बिटकॉइन का मार्केट वैल्यू कैसे बढ़ता है?

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36 पैसे से शुरू हुई यह वर्चुअल करेंसी 13 लाख रुपये तक पहुंची, जानें क्या है इस ‘धंधे’ का सच
दुनिया में फिलहाल 1 करोड़ बिटकॉइन हैं. यह करेंसी बैंकों में नहीं होती और कंप्यूटर प्रोग्राम से इसे बनाया जाता है जिसे माइनिंग कहते हैं.
TV9 Hindi | Edited By: Ravikant Singh
Updated on: Dec 09, 2020 | 11:48 AM
कोरोना वायरस ने लगभग हर चीज को वर्चुअल बना दिया है. रुपये पैसे का लेनदेन तो वर्चुअल हो ही चला है, वर्चुअल करेंसी का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है. इस वर्चुअल करेंसी का नाम है बिटकॉइन. रुपये पैसे या डॉलर की तरह यह करेंसी दिखती नहीं है लेकिन इसका इस्तेमाल खरीद-बिक्री के लिए वैसे ही कर सकते हैं. सबसे बड़ी बात कि बिटकॉइन किसी एक देश की करेंसी से नहीं जुड़ी है, यह यूनिवर्सल है. लोगों को इस करेंसी में अपार संभावनाएं दिख रही हैं तभी 2009 में 36 पैसे के बराबर वैल्यू से शुरू हुई बिटकॉइन आज 13 लाख रुपये तक पहुंच गई है.
क्या है बिटकॉइन बिटकॉइन एक क्रिप्टोकरेंसी है जिसकी खरीद बिक्री किसी बैंक के जरिये नहीं बल्कि ऑनलाइन होती है. आपको बैंक में इसका खाता खुलवाने की जरूरत नहीं बल्कि ऑनलाइन ही सारी बिटकॉइन का मार्केट वैल्यू कैसे बढ़ता है? प्रक्रिया पूरी होती है. इस करेंसी को किसने शुरू किया यह पर्दे के पीछे है लेकिन सातोशी नाकामोटो के नाम से इस करेंसी का ऑनलाइन अवतार लोगों के सामने आया. 3 जनवरी 2009 को इसका लेजर शुरू हुआ और जैसे अन्य करेंसी की अपनी निश्चित निशानी होती है, वैसे ही बिटकॉइन बिटकॉइन का मार्केट वैल्यू कैसे बढ़ता है? को BTC, ฿, ₿ निशान के साथ नई पहचान मिली. इसका कनवर्जन रेट (मुद्रा विनियम) देखें तो यह दुनिया की सबसे महंगी करेंसी है. दुनिया के बड़े-बड़े लोगों ने इसमें निवेश किया है जिससे इसकी मांग और भी व्यापक हो गई है.
वैध नहीं है करेंसी इस करेंसी के साथ दिक्कत यह है कि अभी किसी सरकार ने इसे वैध करार नहीं दिया है. भारत सरकार और रिजर्व बैंक के साथ भी यही बात है लेकिन लोगों का इसमें भरोसा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. वैध नहीं बनाने के पीछे वजह इसका वर्चुअल होना है. सोर्स का पता नहीं है इसलिए सरकारें अभी कोई रिस्क लेना नहीं चाहतीं. बिटकॉइन पर आरोप लगते रहे हैं कि इसका इस्तेमाल बड़े स्तर पर हवाला लेनदेन, ड्रग्स, आतंकवाद और कालाधन में होता है. इसे देखते हुए सरकारें वैध बनाने को लेकर अभी संशय में हैं. हालांकि दुनिया की अलग-अलग सरकारें इसके लेनदेन पर रोक लगाने में असरमर्थ हैं और इसका कारोबार दिनों दिन तेज गति से बढ़ता जा रहा है. बिटकॉइन की तरह लगभग 90 क्रिप्टोकरेंसी अभी चलन में है.
