा हमारे रेट प्रतियोगी होते हैं.
प्र 4. सोने के सिक्के किस वजन में आते हैं ?
Ans. सोने के सिक्के 2 ग्राम, 5 ग्राम 8 गराम व 10 गराम के वजन में आते हैं.
प्र 5. बेचे जाने वाले सिक्के किस प में आते हैं ?
उ. सोने के गोल सिक्के (2, 5 & 8 gms) /आयताकार सिक्के (10 gms) में आते हैं जिनमें पीछे यूनियन बैंक का प्रतीक चिन्ह अंकित होता है.
प्र 6. मैं सोने के सिक्के कहां से खीद सकता हूं ?
उ. सोने के सिक्के बैंक की बिक्री नामित शाखाओं में की जाती है.
प्र 7. मेरा यूनियन बैंक में खाता न होने पर भी क्या मैं सोने के सिक्के खीद सकता हूं ?
उ. जी हां. यूनियन बैंक के ग्राहक व अन्य सभी हमारी शाखाओं से सिक्के खरीद सकते हैं. यूनियन बैंक के ग्राहक सोने के सिक्के के मूल्य का भुगतान अपने खाते से चेक जारी करके या नामे अनुदेश देकर कर सकते हैं. गौर ग्राहक सिक्के का मूल्य ` 50,000/-. से कम होने पर नकद जमा का सकते हैं ` 50,000/-. अधिक होने पर भुगतान चेक/पीओ/डीडी के जरिये करना होगा जिसका मूल्य प्राप्त हो जाने पर सिक्का दिया जाता है. चेक का भुगतान प्राप्त होने की तारीख को प्रचलित दर पर सिक्के का मूल्य लिया जायगा. ` 50,000/-और अधिक की सभी नकद खरीद के लिये विधिवत हस्ताक्षरित पहचान का साक्ष्य/पैन कार्ड देना होगा.
प्र 8. सोने के सिक्के का क्या मूल्य होगा ?
उ.. सिक्के का मूल्य स्वर्ण के बाजार मूल्य पर निर्भर है. सोने के सिक्के का मूल्य प्रतियोगी रखा जाता है. स्वर्ण का मूल्य प्रतिदिन तय होता है और हमारी साइट पर उपलब्ध होता है.
प्र 9. क्या यूनियन बैंक सोने के सिक्के वापिस खरीदेगा ?
उ. जी नहीं. यूनियन बैंक आ इंडिया सोने के सिक्के वापिस नहीं खरीदता
मध्य प्रदेश में प्राप्त प्राचीन कालीन सिक्के (मुद्रा)
सोने, चांदी, तांबा और मिश्र धातु से निर्मित विभिन्न आकार-प्रकार, मूल्य की तथा मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के प्राचीन इतिहास के विभिन्न कालों से संबंधित मुद्राएँ (मुख्य प्रकार के सिक्के Coins and Currencies), मध्य प्रदेश के इतिहास (History of Madhya Pradesh) और संस्कृति के पुनर्निमाण के दूसरे मुख्य पुरातात्विक स्रोत हैं। कालक्रम के अनुसार उनकी एक झलक निम्नलिखित है : –
आहत मुद्राएँ ( Coins of Aahat )
चांदी और तांबे की आहत मुद्राओं की साम्राज्यिक और गैर साम्राज्यिक श्रृंखला बड़ी मात्रा में पूरे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में पाई गई है।
स्थल जहां से ये पाए गये : – आबरा, इन्दौर, उज्जैन, एरण, करचूल्हा, कसरावद, नागदा, कायथा, केसूर, धापेवारा, बड़वानी, बार (या बायार), बेसनगर, विदिशा, महेश्वर, मामदार, सारंगपुर, त्रिपुरी, तुमैन, साँची, रूनीजा, ककरहटा नांदनेर, नांदौर। ये मुद्राएँ विभिन्न आकार और मूल्य की हैं और इन्हें मौर्यपूर्व, मौर्यकालीन और मौर्योत्तर काल का माना गया है।
अनुत्कीर्ण, ढली तथा ढप्पांकित मुद्राएँ ( Coins of Anutkirn, Dhali and Dhappankit)
नर्मदा और बेतवा घाटी में हाल ही में हुई खोजों से त्रिपुरी, उज्जैन, विदिशा, एरण, माहिष्मति, भगीला और कुररा के नगर राज्यों की अंकित मुद्राएँ मिली हैं। त्रिपुरी, उज्जैन, विदिशा, एरण, महेश्वर, नान्दौर, नान्दनेर, जमुनिया, खिड़िया और पवाया से अनेक मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। इनमें से कुछ इन्दौर, रायपुर, जबलपुर, भोपाल, होशंगाबाद, ग्वालियर, नागपुर और विदिशा के संग्रहालय और व्यक्तिगत संग्रहों में संग्रहीत हैं।
