विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति

लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है?

लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है?

एमएफ योजनाओं के लिए रिस्क-ओ-मीटर 3.0

वर्ष 2013 में बाजार नियामक सेबी ने म्युचुअल फंड (एमएफ) उद्योग के लिए 'प्रोडक्ट लेबलिंग' की अवधारणा पेश की थी। इस कदम का मकसद निवेशकों को आसानी से समझने योग्य चित्रण के माध्यमसे योजना में अंतर्निहित जोखिम को समझने में मदद करना था। इसके पहले चरण में, लेबलिंग सिस्टम में तीन रंगों - नीला (लो-रिस्क को दर्शाने के लिए), पीला (मीडियम-रिस्क) और ब्राउन (हाई रिस्क) के लिए इस्तेमाल किया गया। वर्ष 2015 में सेबी ने इस व्यवस्था में बदलाव किया और कलर कोडिंग सिस्टम की जगह रिस्कओमीटर नाम से ग्राफिक की पेशकश की। पांच साल बाद, नियामक ने इस सिस्टम में फिर से सुधार किया है। अब नए रिस्कओमीटर में 6 लेबल होंगे, जो पहले 5 थे। इन लेबलों की रेंज 'लो' से 'वेरी हाई रिस्क' है।


नए रिस्क-ओ-मीटर में मुख्य बदलाव क्या है?

शायद, सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि पिछली व्यवस्था का इस्तेमाल योजना श्रेणी के लिए लेबल देने के लिए किया गया था। भविष्य में, लेबल व्यक्तिगत तौर पर योजनाओं को दिए जाएंगे। इसका मतलब है, लार्ज-कैप इक्विटी जैसी समान श्रेणी में आने वाली दो योजनाओं के लिए अलग अलग लेबल हो सकेंगे। फाइनल रिस्क-ओ-मीटर रीडिंग विभिन्न कारकों के आधार पर 1 और 12 के बीच औसत 'रिस्क वैल्यू' पर आधारित होगी।


इक्विटी योजनाओं के जोखिम का पता लगाने के लिए मुख्य कारक क्या होंगे?

मुख्य तौर पर, तीन कारक होंगे- बाजार पूंजीकरण, अस्थिरता और प्रभाव लागत। लार्जकैप श्रेणी में शेयरों की रिस्क वैल्यू 5 के साथ अपेक्षाकृत कम रहेगी, जबकि मिडकैप के लिए 7 और स्मॉलकैप के लिए 9 होगी। इसी तरह, कम उतार-चढ़ाव और प्रभाव लागत का मतलब कम रिस्क वैल्यू (मान लीजिए 5) होगा, और ऊंची रीडिंग का मतलब 9 की रिस्क वैल्यू से होगा। इन वैल्यू के भारांक औसत से फाइनल रिस्क-ओ-मीटर रीडिंग पर पहुंचने में मदद मिलेगी। सेबी द्वारा निर्धारित इस फॉमूले के आधार पर, कई इक्विटी योजनाओं के 'हाई रिस्क' या 'वेरी हाई रिस्क' श्रेणी में आने की आशंका है। पिछली व्यवस्था में, लार्ज-कैप या इक्विटी ईटीएफ 'मॉडरेटली हाई' रिस्क प्रोफाइल श्रेणी में आते थे।


डेट योजनाओं के जोखिम का पता लगाने के लिए मुख्य कारक

डेट योजनाओं में जोखिम कापता लगाने के लिए सेबी द्वारा निर्धारित मुख्य मानक हैं क्रेडिट रिस्क, इंटरेस्ट रेस्ट रिस्क और लिक्विडिटी रिस्क। क्रेडिट रिस्क के तहत, सरकारी प्रतिभूतियों को 1 की कम रिस्क वैल्यू दी गई है, जबकि कम निवेश ग्रेड वाले पत्रों को 12 के साथ सर्वाधिक रिस्क वैल्यू दी गई है। इंटरेस्ट रेट रिस्क श्रेणी पोर्टफोलियो की अवधि पर आधारित होगी। 6 महीने से कम की परिपक्वता वाले पत्रों को 1 की सबसे कम रिस्क वैल्यू होगी और जैसे ही अवध बढ़ेगी, रिस्क वैल्यू बढ़कर अधिकतम 6 हो जाएगी।


अन्य परिसंपत्ति वर्गों के बारे में स्थिति कैसी है?

