विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति

विदेशी मुद्रा बाजार

विदेशी मुद्रा बाजार
ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

विदेशी मुद्रा बाजार

वर्ष 2011 में विदेशी मुद्रा बा .

वर्ष 2011 में विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये में तेज मूल्यह्रास किस कारण आया?
1. विदेशी निवेशकों द्वारा सुरक्षा की ओर दौड़
2. यूरोपीय बाजारों में नरमी
3. उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति
4. मौद्रिक नीति के पश्चता प्रभाव में कसावट आना
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।

अमेरिका को चेतावनी. भारत पर भरोसा, Fitch ने कहा- किसी भी बाहरी झटके से निपटने को तैयार

Fitch Ratings ने अमेरिका के लिए कहा है कि फेड रिजर्व चार दशक के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी महंगाई को काबू में करने के लिए एक के बाद एक लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है. यह कदम उपभोक्ता खर्च को इस हद तक कम कर सकता है कि यह 2023 की दूसरी तिमाही के दौरान मंदी का कारण बन जाएगा.

फिच ने कहा भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 20 अक्टूबर 2022,
  • (अपडेटेड 20 अक्टूबर 2022, 11:09 AM IST)

भले ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) कम हुआ हो और अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय करेंसी रुपया (Rupee Fall) टूटता जा रहा हो, लेकिन फिर भी भारत किसी भी बाहरी झटके से निपटने में सक्षम है. ये हम नहीं कह रहे बल्कि वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स (Fitch Ratings) का ऐसा मानना है. एक ओर जहां फिच ने भारत की तारीफ की है, तो मंदी के बढ़ते जोखिम को लेकर अमेरिका को हाल ही में चेतावनी दी है.

भारत की क्रेडिट पर रिस्क सीमित
फिच रेटिंग्स ने बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि अमेरिका की सख्त मौद्रिक नीतियों (Monetary Policy Tightening) और वैश्विक स्तर बढ़ती महंगाई दर (High Inflation) से निपटने के लिए भारत तैयार है और उसके पास इस तरह के रिस्क के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है. एजेंसी के मुताबिक बाहरी दबावों से भारत की क्रेडिट को जो रिस्क है, वह बेहद सीमित है.

गौरतलब है कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 10 सप्ताह से जारी गिरावट के बाद आखिरकार बीते 7 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में बढ़ोतरी देखने को मिली थी. Foreign Exchange Reserves में 20.4 करोड़ डॉलर की वृद्धि हुई थी और यह बढ़कर 532.868 अरब डॉलर पर पंहुच गया था.

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पिछले सप्ताह फॉरेक्स रिजर्व में सुधार
भले ही लंबे समय बाद भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार देखने को मिला है. लेकिन अभी भी यह भारतीय रिजर्व बैंक के तय लक्ष्य 600 अरब डॉलर के काफी नीचे है. साल 2022 के बीते नौ महीनों में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 100 अरब डॉलर की कमी देखने को मिली है. इसमें गिरावट के सिलसिले के बीच आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि विदेशी मुद्रा भंडार बाजार में अनिश्चितता के बावजूद मजबूत बना हुआ है.

इस साल आई इतनी गिरावट
पीटीआई के मुताबिक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इस साल लगातार गिरा है. रिपोर्ट में साल की शुरुआत से सितंबर महीने कर का डाटा पेश करते हुए कहा गया कि देश के फॉरेक्स रिजर्व में जनवरी 2022 से सितंबर 2022 के बीच 101 अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है. फिच का कहना है कि फिलहाल भारत के पास 533 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी बाहरी झटके से सामना करने के लिए पर्याप्त है.

अमेरिका के लिए कही थी यह बात
बहरहाल, वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स की ताजा टिप्पणी भारत के लिए बेहद राहत भरी है. ऐसा इसलिए भी है कि फिच समेत तमाम रेटिंग एजेंसियों ने दुनिया की बड़ी-बड़ी इकोनॉमी पर मंदी के बढ़ते जोखिम का बुरा असर पड़ने की आशंका जताई है.

हाल ही में फिच रेटिंग्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि US में चरम पर पहुंची महंगाई और इसे काबू में करने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से लगातार ब्याज दरों (Interest Rate) में बढ़ोतरी से देश मंदी की ओर तेजी से बढ़ रहा है. सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका में मंदी (US Recession) का जोखिम 1990 के पैटर्न विदेशी मुद्रा बाजार की तरह दिखाई दे रहा है.