- बेतवा और नर्मदा घाटी में हाल ही में की गई खोज में 200-100 ई. पू. काल के पूर्वी मालवा क्षेत्र के स्थानीय शासकों की उत्कीर्ण मुद्राएँ प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुई हैं। विभिन्न आकार वाली ये मुद्राएँ आहत शैली की हैं। ये मित्र और मित्र-इतर शासक द्वारा जारी की गई थीं।
इन्डो-ग्रीक मुद्राएँ ( Coins of Indo – Greek)
इन्दौर के अडवानी संग्रह में विभिन्न स्थानों से संग्रहित की हुई चांदी और तांबे की कुछ मुद्राएँ हैं। मिनेन्डर की एक मुद्रा बालाघाट से भी मिली है। संबंधित शासक हैं: प्लेटो, हेलियोक्लीज, स्ट्रेटो, एपान्डेर, आर्केबियस, फेलोक्जेनस, निकियस, एपोलोफेनेस, अमीनतस, हर्मियस, यूकेटाइडस, और जिलौस। इन मुद्राओं से मध्य प्रदेश के प्रारंभिक इतिहास की पुनर्रचना में कितना सहयोग मिला है, यह कहना कठिन है।
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सातवाहनों की मुद्राएँ (Coins of Satvahans)
दक्षिण में सातवाहनों द्वारा मध्य प्रदेश पर शासन करने की बात, इस राज्य के क्षेत्राधिकार वाले क्षेत्रों से प्राप्त इनकी ढेर सारी मुद्राओं से पुष्ट होती है। उज्जैन, देवास, विदिशा, जमुनिया, तेवर, भेड़ाघाट और त्रिपुरी से प्राप्त सातकर्णी प्रथम की मुद्राओं से यह स्पष्ट होता है कि सातवाहनों का साम्राज्य मालवा और डाहल तक फैला हुआ था।
शक-क्षत्रप की मुद्राएँ (Coins of Shak-Kshatrap)
उत्तर और पश्चिमी भारत के एक विशाल क्षेत्र में शक-क्षत्रप, इन्डो-ग्रीक शासकों के उत्तराधिकारी बने इन्दौर में स्वर्गीय श्री अडवानी के संग्रह में प्रारंभिक शक शासक, जैसे मौस, एज़ेस, एज़ीलीसेस और एज़ेस द्वितीय की मुद्राएँ हैं। छिन्दवाड़ा जिले के सोनपुर से मिले पश्चिमी क्षत्रप के 670 सिक्कों का एक भंडार महाकोसल में उनकी गतिविधियों पर प्रकाश डालता है।
कुषाण मुद्राएँ (Coins of Kushan)
मध्य प्रदेश के कुछ भाग पर कुषाणों ने भी अधिकार कर लिया था। विदिशा और शहडोल में इस वंश के प्रारंभिक शासक विम कडफीसस की दो मुद्राएँ मिली हैं। लेकिन इन दो सिक्कों के आधार पर उसके राज्य के मध्य प्रदेश पर फैलाव के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता है।
नागों की मुद्राएँ (Coins of Nagas)
दूसरी शताब्दी के लगभग नागों की एक शाखा विदिशा पर शासन कर रही थी। विदिशा से इस वंश के संस्थापक वृषनाग की एक मुद्रा मिली है।
बोधियों की मुद्राएँ (Coins of Bodhi)
दूसरी-तीसरी शताब्दी में बोधि जबलपुर जिले के त्रिपुरी में शासन कर रहे थे। इस वंश के श्रीबोधि, वसुबोधि, चन्द्रबोधि और शिवबोधि जैसे शासकों की मुद्राएँ और मुहरें त्रिपुरी की खुदाई में निकली हैं। जबलपुर में H. C. चौबे एवं K. P. पाण्डेय के संग्रह में इस वंश के आठ शासकों की मुद्राएँ हैं। ये हैं श्रीबोधि, चन्द्रबोधि, शिवबोधि, वसुबोधि, वीरबोधि, वीरबोधिदत्त, सिरीवसक और सिरीशिव ।
मघ मुद्राएँ (Coins of Magh)