सेबी ने सोने के लिए 4 पर अपेक्षाकृत कम लो-रिस्क वैल्यू निर्धारित की है। रियल एस्टेट निवेश ट्रस्टों (रीट) या इन्फ्रास्टक्चर निवेश ट्रस्टों (इनविट्स) और विदेशी प्रतिभूतियों में निवेश के लिए मिडकैप के समान 7 की रिस्क वैल्यू होगी। नकदी या शुद्घ मौजूदा परिसंपत्तियों के लिए 1 की सबसे कम रिस्क वैल्यू होगी। इक्विटी डेरिवेटिव में हेजिंग के मकसद से किए गए निवेशके लिए कोई रिस्क वैल्यू नहीं होगी। डेरिवेटिव्स में अत्यधिक निवेश के लिए 5 या 6 की रिस्क वैल्यू होगी।


फंड हाउसों को कितनी बार लेबलों की समीक्षा करनी होगी?

सेबी के सर्कुलर में कहा गया है कि रिस्क-ओ-मीटर का आकलन मासिक आधार पर किया जाएगा। फंड हाउसों को हर महीने की समाप्ति से 10 दिन के अंदर अपनी सभी योजनाओं के लिए पोर्टफोलियो के खुलासे के साथ साथ लेबलों की समीक्षा करनी होगी। इसके अलावा, रिस्क-ओ-मीटर में किसी तरह के बदलाव के बारे में एसएमएस या ईमेल के जरिये यूनिटाारकों को बताना होगा।

लिक्विडिटी और वोलेटाइल क्या है Difference between liquidity and volatility

लिक्विडिटी क्या है? (Meaning of liquidity in Hindi)

शेयर मार्केट में कुछ समय से या पहले से निवेश करने वाले निवेशकों को लिक्विडिटी के बारे में जानकारी होती है परंतु यदि आपने निवेशक है और लिक्विडिटी शब्द से अपरिचित है तो घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है आज हम आपको लिक्विडिटी क्या है इस बारे में जानकारी देंगे।

लिक्विडिटी शेयर मार्केट में एक परिस्थिति है जो यह दर्शाती है कि किसी कंपनी के शेयर को कितनी तेजी में खरीदा गया और उतनी ही तेजी से नकदी में बेच दिया गया। उदाहरण -: रमेश ने एक कंपनी के हजार शेयर ₹200 में खरीदे और उसे ₹220 में बेच दिए।

इस तरह कहा जा सकता है कि शेयर की लिक्विडिटी अधिक है। ‌

वोलेटाइल क्या है?

Meaning of Volatile in Hindi

वोलेटाइल वह कीमत है जिस पर किसी भी दिए गए सेट की प्रतिभूतियों की कीमत बढ़ जाती है या घट जाती है। यदि किसी कंपनी के शेयर की कीमत में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है तो वह अत्याधिक अस्थिर वोलेटाइल कहलायेगा।

इसी तरह यदि किसी कंपनी के शेयर की कीमत में धीरे-धीरे उतार-चढ़ाव हो रहा है तो वह कम वोलेटाइल कहलाएगा। उदाहरण -: रमेश शेयर बाजार में सूचीबद्ध एक कंपनी में अक्सर ट्रेडिंग करता रहता है और एक दिन उस कंपनी के शेयर की कीमत 100 से बढ़कर 120 हो गई। यहां इस बढ़ती हुई कीमत को हम अस्थिर वोलेटाइल मानेंगे।

शेयर मार्केट में लिक्विडिटी और वोलेटाइल का क्या महत्व है?