गिरती सेहत

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा

रुपयाः फिलहाल कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा

एम.जी. अरुण

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 11 जुलाई 2022, 3:51 PM IST)

कमजोर मुद्रा जरूरी नहीं कि कमजोर अर्थव्यवस्था की झलक हो, पर वह उसमें निहित उन मुद्दों की तरफ तो इशारा करती ही है जिन्हें दुरुस्त नहीं किया गया तो नुक्सान हो सकता है. इस लिहाज से फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के वक्त से ही रुपए में कोई गिरावट चिंता की बात है. रूसी फौजों के यूक्रेन में दाखिल होने के दिन यानी 24 फरवरी को रुपया प्रति डॉलर 75.4 के स्तर पर था, जो 5 जुलाई को अपने सबसे निचले स्तर 79.14 प्रति डॉलर पर आ गया. मैकलाई फाइनेंशियल सर्विस के सीईओ जमाल मैकलाई कहते हैं, ''रुपया जिस तरह गिर रहा है, उसे देखते हुए यह बेशक 80 प्रति डॉलर तक जाएगा.'' वे यह नहीं बता सकते कि कब, क्योंकि यह बाजार की शक्तियों और निश्चित ही युद्ध, महंगाई और कच्चे तेल के दामों पर निर्भर करता है.

रुपए के कमजोर होने की एक बड़ी वजह विभिन्न मुद्राओं के मुकाबले डॉलर का मजबूत होना है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 15 जून को ब्याज दरें 75 आधार अंक बढ़ा दीं और यह साल 1994 के बाद सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. यह बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश में निचली ब्याज दरों की व्यवस्था से उच्च ब्याज दरों की तरफ बदलाव का संकेत था. बॉन्ड पर ज्यादा रिटर्न पाने की तलाश कर रहे निवेशकों के लिए उच्च ब्याज दरें आकर्षक पेशकश होती हैं. ऐसे वैश्विक निवेशक स्थानीय मुद्राओं में अपने निवेश डॉलर में निवेश के बदले बेच देते हैं, जिससे अमेरिकी मुद्रा मजबूत होती है.

दूसरी वजह बढ़ती महंगाई है. भारत में महंगाई इस जनवरी से लगातार पांचवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक की 6 फीसद की ऊपरी सीमा से ज्यादा बढ़ी है. मई में खुदरा महंगाई 7.04 फीसद थी. 4 मई को आरबीआइ की तरफ से रेपो दर में, यानी उस दर में जिस पर वह व्यावसायिक बैंकों को उधार देता है, 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई जो अप्रैल में 7.79 फीसद थी. जून में आरबीआइ ने रेपो दर में और 50 आधार अंकों (बीपीएस) की बढ़ोतरी की.

अन्य वजहें हैं शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) की तरफ से तेज बिकवाली और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें, जो 4 जुलाई को ब्रेंट के लिए 111.5 डॉलर प्रति बैरल थीं. जब अमेरिका और ब्रिटेन में बॉन्ड पर प्राप्तियां (बॉन्ड के ब्याज भुगतान पर रिटर्न) बढ़ जाती हैं, तो एफआइआइ को ये बाजार बेहतर जगह नजर आते हैं और इन बाजारों की तरफ पूंजी की उड़ान की यही वजह है. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के आंकड़ों के अनुसार, एफआइआइ ने 1 अप्रैल, 2021 और 10 जून, 2022 के बीच भारतीय बाजारों में 2.14 लाख करोड़ रुपए के शेयर बेचे. यूक्रेन में जारी लड़ाई से यह बिकवाली और तेज होगी. एचएसबीसी ग्लोबल रिसर्च ने मई के अपने रिसर्च नोट में कहा, ''लंबी लड़ाई से बिक्री और तेज हो सकती है—ऐसी स्थिति में हमारा अंदाज करीब 7 से 8 अरब डॉलर के बाहर जाने का है, यह पिछले वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखे गए स्तर के समान है.''

केंद्र सरकार का अलबत्ता यही कहना है कि मुद्राएं भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कमजोर हो रही हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 जुलाई को कहा, ''आरबीआइ विनिमय दर पर कड़ाई से नजर रखे है. इस दुनिया में हम अकेले नहीं हैं. अर्थव्यवस्था के तौर पर हम विदेशी मुद्रा बाजार खुले भी हैं. अगर आप डॉलर के मुकाबले रुपए और डॉलर के मुकाबले अन्य दूसरी मुद्राओं की तुलना करें, तो रुपए ने दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है.''