बघेलखंड क्षेत्र पर शासन कर रहे मघ वंश के शासक बोधियों के समकालीन थे। भद्रमघ और शिवमघ इस वंश के महत्पूर्ण शासक थे। उनके सिक्के और मुहरें कौशाम्बी, भीटा, बांधवगढ़, और त्रिपुरी से मिले हैं।
इन्डो-ससैनियन मुद्राएँ (Coins of Indo – Sassanian)
मध्य प्रदेश में समय-समय पर चांदी और सोने की इन्डो-ससैनियन मुद्राओं के समूह और अकेले सिक्के प्राप्त हुये हैं।
स्थल :- आवरा, इन्दौर, उज्जैन, एरण, खेरूआ, गुइदा, घौदा, चंदेरी, छिन्दवाड़ा, देवतपुर, पाटन, बरदिया, बालाघाट, भाटपचलाना, महाराजपुर, मान्धाता, मुरवाड़ा, मुल्ताई, मोहनियाखुर्द, बहोरीबन्द, सिवनी, हरसूद, होशंगाबाद और पिपल्यानगर।
चंदेलों की मुद्राएँ (Coins of Chandel)
कुछ चंदेल शासकों ने मुद्राएँ जारी की थीं। कीर्तिवर्मा मुद्रा जारी करने वाला पहला शासक था और उसकी मुद्राएँ सोने की थीं। इनमें से एक मुद्रा कलकत्ता के इंडियन म्यूजियम में संग्रहित है और एक अन्य कनिंघम के संग्रह में थी।
परमारों की मुद्राएँ (Coins of Parmar)
मालवा के परमार वंशों के कुछ शासकों ने भी मुद्राएँ जारी की थीं। उदयादित्य की स्वर्ण मुद्राएँ उज्जैन और पिपलियानगर से मिली हैं। नागपुर के सेन्ट्रल म्यूजियम और आसाम संग्रहालय में जंगदेव की स्वर्ण मुद्राएँ संग्रहण में हैं।
माहिष्मति और त्रिपुरी के कलचुरियों की मुद्राएँ (Coins of Mahishmti and Tripuri Kalchuriyas)
कलचुरियों की सबसे प्रारंम्भिक मुद्राएँ वे हैं जिन्हें माहिष्मति शाखा के कृष्णराज ने जारी किया था और जो मध्य प्रदेश मुख्य प्रकार के सिक्के में त्रिपुरी, पाटन और बेसनगर से मिली हैं। उसकी मुद्रा महाराष्ट्र, विदर्भ, कोंकण और राजस्थान में भी चलती थी।
देवगिरी के यादवों की मुद्राएँ (Coins of Devgiri’s Yadav)
11वीं, 12वीं शताब्दी में देवगिरी पर शासन कर रहे यादवों ने अपना अधिकार मध्य प्रदेश के भागों तक फैला लिया था। बालाघाट और लांजी में मिले अभिलेखों के अतिरिक्त उनकी मुद्राएँ कोटा, देवास और परसाडीह से मिली हैं।
कच्छपघात् की मुद्राएँ (Coins of Kachhpaghat)
इस वंश के केवल दो शासकों ने मुद्राएँ जारी की थीं। पहला ग्वालियर शाखा का महिपाल था और दूसरा इसी वंश की नरवर शाखा का वीरसिंह था। महिपाल के सोने और चांदी के सिक्कों के समूह ग्वालियर और झांसी से पाये गये हैं। वीरसिंह के अश्वारोही प्रकार के तीन सिक्के मिले हैं जिनमें से एक ग्वालियर, दूसरा उत्तर प्रदेश के लखनऊ और तीसरा गोरखपुर जिले में प्राप्त हुआ है।
नरवर के यज्वपालों की मुद्राएँ (Coins of Naravar’s Yajvapal)
यज्वपाल वंश के कुछ शासकों ने भी मुद्रायें जारी की थीं। इस वंश के संस्थापक चाहड़ द्वारा चलाई गई मुद्राएँ ग्वालियर से मिली हैं। ग्वालियर से प्राप्त इस वंश के 791 सिक्कों का एक भंडार मिला है जिसमें चाहड़देव, आसल्लदेव एवं गोपालदेव के सिक्के सम्मिलित थे।
gupta coins in hindi
गुप्त सिक्के चौथी शताब्दी ई. में गुप्त साम्राज्य की स्थापना ने मुद्राशास्त्र के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की। गुप्त सिक्के की शुरुआत राजवंश के तीसरे शासक चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा जारी सोने में एक उल्लेखनीय श्रृंखला के साथ हुई, जिन्होंने एक ही प्रकार- राजा और रानी जारी किया – जिसमें चंद्रगुप्त और उनकी रानी कुमारदेवी के चित्रों को उनके नामों के साथ दर्शाया गया था। देवी सिंह पर विराजमान हैं, जिसके पीछे लिच्छव्याह की कथा है। हालांकि इस प्रकार के कुछ नमूने 24-परगना (उत्तर) और बर्दवान जिलों से खोजे गए हैं, बंगाल समुद्रगुप्त के समय तक गुप्त शासन के अधीन नहीं आया था, जिसके इलाहाबाद शिलालेख में सीमावर्ती राज्यों के बीच समरूपता को स्थान दिया गया है।