अब हम आपको शेयर मार्केट में लिक्विडिटी और वोलेटाइल की महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानकारी देंगे।

लिक्विडिटी

शेयर बाजार में लिक्विडिटी की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि वह इस बात पर प्रकाश डालती है कि किसी भी स्टॉक में निवेशक कितनी जल्दी उसे खरीद सकता है तथा उसे बेचकर बंद कर सकता है। लिक्विडिटी में जोखिम कम होता है क्योंकि यहां पर एक अन्य निवेशक हमेशा दूसरे पक्ष की तरफ से तैयार रहता है। जिस बाजार में लिक्विडिटी की स्थिति अत्याधिक होती है वहां पर सट्टेबाजों और निवेशकों का आकर्षण होना सामान्य है। एक लिक्विडिटी शेयर में निम्न विधि होती है जबकि पूरे बाजार में लिक्विडिटी की परिस्थिति अधिक होती है।

वोलेटाइल

वोलेटाइल से निवेशकों को किसी विशेष शेयर्स की ओर ट्रेड करने के लिए आकर्षित किया जाता है। किसी शेयर की कीमत में बढ़ोतरी होने का मतलब है अधिक वोलेटाइल तथा किसी शेयर की कीमत में घटोती का मतलब वोलेटाइल।

Liquidity and Volatility लिक्विडिटी और वोलेटाइल का प्रयोग कैसे करें?

यदि आप liquidity and volatility का प्रयोग करना चाहते हैं तो आप शेयर बाजार में शॉर्ट टर्म ट्रेडज को अंजाम दे क्योंकि शॉर्ट टर्म ट्रेड्स धीमी गति से कार्य करते हैं तथा कम समय में लाभ प्रदान करते हैं।‌

इस आर्टिकल में हमने आपको लिक्विडिटी और वोलेटाइल के बारे में जानकारी प्रदान की है। जो लोग शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं परंतु liquidity and volatility से अंजान है तो उनके साथ हमारा यह आर्टिकल साझा करें। उम्मीद करते हैं आपको हमारा आर्टिकल पसंद आया होगा।

Future Investment: डेट फंड दिलाएगा बेस्ट रिटर्न! पूरी तरह सुरक्षित रहेगा आपका पैसा रहेगा, ये हैं 4 बेनिफिट्स

Future Investment: अगर आप अभी से फ्यूचर की प्लानिंग करना चाहते हैं तो आपके लिए अच्छा मौका है. डेट फंड के जरिए आप फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह अच्छा रिटर्न पा सकते हैं.

Future investment: अगर आप भविष्य के लिए आज से ही फाइनेंशियल प्लानिंग (Financial Planning) शुरू करेंगे, तो आपके लिए बेहतर होगा. क्योंकि भविष्य में आने वाले खर्च बहुत बढ़ने वाले हैं. चाहें बात फिर घर खर्च की हो या फिर पढ़ाई और शादी के खर्च की. स्मॉल सेविंग्स के जरिए आप अभी से पैसा जोड़ सकते हैं. इसके लिए हम आपके लिए डेट फंड का ऑप्शन लेकर आए हैं. डेट लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है? फंड असल में म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) है. इसमें इन्वेस्टर्स बैंक की फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) या फिर स्मॉल सेविंग्स स्कीम (Small Savings scheme) के अल्टरनेट के रूप में इन्वेस्ट कर सकते हैं. जैसे कि सरकारी सिक्योरिटी, कॉर्पोरेट बॉन्ड्स और ट्रेजरी बिल्स. फिक्स्ड डिपॉजिट का समय पूरा होते ही डेट फंड आपको FD रेट पर अच्छा खास रिटर्न देता है.

सुरक्षित रहेगा आपका पैसा

ICICI पर जारी डीटेल के अनुसार, डेट फंड का उद्देश्य केवल इन्वेस्टर्स को सुरक्षित इन्वेस्टमेंट के साथ फायदा पहुंचाना है. बता दें डेट फंड को लिक्विड फंड भी कहा जाता है. क्योंकि इसमें लिक्विडिटी की भी कोई समस्या नहीं होती है. इसका मतलब ये कि आप अपना पैसा कभी भी निकाल सकते हैं.