कमजोर रुपया केवल निर्यातकों के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि उन्हें अपने कमाए डॉलर के बदले ज्यादा रुपए मिलते हैं. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह नुक्सानदायक हैं क्योंकि इससे चालू खाते का घाटा (सीएडी), या देश के निर्यात और आयात के मूल्य के बीच का फर्क, बढ़ने का अंदेशा होता है. सीएडी में बढ़ोतरी की बदौलत रुपया फिर और दबाव में आ सकता है और इससे विदेशों से उधार लेना भी महंगा हो सकता है. भारत का सीएडी 2021-22 की चौथी तिमाही में ज्यादा वस्तु आयात की वजह से बढ़कर 13.4 अरब डॉलर (करीब 1 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया, जो एक साल पहले इसी अवधि में 8.1 अरब डॉलर (63,936 करोड़ रुपए) था.

रेटिंग फर्म क्रिसिल ने एक हालिया रिसर्च नोट में कहा है कि वस्तुओं की ज्यादा कीमतों की वजह से आयात के महंगे होने और निर्यात के बाहरी मांग में सुस्ती से घिर जाने के साथ सीएडी के इस वित्तीय साल में जीडीपी के 3 फीसद तक बढ़ने की आशंका है. हमारे निर्यात पर गिरते रुपए के असर को स्वीकार करते हुए सीतारमण ने कहा, ''यही एक चीज है जिस पर मैं बहुत नजर और ध्यान रख रही हूं क्योंकि हमारे कई सारे उद्योगों को अपने उत्पादन के लिए कुछ चीजें अनिवार्यत: आयात करनी होती हैं.'' क्रिसिल को रुपए-डॉलर विनिमय दर में उतार-चढ़ाव बने रहने और इस वित्तीय साल के खत्म होने तक विनिमय दर के प्रति डॉलर 78 पर आकर टिकने की उम्मीद है.

आरबीआइ रुपए को मजबूत करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करता रहा है. उसकी तरफ से सरकारी बैंकों ने भी डॉलर की भारी बिक्री का सहारा लिया. हालांकि, आरबीआइ के इस कदम का दूसरा पहलू भी है. इससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटता है. बार्कलेज की एक रिपोर्ट कहती है कि आरबीआइ ने देश की मुद्रा को बचाने के लिए इस साल फरवरी से अपने विदेशी मुद्रा भंडार से 41 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 29 अप्रैल को खत्म होने वाले सप्ताह में पहली बार 600 अरब डॉलर के नीचे आ गया. 24 जून को खत्म सप्ताह में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 593.3 अरब डॉलर था.

रुपए की गिरावट थामने के लिए एक और कदम उठाते हुए 1 जुलाई को केंद्र ने सोने पर आयात विदेशी मुद्रा बाजार शुल्क 10.75 फीसद से बढ़ाकर 15 फीसद कर दिया. मैकलाई कहते हैं, ''अभी तक आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेच रहा था. अब केंद्र आगे आया है. दबाव बहुत ज्यादा है और हमें देखना होगा कि क्या यह और तीव्र होता है. समझदारी बरतिए और अगर बाजार में आपका जोखिम है तो खुद को बचाने के लिए संरचनागत प्रक्रिया अपनाइए.''

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा.

RBI के कदमों से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की रफ्तार कम हुईः रिपोर्ट

मुंबईः भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार घटने की दर में कमी आई है। आरबीआई अधिकारियों के अध्ययन में यह कहा गया है। अध्ययन में 2007 से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मौजूदा समय में उत्पन्न उतार-चढ़ाव को शामिल किया गया है। केंद्रीय बैंक की विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप की एक घोषित नीति है। केंद्रीय बैंक यदि बाजार में अस्थिरता देखता है, तो हस्तक्षेप करता है। हालांकि, रिजर्व बैंक मुद्रा को लेकर कभी भी लक्षित स्तर नहीं देता है।

आरबीआई के वित्तीय बाजार संचालन विभाग के सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस के अध्ययन में कहा गया है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भंडार 22 प्रतिशत कम हुआ था। यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न उतार-चढ़ाव के दौरान इसमें केवल छह प्रतिशत की कमी आई है। अध्ययन में कहा गया है कि इसमें व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह कोई जरूरी नहीं है कि यह केंद्रीय बैंक की सोच से मेल खाए। रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर अपने हस्तक्षेप उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहा है। यह विदेशी मुद्रा भंडार में घटने की कम दर से पता चलता है।

अध्ययन के अनुसार, निरपेक्ष रूप से 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण मुद्रा भंडार में 70 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई। जबकि कोविड-19 अवधि के दौरान इसमें 17 अरब डॉलर की ही कमी हुई। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस वर्ष 29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी आई है। अध्ययन में कहा गया है कि उतार-चढ़ाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्वों में विदेशी मुद्रा बाजार ब्याज दर, मुद्रास्फीति, सरकारी कर्ज, चालू खाते का घाटा, जिंसों पर निर्भरता राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर घटनाक्रम शामिल हैं।