1-2. समुद्रगुप्त का आर्चर प्रकार का सिक्का; 3. पहला कुमारगुप्त का सिंह-वध करने वाला और 4. दूसरा चंद्रगुप्त का धनुर्धर प्रकार का सिक्का -क्रेडिट banglapedia |
समुद्रगुप्त द्वारा जारी सात प्रकार के सोने के सिक्कों में से तीन- मानक, धनुर्धर और अश्वमेध बंगाल के माने जाते हैं। बांग्लादेश, मिदनापुर, बर्दवान, हुगली और 24-परगना (उत्तर) से खोजे गए मानक प्रकार में खड़े राजा को एक मानक धारण करने और अग्नि-वेदी पर बलि चढ़ाने का चित्रण है। सिक्के के पीछे एक देवी को एक सिंहासन पर बैठे हुए एक कॉर्नुकोपिया और किंवदंती पराक्रमा को दिखाया गया है। 24-परगना (उत्तर) से प्राप्त धनुर्धर प्रकार, राजा को खड़ा दर्शाता है, एक धनुष और बाण पकड़े हुए है, जिसके नीचे समुद्र लिखा हुआ है। किंवदंती को छोड़कर मानक प्रकार पर विपरीत है, मुख्य प्रकार के सिक्के जिसमें अपरातीरथ यानी ‘अतुलनीय योद्धा’ लिखा है। कोमिला जिले में खोजा गया अश्वमेध प्रकार, एक बहते हुए बैनर के साथ एक बलि पद के सामने एक बेदाग घोड़ा दिखाता है। पीछे एक महिला (शायद मुख्य रानी) एक सजावटी भाले (सुचि) के सामने खड़ी है, जिसके दाहिने कंधे पर एक फ्लाईविस्क है और पौराणिक कथा श्वमेधपरक्रमा है। बंगाल से युद्ध-कुल्हाड़ी, बाघ-हत्यारा, गीतकार और कच प्रकार के समुद्रगुप्त के कोई नमूने ज्ञात नहीं हैं।
चंद्रगुप्त द्वितीय के केवल दो प्रकार के सिक्के, जिन्होंने गुप्त साम्राज्य में वंगा ( बंगाल ) को शामिल किया, बंगाल से जाने जाते हैं। उनके आर्चर प्रकार के सिक्के, जो कुमारगुप्त प्रथम के बाद गुप्त शासकों के साथ सबसे लोकप्रिय प्रकार के सिक्के बन गए, बांग्लादेश के फरीदपुर, बोगरा, जेसोर और कोमिला जिलों और कालीघाट (कलकत्ता), हुगली, बर्दवान, 24-परगना में पाए गए हैं। उत्तर), और पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद। इस प्रकार के दो वर्ग होते हैं (एक विराजमान देवी के साथ और दूसरा पीछे की ओर कमल पर विराजमान देवी के साथ) कई किस्मों के साथ।
उनके छत्र (छाता) प्रकार में एक राजा को वेदी पर धूप चढ़ाते हुए दर्शाया गया है, जबकि एक परिचारक उसके ऊपर एक छतरी रखता है और पीछे की तरफ कमल पर खड़ी एक देवी हुगली जिले से खोजे गए एकल नमूने से जानी जाती है।
उनके सिंह-हत्यारे, घुड़सवार, सोफे, मानक, चक्रविक्रम, और सोफे पर राजा और रानी बंगाल में नहीं पाए मुख्य प्रकार के सिक्के गए हैं।