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Debt Funds में इन्वेस्ट करने के 4 बेनिफिट्स

स्टेबल फंड्स

डेट फंड में रिटर्न आमतौर लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है? पर हमेशा एक जैसा रहता है. इसके रेट्स में मार्केट के चलते कभी बदलाव नहीं दिखता है. ऐसे में अगर आपको इन्वेस्ट करने में डर लग रहा है, तो ये आपके लिए सुरक्षित ऑप्शन है. वहीं अगर आप कुछ समय के लिए अपनी फाइनेंशियिल प्लानिंग करना चाहते हैं, तो Debt Funds बेस्ट है.

लोवर फीस

Debt Funds में आप Equity और म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले कम पैसों से निवेश कर सकते हैं. अक्सर इन्वेस्टर्स डेट और म्यूचुअल फंड स्कीम्स को ही चुनते हैं, जिससे TDS पर कोई असर नहीं पड़ता है. हालांकि अगर आप फंड यूनिट को बेचते हैं, तो आपको इन्वेस्टमे्ंट के दौरान चैक्स देना पड़ेगा.

आमतौर पर ऐसी योजनाओं में इन्वेस्टर्स का पैसा सरकारी सिक्योरिटी, बॉन्ड और कॉर्पोरेट डिबेंचरों में लगाया जाता है. हालांकि, इस तरह के फंडों से इक्विटी फंडों (Equity Fund) के लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है? मुकाबले कम रिटर्न मिलता है.

दरअसल यह फंड इक्विटी फंडों की तुलना में कम जोखिम भरे हैं. इनका इक्विटी बाजार के उतार चढ़ाव से कोई मतलब नहीं. बता दें लॉन्ग टर्म में कई डेट फंड ने बैंक एफडी की तुलना में 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा रिटर्न दिया है. ज्यादातर बैंक जहां एफडी करने पर 5.75 फीसदी से 6.75 फीसदी या 7 फीसदी के बीच रिटर्न दे रहे हैं.

कम जोखिम, बेस्ट रिटर्न

Debt Fund में अगर आप इन्वेस्ट करते हैं, तो आपको बेहतर रिटर्न मिलेगा. क्योंकि म्यूचअल फंड (Mutual Fund) में इन्वेस्टमेंट सबसे ज्यादा फायदा देने वाला सौदा माना जाता है. ऐसा अक्सर होता है कि फिक्स्ड डिपॉजिट के मुकाबले डेट म्यूचुअल फंड में ज्यादा रिटर्न मिलता है.

Debt funds से मिलने वाला पैसा टैक्स के दायरे में आता है. डेट फंड को 3 साल के बाद भुनाने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) लगता है. 3 साल के पहले डेट म्यूचुअल फंड यूनिट्स को बेचने के बाद जो मुनाफा होता है, उसा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स चुकाना पड़ता है.

Liquidity क्या है?

व्यापार, अर्थशास्त्र या निवेश में, बाजार की liquidity एक बाजार की विशेषता है जिससे कोई व्यक्ति या फर्म परिसंपत्ति की कीमत में भारी बदलाव किए बिना किसी संपत्ति को जल्दी से खरीद या बेच सकता है। liquidity में उस कीमत के बीच व्यापार-बंद शामिल होता है जिस पर एक संपत्ति बेची जा सकती है, और इसे कितनी जल्दी बेचा जा सकता है।

तरलता क्या है? [What is Liquidity? In Hindi]

liquidity cash की त्वरित पहुंच से संबंधित है। व्यक्ति संपत्ति या सुरक्षा रखते हैं, और liquidity उस आसानी को संदर्भित करती है जिसके साथ इन्हें नकदी में बदलने के लिए बाजार में खरीदा या बेचा जा सकता है।

Cash को liquidity का मानक माना जाता है क्योंकि इसे अन्य परिसंपत्तियों में आसानी से बदला जा सकता है। इसे दो तरीकों से मापा जा सकता है - Market Liquidity और Accounting Liquidity.