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सिकुड़ता विदेशी मुद्रा भंडार फिलहाल खतरे की घंटी नहीं, मगर RBI को संभलकर चलना होगा

अमेरिकी फेडरल बैंक दरें बढ़ा रहा है, तो रिजर्व बैंक को भी रुपये में गिरावट और विदेशी मुद्रा के भंडार को सिकुड़ने से रोकने के लिए दरें बढ़ानी पड़ेंगी लेकिन इससे आर्थिक वृद्धि की रफ्तार थम सकती है.

ग्राफिक्स: प्रज्ञा घोष/ दिप्रिंट

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार सातवें हफ्ते गिरावट दर्ज की गई और 16 सितंबर को खत्म हुए सप्ताह में यह गिरकर 45.6 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. यह 2 अक्तूबर 2020 के बाद का न्यूनतम स्तर है. इसका बड़ा कारण यह है कि रिजर्व बैंक ने रुपये की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा बाजार में बढ़चढ़कर दखल दी. कुछ दिनों पहले तक तो रिजर्व बैंक ने रुपये की कीमत को 80 डॉलर की सीमा पर रोके रखा.

डॉलर की कीमत में निरंतर उछाल के कारण रिजर्व बैंक को रुपये को बाजार के फंडामेंटल्स से जुड़ने की छूट देनी पड़ेगी और उसे संभालने के लिए दूसरे उपाय अपनाने पड़ेंगे. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि रिजर्व चालू खाते में सरप्लस की वजह से नहीं बना है बल्कि पूंजी की आवक के कारण बना है, और इस पूंजी में हाल के महीनों में काफी उथल पुथल मची है.

डॉलर में तेजी

कैलेंडर वर्ष के शुरू से, अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों में वृद्धि की घोषणाएं कर रहा है. फेडरल फंड रेट अब 3 से 2.25 प्रतिशत के बीच है. फेडरल ओपेन मार्केट कमिटी (एफओएमसी) के सदस्यों का कहना है कि विदेशी मुद्रा बाजार फेडरल फंड रेट 2022 के अंत तक 4.4 फीसदी और 2023 में 4.6 फीसदी होगी. इसका अर्थ हुआ कि अभी दरों में और वृद्धि होगी.

इससे डॉलर ज्यादा आकर्षक बन जाता है. दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक भी दरों में वृद्धि कर रहे हैं लेकिन अमेरिकी फेड की तुलना में धीमी गति से.

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उदाहरण के लिए, बैंक ऑफ इंग्लैंड ने दरों में 1.5 फीसदी की वृद्धि की, ऑस्ट्रेलियन सेंट्रल बैंक ने 2.25 फीसदी की वृद्धि की, यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने 1.25 फीसदी की वृद्धि की. नतीजतन, कई मुद्राओं के बीच डॉलर की ताकत का अंदाजा देने वाले डॉलर इंडेक्स में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई. अमेरिकी फेड ने ब्याज दरों में हाल में 75 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि की तो डॉलर इंडेक्स दो दशक में सबसे ऊंचे स्तर, 111.8 पर पहुंच गया.

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रुपये में गिरावट

डॉलर इंडेक्स में उछाल से रुपये में गिरावट का दबाव बनता है. यूक्रेन युद्ध के बाद से रुपये की कीमत में 8.9 फीसदी की गिरावट आई है. वैसे, समकक्ष देशों की मुद्राओं की तुलना में रुपया बेहतर हाल में है. लेकिन यह स्थिति उसकी गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री के कारण है.

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ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 86 अरब डॉलर की कमी आई है. जुलाई में रिजर्व बैंक ने 19 अरब डॉलर बेची. डॉलर की वास्तविक बिक्री के अलावा, डॉलर के तुलना में यूरो और येन जैसी मुद्राओं में गिरावट से भी रिजर्व पर असर पड़ता है.

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डॉलर में उछाल डॉलर के सिवा दूसरी मुद्राओं के डॉलर मूल्य को गिराता है.

इसके उलट, अप्रैल 2013 से सितंबर 2013 के बीच हुए ‘टेपर टैंट्रम’ प्रकरण के दौरान रुपये की कीमत करीब 16 फीसदी कम हो गई. उस दौरान रिजर्व में मामूली, 21.5 अरब डॉलर की कमी आई.