कुमारगुप्त प्रथम, जिसने सोलह प्रकार के सोने के सिक्के जारी किए, का प्रतिनिधित्व आर्चर (हुगली), घुड़सवार (मिदनापुर और हुगली), हाथी-सवार (हुगली), शेर-हत्यारा (बोगरा, हुगली और बर्दवान) और कार्तिकेय द्वारा किया जाता है। (बर्दवान) बंगाल में प्रकार। घुड़सवार-प्रकार के सिक्कों में राजा को धनुष और तलवार जैसे हथियारों के साथ एक घोड़े की सवारी करते हुए दिखाया गया है और एक देवी विकर स्टूल पर बैठी है, कभी-कभी एक मोर को अंगूर खिलाती है। हाथी-सवार प्रकार में एक राजा को हाथी पर सवार एक बकरा पकड़े हुए दिखाया गया है। एक छाता पकड़े हुए एक परिचारक उसके पीछे बैठता है। इसके विपरीत भाग में महेन्द्रगजह की कथा के साथ कमल पर एक देवी खड़ी है। शेर-कातिल प्रकार में एक राजा होता है, जो धनुष और तीर से लैस होता है, या तो आगे की तरफ एक शेर का मुकाबला करता है या उसे रौंदता है और एक देवी एक काउचेंट शेर पर बैठी होती है, और किंवदंती श्री-महेंद्रसिंह रिवर्स पर होती है। पूरी श्रृंखला में सबसे सुंदर कार्तिकेय (या मयूर) प्रकार है जिसमें राजा को त्रिभंग मुद्रा में दर्शाया गया है जो अग्रभाग पर एक मोर को अंगूरों का एक गुच्छा खिला रहा है और भगवान कार्तिकेय एक मोर पर बैठे हैं और पौराणिक कथा महेंद्रकुमार: पिछले भाग पर।
बंगाल में चार ज्ञात प्रकार के स्कंदगुप्त में से दो प्रकार-आर्चर (फरीदपुर, बोगरा, हुगली, बर्दवान) और राजा और रानी (मिदनापुर) पाए गए हैं। उत्तरार्द्ध में एक राजा और एक रानी (कुछ लोगों द्वारा देवी लक्ष्मी के रूप में पहचाने जाते हैं) को एक दूसरे के सामने और कमल पर बैठे एक देवी और रिवर्स पर श्री स्कंदगुप्त की कथा को दर्शाया गया है। कुमारगुप्त द्वितीय (कालीघाट, उत्तर और दक्षिण 24-परगना, मिदनापुर), वैन्यागुप्त (कालीघाट और हुगली) नरसिंहगुप्त (कालीघाट, हुगली, मुर्शिदाबाद, बीरभूम और नादिया), कुमारगुप्त III (हुगली और बर्दवान), और विष्णुगुप्त (कालीघाट) के आर्चर प्रकार के सिक्के , हुगली और 24-परगना, उत्तर) बंगाल में पाए गए हैं। सिक्कों के अग्रभाग पर जारीकर्ता की उपलब्धियों को उजागर करते हुए, अधिकांश में शुद्ध संस्कृत में छंदात्मक किंवदंतियाँ अंकित हैं। ज्यामितीय डिजाइन में एक प्रतीक आमतौर पर गुप्त सिक्कों के पीछे पाया जाता है और बड़ी संख्या में गरुड़ मानक होता है।
गुप्तों ने अपने सोने के सिक्कों के लिए एक जटिल मेट्रोलॉजी का पालन किया। यद्यपि यह माना जाता था कि रोमन ऑरेई के बाद उनके शुरुआती सिक्के के लिए कुषाण वजन मानक 122 अनाज और स्कंदगुप्त के समय से 144 अनाज के भारतीय सुवर्ण मानक का पालन किया गया था, फिर भी हम उनके वजन में धीरे-धीरे वृद्धि पाते हैं। चंद्रगुप्त के समय में 112 अंतिम शासकों के सिक्कों के लिए 1 से 148 अनाज। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अंतिम तीन शासकों के सिक्कों को छोड़कर उनके शुद्ध सोने की मात्रा 113 अनाज थी। यह संभव है कि सोने के सिक्कों को उनके अंकित मूल्य पर नहीं बल्कि उनके वास्तविक मूल्य पर स्वीकार किया गया हो। गुप्त शिलालेखों में उनके लिए दीनारा और सुवर्ण शब्द का प्रयोग किया गया है, जाहिर तौर पर हल्के और भारी प्रकारों में अंतर करने के लिए।
चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम और स्कंदगुप्त के कुछ चांदी के सिक्के 1852 में जेसोर के पास मुख्य प्रकार के सिक्के मुहम्मदपुर में खोजे गए थे, और स्कंदगुप्त का एक सिक्का चंद्रकेतुगढ़ से प्राप्त हुआ है। इन सिक्कों के अलावा, बंगाल से चांदी के सिक्कों के कोई अन्य नमूने ज्ञात नहीं हैं, लेकिन बंगाल के गुप्त अभिलेखों में इनका उल्लेख निश्चित रूप से देश में उनके प्रचलन का संकेत देता है। उन्हें 32 अनाज के वजन मानक पर जारी किया गया था और शिलालेखों में रूपक के रूप में संदर्भित किया गया था। बंगाल से गुप्तों के तांबे के मुद्दों की सूचना नहीं मिली है। [अश्विनी अग्रवाल]