कैसे होती है खरीद-बिक्री बिटकॉइन की खरीद और बिक्री के लिए दुनिया में कई एक्सचेंज हैं. जिन्हें इसकी खरीद-बिक्री करनी होती है, उन्हें एक्सचेंज का सहारा लेना पड़ता है. दुनियाभर के बड़े बिजनेसमैन और कई बड़ी कंपनियां वित्तीय लेनदेन में इसका इस्तेमाल कर रही हैं. इसकी वजह यह है कि अगर आपको विदेश में पेमेंट करनी है तो इसके लिए बैंकों का सहारा लेना पड़ेगा. बैंक इसके लिए अलग से शुल्क वसूलते हैं. भारत में अलग शुल्क और जिस देश में आपको पेमेंट करनी है वहां की करेंसी में कनवर्ट कराने के लिए अलग शुल्क. यह पेचीदा काम है और इसमें समय भी लगता है. बिटकॉइन के साथ ये सब झंझट नहीं है. आप डायरेक्ट बिटकॉइन से पेमेंट कर सकते हैं, वह भी वर्चुअली.
इस दिशा में अमेरिकी कंपनी पे-पाल ने सबसे पहले कदम बढ़ाया है जिसने ऐलान किया है कि उसके अकाउंट होल्डर्स अब बिटकॉइन को खरीद और बेच सकते हैं. क्रिप्टोकरेंसी के बाजार में उतरने का ऐलान करते हुए पे-पाल ने कहा है कि वह अन्य करेंसी की तरह बिटकॉइन भी स्वीकार करेगा. पे-पाल अमेरिका की पेमेंट वॉलेट कंपनी है जिसके लाखों कस्टमर्स हैं. कंपनी ने बिटकॉइन की खरीद-बिक्री का ऐलान इस साल अक्टूबर महीने में की. इसके साथ ही बिटकॉइन अब मेनस्ट्रीम करेंसी में शामिल हो गई है जैसे रुपया, डॉलर और पाउंड हैं. भारत में भी इसके कई खरीदार हैं और जिन्होंने 2-4 साल पहले सस्ते में इसे खरीद लिया था, आज वे मालामाल हैं. जिन लोगों ने पहले इसे सस्ते दामों में खरीदा था, आज वे महंगे दाम पर इसे बेचकर बड़ा कारोबार कर रहे हैं.
बिटकॉइन की कुल संख्या दुनिया में फिलहाल 1 करोड़ बिटकॉइन हैं. यह करेंसी बैंकों में नहीं होती और कंप्यूटर प्रोग्राम से इसे बनाया जाता है जिसे माइनिंग कहते हैं. इसका माइनिंग काफी मुश्किल काम है, इसलिए कहा जा रहा है कि भविष्य में बिटकॉइन की संख्या सीमित होगी लेकिन इसकी मांग बेतहाशा बढ़ेगी. बिटकॉइन माइनिंग का मतलब एक ऐसे तरीके से है जिसमें कंप्यूटिंग पावर का इस्तेमाल कर ट्रांजैक्शन प्रोसेस किया जाता है. नेटवर्क को सुरक्षित रखा जाता है साथ ही नेटवर्क को सिंक्रोनाइज भी किया जाता है. इसीलिए बिटकॉइन को रखने के लिए अलग से डिवाइस भी होता है जिसे खरीदना पड़ता है. यह डिवाइस ऑनलाइन नहीं होता ताकि कोई इसे हैक नहीं कर सके. जैसे अन्य करेंसी में अस्थितरता होती है, वैसी बात बिटकॉइन के साथ नहीं है. शुरू से इसमें बढ़ोतरी है, कभी घटते हुए नहीं देखा गया.
जानिए कैसे कजाकिस्तान की अशांति ने दिया बिटकॉइन माइनिंग इंडस्ट्री को झटका
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कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा कजाकिस्तान इन दिनों जबरदस्त हिंसा से गुजर रहा है. इसकी शुरुआत पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढ़ने के विरोध बिटकॉइन का मार्केट वैल्यू कैसे बढ़ता है? के रूप में हुई और जल्दी ही इसने गृहयुद्ध का रूप ले लिया. इस हिंसा में 150 से ज्यादा लोग मारे गए, हजारों घायल हुए और हजारों गिरफ्तार किए गए हैं. भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं के कारण राष्ट्रपति कासिम जोमार्ट टोकायेव की सरकार के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा है.