कितना रिजर्व पर्याप्त है

अधिकतर देश विदेशी मुद्रा भंडार को अपनी अर्थनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं. बाजार में विदेशी मुद्रा बाजार उथलपुथल का सामना करने, मुद्रा में भरोसा कायम करने, विनिमय दर को प्रभावित करने जैसे कई कारणों से उन्हें रोक कर रखा जाता है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश (आइएमएफ) ने कई शोधपत्रों के जरिए बताया है कि रिजर्व की पर्याप्तता को मापने के तीन पारंपरिक पैमाने हैं. जिन देशों में कैपिटल एकाउंट्स पर नियंत्रण रखा जाता है उनमें आयात को प्रासंगिक पैमाना माना जाता है. यह बताता है कि झटके के मद्देनजर आयात के लिए कितने समय तक वित्त उपलब्ध कराया जा सकता है. विकासशील देशों में तीन महीने तक आयात करने लायक रिजर्व को पर्याप्त मानने का नियम चलता है. लेकिन वित्तीय समेकीकरण में वृद्धि के कारण इस पैमाने को अब कम उपयोगी माना जाता है.

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा पैमाना बकाया अल्पकालिक बाहरी कर्ज की 100 फीसदी कवरेज है. यह खासकर उन देशों के लिए लागू है जो दूसरे देशों के साथ बड़े अल्पकालिक लेन-देन करते हैं. तीसरा पैमाना है व्यापक धन में रिजर्व के अनुपात का. इसका उपयोग पूंजी के बाहर जाने से उभरे संकट में रिजर्व की पर्याप्तता विदेशी मुद्रा बाजार का आकलन करने के लिए किया जाता है. हाल के संकट के साथ स्थानीय डिपॉजिट के भी बाहर जाने से संकट पैदा हुआ. इस जोखिम से बचने के लिए रिजर्व व्यापक धन (जनता के पास और डिपॉजिट में मुद्रा) के 20 प्रतिशत के बराबर होना चाहिए.

भारत के पास पर्याप्त रिजर्व

भारत में रिजर्व अब तक 3 महीने से ज्यादा के आयात बिल भरने लायक रहता आया है. अक्तूबर 2021 में रिजर्व 642 अरब डॉलर के शिखर पर था और 16 महीने के आयात खर्च को पूरा कर सकता था. अब यह 545.6 अरब डॉलर पर आ गया है और 9 महीने के आयात खर्च को पूरा कर सकता है. विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के के बीच आयात में वृद्धि ने आयात कवर को घटा दिया है. हालांकि फिलहाल रिजर्व तीन महीने के आयात कवर की सीमा से ज्यादा है, लेकिन रिजर्व की पर्याप्तता का आकलन उथलपुथल को रोकने के लिए रिजर्व बैंक की पहल से किया जाएगा.

उपरोक्त दूसरे पैमाने के हिसाब से भारत का रिजर्व अल्पकालिक बाहरी कर्ज से ज्यादा है. हाल के अनुमानों के मुताबिक, अल्पकालिक बाहरी कर्ज उसके रिजर्व के अनुपात में आधे से भी कम के बराबर है. रिजर्व व्यापक धन के 20 प्रतिशत की सीमा से ठीक ऊपर है. रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, ऐसे भी समय आए जब रिजर्व इस सीमा से नीचे था.

नीति का हासिल और चुनौतियां

डॉलर में तेज उछाल ने न केवल रुपये को बल्कि पाउंड, यूरो, येन जैसी मुद्राओं को भी कमजोर किया है. चालू खाते के घाटे के बीच पूंजी की विस्फोटक आवक ने रिजर्व में वृद्धि की गति को धीमा किया. जुलाई में, रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा की आवक को बढ़ाने और रुपये में गिरावट को रोकने के उपायों की घोषणा की थी. इन उपायों में, सरकारी तथा कॉर्पोरेट बॉन्डों में विदेशी निवेश की शर्तों को ढीला करना, विदेशी मुद्रा में उधार की सीमा में छूट देना, और बैंक आप्रवासियों से बड़े डिपॉजिट ले सकें इसकी छूट देना शामिल है. लेकिन डॉलर में तेजी के कारण इन उपायों का विदेशी मुद्रा की आवक पर फर्क नहीं पड़ा.

रिजर्व बैंक को शायद रुपये को सहारा देने के लिए दरों में शायद अतिरिक्त 50 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि करनी पड़ेगी. यह चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि इससे बैंकिंग सिस्टम में तरलता पर ऐसे समय में दबाव बढ़ेगा जब क्रेडिट की मांग बढ़ रही है. और ज्यादा विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए बॉन्डों को उभरते बाजार के बॉन्ड सूचकांक में शामिल करना बेहतर होगा.

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