ग्रंथ सूची एएस अल्टेकर, गुप्त साम्राज्य का सिक्का, वाराणसी, 1957; बीएन मुखर्जी, कॉइन्स एंड करेंसी सिस्टम इन गुप्ता बंगाल, नई दिल्ली, 1992।
Feng Shui Tips: घर के मुख्य द्वार पर लटकाएं ये सिक्के, बढ़ जाएगी आपकी आमदनी
Feng Shui Tips: सिक्के धन का स्रोत होते है। वहीं चीन के सिक्के बाहर से गोल और अंदर से उनमें वर्गाकार छेद होता है। फेंगशुई की मानें तो घर और ऑफिस आदि के मुख्य दरवाजे पर 3, 6 या मुख्य प्रकार के सिक्के 9 सिक्कों को लाल अथव पीले रंग के रिबन से बांधकर लटकाना बहुत शुभ माना जाता है।
Feng Shui Tips: सिक्के धन का स्रोत होते है। वहीं चीन के सिक्के बाहर से गोल और अंदर से उनमें वर्गाकार छेद होता है। फेंगशुई की मानें तो घर और ऑफिस आदि के मुख्य दरवाजे पर 3, 6 या 9 सिक्कों को लाल अथव पीले रंग के रिबन मुख्य प्रकार के सिक्के से बांधकर लटकाना बहुत शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि, इन सिक्कों को घर के मुख्य दरवाजे पर ऐसे लटकाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती है और वहां रहने वाले लोगों में शक्ति और सुरक्षा का एहसास बढ़ता है। तथा ऐसा घर की आर्थिक रुप से मजबूत हो जाता है। यहीं कारण हैं कि, चीनी लोग अपने घरों में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए अपने घरों को इस प्रकार सजाते हैं और अपने घर के मुख्य दरवाजे पर सिक्के लटकाना पसंद करते हैं। तथा इसी तरह सिक्के अपने कार्यालय और कार्यस्थल पर रखते हैं।
फेंगशुई की मानें तो चाइनीज सिक्के सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं और इसीलिए चरन में सिक्कों को घर के प्रवेश द्वार पर लटकाने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि, इन सिक्कों को घर के दरवाजे पर टकाने से घर की दरिद्रता का नाश हो जाता है और घर में स्थायी रुप से लक्ष्मी जी निवास करने लगती हैं।
वहीं करियर में सफलता प्राप्त करने के लिए फेंगशुई के सिक्के को त्रिकोण में बांधकर अपने पास रखें। नौकरी में पदोन्नति और कारोबार में वृद्धि के लिए त्रिकोण में बंधे हुए इन सिक्कों को अपने कार्य करने वाली जगह पर रखें।
फेंगशुई के मुताबिक, इन सिक्कों को लाल या पीले रिबन में बांधकर ही लटकाया जाता है। कई बार इन्हें 10 सिक्कों का गुच्छा बना कर भी अपने कार्यक्षेत्र में बैठने वाली मेज की दराज में रखने पर मां लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है।
ऐसी मान्यता है कि फेंगशुई सिक्कों को जिस घर में लटका दिया जाता है, उस घर का माहौल खुशनुमा बनने लग जाता है और वह घर आर्थिक रुप से मजबूत हो जाता है।
फेंगशुई के मुताबिक, इन सिक्कों के प्रभाव से घर के लोगों के बीच प्रेम और सामंजस्य का भाव बढ़ता है। तथा माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है और घर में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। ऐसे लोगों में आत्मविश्वास की भावना बढ़ती है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)