विद्रोह दबाने के लिए पूर्व राजधानी अलमाटी समेत कई शहरों में इंटरनेट और टेलीकम्युनिकेशन सेवाएं कई दिनों के लिए बंद कर दी गईं. अलमाटी में पांच दिनों बाद इंटरनेट सेवा तो बहाल कर दी गई, लेकिन कई शहरों में एहतियातन अभी अंकुश जारी है. इस अशांति ने एक नई उभरती इंडस्ट्री को बड़ा झटका दिया है और वह है क्रिप्टो करेंसी माइनिंग इंडस्ट्री.
18% बिटकॉइन की माइनिंग कजाकिस्तान में ही
पिछले साल बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कजाकिस्तान में ही हो रही थी. पूरी दुनिया में जितनी क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग होती है, उसका 18 से 20 फीसदी कजाकिस्तान में ही किया जा रहा था. लेकिन इंटरनेट सेवा बंद होने से वहां क्रिप्टो माइनिंग लगभग ठप पड़ गई. इस साल 10 दिनों में बिटकॉइन की वैल्यू जो 47 हजार डॉलर से घटकर 40 हजार डॉलर पर आई है, उसकी एक वजह कजाकिस्तान भी है. वैसे चार महीने में बिटकॉइन की वैल्यू 68 हजार डॉलर से 40 फीसदी घटी है.
चीन में रोक के बाद कजाकिस्तान में माइनिंग
कजाकिस्तान करीब एक साल से ही क्रिप्टो करेंसी माइनिंग का हब बना है. खासकर जब चीन में इस पर अंकुश लगाया गया. बिटकॉइन सबसे ज्यादा चलन वाली क्रिप्टो करेंसी है. वर्षों तक चीन ही में ही इसकी सबसे ज्यादा माइनिंग होती थी. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के अनुसार 2019 में 75% बिटकॉइन की माइनिंग चीन में हुई थी. पिछले साल भी अप्रैल में दो-तिहाई बिटकॉइन की माइनिंग चीन में ही हुई थी. लेकिन उसके बाद चीन सरकार ने माइनिंग के साथ-साथ क्रिप्टो करेंसी के ट्रेड पर भी प्रतिबंध लगा दिया.
दरअसल क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग में बहुत ज्यादा बिजली खर्च होती है, इससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है. चीन ने कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए क्रिप्टो माइनिंग पर प्रतिबंध लगाया है. उसके बाद ही माइनिंग इंडस्ट्री ने कजाकिस्तान और कनाडा जैसे देशों में नया ठिकाना बनाया.
माइनिंग में शक्तिशाली कंप्यूटरों का इस्तेमाल
माइनिंग को मोटे तौर पर इस तरह समझा जा सकता है. क्रिप्टो करेंसी ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित हैं. कंप्यूटरों के जरिए एक तरह की मैथमेटिक्स की पहेली को सुलझाना होता है. सुलझाने वाले को एक ‘ब्लॉक’ मिलता है. एक ब्लॉक का मतलब है 6.25 बिटकॉइन. इसी को माइनिंग कहते हैं.
बिटकॉइन के शुरुआती दिनों में घरों में इस्तेमाल होने वाले सामान्य कंप्यूटर से माइनिंग की जा सकती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं बिटकॉइन का मार्केट वैल्यू कैसे बढ़ता है? है. अब इसके लिए शक्तिशाली हाइटेक कंप्यूटरों के नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाता है. ये कंप्यूटर लगातार चलते रहते हैं और काफी बिजली खपत करते हैं. कंप्यूटर लगातार चलने से उनका हार्डवेयर ज्यादा गर्म ना हो जाए, इसके लिए कूलिंग की भी जरूरत पड़ती है. इसलिए अब बड़े डाटा सेंटर में माइनिंग की जाने लगी है.
स्वीडन से ज्यादा बिजली खर्च होती है बिटकॉइन में
जितनी ज्यादा बिटकॉइन या क्रिप्टो करेंसी बाजार में आती है, नए कॉइन की माइनिंग उतनी अधिक मुश्किल होती जाती है. तब नए कॉइन की माइनिंग में और ज्यादा बिजली खर्च होती है. अनुमान है कि बिटकॉइन की माइनिंग का 60% खर्च बिजली का ही होता है. हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू ने मई 2021 में एक रिपोर्ट में बताया कि बिटकॉइन तैयार करने में हर साल 110 टेरा यूनिट बिजली खर्च होती है. यह दुनिया के कुल बिजली उत्पादन का 0.55% है.