'तरलता' की परिभाषा [Definition of "Liquidity"] [In Hindi]

Liquidity का अर्थ है कि आप अपने नकदी पर कितनी जल्दी अपना हाथ रख सकते हैं। सरल शब्दों में, liquidity यह है कि जब भी आपको आवश्यकता हो, अपना पैसा प्राप्त करें।

तरलता क्यों महत्वपूर्ण है? [Why liquidity is important?] [In Hindi]

यदि market liquid नहीं हैं, तो संपत्ति या प्रतिभूतियों को नकदी में बेचना या परिवर्तित करना मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए, आपके पास 1,50,000 Rs मूल्यांकित एक बहुत ही दुर्लभ और मूल्यवान पारिवारिक विरासत हो सकती है। हालांकि, अगर आपकी वस्तु के लिए बाजार नहीं है (यानी कोई खरीदार नहीं है), तो यह अप्रासंगिक है क्योंकि कोई भी इसके मूल्यांकित मूल्य के करीब कहीं भी भुगतान नहीं करेगा - यह बहुत ही तरल है। ब्रोकर के रूप में कार्य करने और संभावित इच्छुक पार्टियों को ट्रैक करने के लिए नीलामी घर को किराए पर लेने की भी आवश्यकता हो सकती है, जिसमें समय लगेगा और लागतें लगेंगी। Liquid Asset, हालांकि, आसानी से और जल्दी से उनके पूर्ण मूल्य के लिए और कम लागत के साथ बेची जा सकती है। कंपनियों को अपने अल्पकालिक दायित्वों जैसे बिल या पेरोल को कवर करने के लिए पर्याप्त तरल संपत्ति भी रखनी चाहिए या फिर तरलता संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे दिवालियापन हो सकता है।

Liquidity क्या है?

तरल संपत्ति के प्रकार [Type of Liquid Asset] [In Hindi]

Liquid Asset ऐसी संपत्तियां हैं जो व्यवसायों या व्यक्तियों के पास होती हैं, जिन्हें जल्दी से नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है। इसमें नकद, marketable securities के साथ-साथ मुद्रा बाजार के साधन शामिल हो सकते हैं। ऐसी सभी संपत्तियां कंपनी की बैलेंस शीट में परिलक्षित होती हैं।

नकद और बचत खाते आमतौर पर तरलता के उच्चतम रूप को बनाए रखते हैं जो कि व्यवसायों या व्यक्तियों के स्वामित्व में हो सकते हैं। निम्नलिखित संपत्तियों को भी आसानी से परिसमाप्त किया जा सकता है -

  • Cash
  • Cash Evolution
  • Accrued Income
  • Stocks
  • Government Bond
  • Promissory Notes
  • Account Receivables
  • Marketable Securities
  • Certificates of Deposits

सबसे अधिक तरल संपत्ति या प्रतिभूतियां क्या हैं? [What are the most liquid assets or securities?] [In Hindi]

नकद सबसे अधिक Liquid Asset है जिसके बाद नकद-समकक्ष हैं, जो money market, CD या Fixed Deposits जैसी चीजें हैं। एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध स्टॉक और बॉन्ड जैसी marketable securities अक्सर बहुत तरल होती हैं, और ब्रोकर के माध्यम से जल्दी से बेची जा सकती हैं। सोने के सिक्के और कुछ संग्रहणीय वस्तुएं भी नकदी के लिए आसानी से बेची जा सकती हैं।

Debt funds में आज ही करें निवेश, बेहतर रिटर्न के साथ आपका पैसा रहेगा सुरक्षित- जानिए डीटेल

Debt fund Investment: डेट फंड को लिक्विड फंड भी कहा जाता है. क्योंकि इसमें लिक्विडिटी की भी कोई समस्या नहीं होती है. इसका मतलब ये कि आप अपना पैसा कभी भी निकाल सकते हैं.

Debt fund Investment: डेट फंड असल में म्यूचअल फंड ही होता है. इसमें निवेशक बैंक की फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) या फिर दूसरी स्मॉल सेविंग्स स्कीम (Small Savings Scheme) के अल्टरनेट के रूप में इन्वेस्ट करते हैं. जैसे की सरकारी सिक्योरिटी, कॉर्पोरेट बॉन्ड्स और ट्रेजरी बिल्स. फिक्स्ड डिपॉजिट का समय पूरा होते ही डेट फंड आपको फिक्स्ड रेट पर अच्छा खासा रिटर्न देते हैं.

सुरक्षित रहेगा आपका पैसा

ICICI पर साझा जानकारी के मुताबिक, डेट फंड का उद्देश्य केवल इन्वेस्टर्स को सुरक्षित इन्वेस्टमेंट के साथ फायदा पहुंचाना है. बता दें डेट फंड को लिक्विड फंड भी कहा जाता है. क्योंकि इसमें लिक्विडिटी की भी कोई समस्या नहीं होती है. इसका मतलब ये कि आप अपना पैसा कभी भी निकाल सकते हैं.

Debt Funds में इन्वेस्ट करने के 4 बेनिफिट्स

स्टेबल फंड्स

डेट फंड में रिटर्न आमतौर पर हमेशा एक जैसा रहता है. इसके रेट्स में मार्केट के चलते कभी बदलाव नहीं दिखता है. ऐसे में अगर आपको इन्वेस्ट करने में डर लग रहा है, तो ये आपके लिए सुरक्षित ऑप्शन है. वहीं अगर आप कुछ समय के लिए अपनी फाइनेंशियिल प्लानिंग करना चाहते हैं, तो Debt Funds बेस्ट है.

लोवर फीस

Debt Funds में आप Equity और म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले कम पैसों से निवेश कर सकते हैं. अक्सर इन्वेस्टर्स डेट और म्यूचुअल फंड स्कीम्स को ही चुनते हैं, जिससे TDS पर कोई असर नहीं पड़ता है. हालांकि अगर आप फंड यूनिट को बेचते हैं, तो आपको इन्वेस्टमे्ंट के दौरान चैक्स देना पड़ेगा.

आमतौर पर ऐसी योजनाओं में इन्वेस्टर्स का पैसा सरकारी सिक्योरिटी, बॉन्ड और कॉर्पोरेट डिबेंचरों में लगाया जाता है. हालांकि, इस तरह के फंडों से इक्विटी फंडों (Equity Fund) के मुकाबले कम रिटर्न मिलता है.

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दरअसल यह फंड इक्विटी फंडों की तुलना में कम जोखिम भरे हैं. इनका इक्विटी बाजार के उतार चढ़ाव से कोई मतलब नहीं. बता दें लॉन्ग टर्म में कई डेट फंड ने बैंक एफडी की तुलना में 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा रिटर्न दिया है. ज्यादातर बैंक जहां एफडी करने पर 5.75 फीसदी से 6.75 फीसदी या 7 फीसदी के बीच रिटर्न दे रहे हैं.

कम जोखिम, बेस्ट रिटर्न

Debt Fund में अगर आप इन्वेस्ट करते हैं, तो आपको बेहतर रिटर्न मिलेगा. क्योंकि म्यूचअल फंड (Mutual Fund) में इन्वेस्टमेंट सबसे ज्यादा फायदा देने वाला सौदा माना जाता है. ऐसा अक्सर होता है कि फिक्स्ड डिपॉजिट के मुकाबले डेट म्यूचुअल फंड में ज्यादा रिटर्न मिलता है.

Debt funds से मिलने वाला पैसा टैक्स के दायरे में आता है. डेट फंड को 3 साल के बाद भुनाने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) लगता है. 3 साल के पहले डेट म्यूचुअल फंड यूनिट्स को बेचने के बाद जो मुनाफा होता है, उसा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स चुकाना पड़ता है.

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