दूसरे शब्दों में कहें तो मलेशिया और स्वीडन जैसे छोटे देशों में लोग हर साल जितनी बिजली खर्च करते हैं, उतनी बिजली सिर्फ बिटकॉइन बनाने में खर्च हो जाती है. बीते पांच वर्षों में क्रिप्टो करेंसी बनाने में बिजली का खर्च 10 गुना बढ़ा है. माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में कहा था कि बिटकॉइन के हर काम में जितनी बिजली खर्च होती है, उतनी किसी और काम में नहीं होती.
इसलिए कजाकस्तान में बढ़ी क्रिप्टो माइनिंग
क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग दुनिया में कहीं भी हो सकती है, लेकिन बिजली खपत अधिक होने के कारण माइनिंग इंडस्ट्री वहीं ठिकाना बनाती है जहां बिजली सस्ती हो. चीन के कुछ प्रांतों में बरसात के दिनों में पनबिजली सरप्लस हो जाती है. इसलिए भी चीन में क्रिप्टो माइनिंग बढ़ी. कजाकस्तान में दुनिया का तीन फीसदी तेल भंडार है.
इसके अलावा कोयला और गैस का भी विशाल भंडार है. इसलिए वहां बिजली सस्ती थी और माइनिंग इंडस्ट्री ने वहां डेरा जमाया था. लेकिन मांग ज्यादा बढ़ने के कारण हाल में बिजली कटौती होने लगी. विशेषज्ञों का अनुमान है कि नए घटनाक्रम के बाद यह इंडस्ट्री किसी सुरक्षित जगह का रुख कर सकती है.
क्रिप्टो माइनिंग में एक और समस्या ई-वेस्ट की है. क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग में लगे लोग लगातार नए और तेज कंप्यूटर चाहते हैं, क्योंकि तभी उन्हें ‘ब्लॉक’ मिल पाएगा. एक अनुमान के मुताबिक हर डेढ़ से दो साल में माइनिंग हार्डवेयर की क्षमता की जरूरत दोगुनी हो जाती है. ऐसे में पुराने कंप्यूटर बेकार हो जाते हैं. इसलिए बिटकॉइन से जितना ई-वेस्ट निकलता है, वह कई देशों में निकलने वाले ई-वेस्ट से ज्यादा है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
सुनील सिंह वरिष्ठ पत्रकार
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
Crypto Buyback and Burn Strategy Kya Hai? 2022
Crypto World में कहा जाता है Buyback Burn Strategy यह दो अलग-अलग स्ट्रेटजीज है जिन्हें आपस में जोड़कर देखा जाता है लेकिन Crypto Buyback and Burn Strategy Kya Hai? क्रिप्टो करेंसी की मार्केट में मूल्य पर उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है पर क्यों होता है क्योंकि मार्केट और Assets नए हैं तो कीमतों में स्थिरता लाने के लिए, टोकन निर्माता Buyback और Burn Strategy का सहारा लेते हैं ताकि सप्लाई और डिमांड चैन है, वह ठीक हो सके, आइए इन दोनों स्ट्रेटजी को विस्तार से अलग अलग समझते हैं.
Buyback Strategy Kya Hai?
एक Assets या टोकन को वितरण से हटाना ताकि प्राइज में चल रहे जिससे उतार-चढ़ाव ठीक हो सके और डिमांड और सप्लाई के तहत स्थिरता स्थापित करने के लिए Buyback Strategy का प्रयोग किया जाता है,
Crypto Buyback and Burn Strategy कैसे करती है काम विस्तार से
दूसरे शब्दों में कहें तो जैसा कि इसके नाम से ही पता चल रहा है कि बायबैक अर्थात टोकन निर्माताओं ने बाजार में टोकन्स निकाले पर लगा कि डिमांड कम है और टोकन अधिक निकाल दिए गए हैं तो ऐसे में टोकन निर्माता उन टोकन्स को खरीद करके पुनः अपने एक वायलेट में रख देते हैं और जब देखते हैं कि डिमांड अधिक बढ़ रही है तब उन कोइन्स को मार्केट में फिर से लाया जाता है।
Burn Strategy Kya Hai?
बर्निंग का मतलब टोकन्स को अनयूजेबल वायलेट में पार्क कर देना अर्थात डाल देना, इस वॉलेट को जीरो एड्रेस या ईटर एड्रेस वॉलेट भी कहा जाता है। इस वायलेट का एड्रेस किसी के पास भी नहीं होता है, माइनर्स क्रिप्टो को Burn तो कर सकते हैं, प्रूफ ऑफ़ वर्क के तहत पर Buyback Strategy से एसेट्स की सप्लाई
सीमित हो जाती है परंतु Burning से तो एक तरह से उस करेंसी को खत्म करना होता है और बर्निंग से डिजिटल एसेट्स में बहुत बड़ा फर्क पड़ता है। बहुत सारे Coins निर्माता इन दोनों स्ट्रेटजी का भी इस्तेमाल करते हैं।
Buyback and Burn Strategy से क्या फायदा है?
Buyback में क्रिप्टो करेंसी मार्केट में अधिक टोकन जारी किए जाने पर माइनर्स उस क्रिप्टो कॉइन प्राइज की स्थिरता और उस कॉइन कि वैल्यू को बढ़ाने के लिए उन कॉइंस को दुबारा से खरीद लेते हैं और उन्हें अपने पास रख लेते हैं और मार्केट की मांग अधिक होने पर उन्हें दोबारा से क्रिप्टो मार्केट में निकाला जाता है, वहीं Burning में कॉइन को खरीद करके खत्म कर दिया जाता है अर्थात उन्हें शून्य वॉलेट में पार्क या कहें छोड़ दिया जाता है जिन्हें वापस लाना नामुमकिन होता है।
Crypto Buyback and Burn Strategy करने से होते हैं यह फायदे
Buyback में टोकन्स को खरीद करके मार्केट में कॉइन की वैल्यू को बढ़ाने के लिए किया जाता है तथा समय आने पर उन्हें फिर से मार्केट में भेज दिया जाता है वही Burning की बात की जाए तो एक बार क्वाइन को खरीद करके, इससे उन कोइन्स कि कीमत तो बढ़ जाती है और संख्या भी कम हो जाती है पर उन्हें खत्म करने के बाद वापस नहीं लाया जा सकता है।
ऐसा शेयर बाजार में भी कई बार कंपनियां करती है अपने प्राइस को बढ़ाने के लिए अपने शेयर्स को Buyback कर लेती हैं जिससे शेयर्स के नंबर कम हो जाते हैं और उनके शेयर्स की कीमत बढ़ जाती है जिससे वह कंपनिया लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
ऐसा क्रिप्टो करेंसी मार्केट में भी होता है जब बाइनेंस ने अपना कोइन्स लांच किया था तभी अपने वाइट पेपर में उन्होंने बोला था कि हम हर 3 महीने में कुछ-कुछ कॉइन बाय-बैक करते रहेंगे जब तक हमारे कॉइन 2 सौ मिलियन से 1 सौ मिलियंस नहीं हो जाते हैं। जिससे आप बाइनेंस Coin के प्राइस को देख करके जरूर सोचते होंगे कि इतने कम समय में यह कॉइंस कैसे इतनी ऊंचाइयों में पहुंच गया तो अब आप समझ गए होंगे कि उन्होंने Buyback Strategy का इस्तेमाल करके लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया और कम समय में एक अच्छी सफलता हासिल कर ली और भी अन्य क्वाइन जैसे एथेरियम में भी अब बाय-बैक स्ट्रेटजी का इस्तेमाल हो रहा है।
आपको बताते चलें कि जो कोइन्स Burn Strategy का इस्तेमाल करते हैं उन्हें भी Buyback Strategy का इस्तेमाल करना ही पड़ता है क्योंकि बर्न करने के लिए बाय बैक करेंगे तभी कॉइंस को वर्न किया जा सकता है।